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Editorial: अमेरिका का भारत पर 25% अतिरिक्त शुल्क लगाना अनुचित और अनावश्यक

भारत द्वारा रूसी कच्चे तेल के आयात के दंडस्वरूप लगाया गया यह 25 फीसदी अतिरिक्त शुल्क (मूल्य के अनुपात में) 27 अगस्त से प्रभावी होगा।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- August 07, 2025 | 11:13 PM IST

सात अगस्त को अमेरिका द्वारा भारत के निर्यात पर लगाए गए 25 फीसदी के शुल्क के प्रभावी होने के पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर करके भारत पर 25 फीसदी का अतिरिक्त शुल्क लगा दिया। भारत द्वारा रूसी कच्चे तेल के आयात के दंडस्वरूप 25 फीसदी का यह अतिरिक्त शुल्क (मूल्य के अनुपात में) लगाया गया। यह अतिरिक्त शुल्क 27 अगस्त से प्रभावी होगा। कुल मिलाकर ट्रंप ने भारत को अत्यंत कठिन हालात में डाल दिया है। इसकी वजहों को तार्किक रूप से समझा पाना मुश्किल है। इसकी वजह यह दी गई है कि भारत द्वारा रूसी तेल की खरीद के कारण रूस को युद्ध जारी रखने में मदद मिल रही है। यानी अगर भारत रूसी तेल खरीद बंद कर देगा तो इससे जंग रोकने में मदद मिलेगी।

फरवरी 2022 में जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण की शुरुआत की थी तब अमेरिका और उसके पश्चिमी साझेदार देशों ने रूस के विदेशी मुद्रा भंडार को जब्त कर लिया था और उसे अंतरराष्ट्रीय भुगतान प्रणाली से अलग करके उस पर तमाम तरह के प्रतिबंध लागू कर दिए थे। इन कदमों से रूस अप्रभावित रहा। अमेरिका और यूरोपीय संघ ने यूक्रेन को पूरा समर्थन दिया, इसके बावजूद रूस पीछे नहीं हटा। इन सब बातों के बावजूद शायद अमेरिका यही मानता है कि भारत पर अतिरिक्त शुल्क लगाने का तरीका प्रभावी साबित होगा। यह कदम ट्रंप के समर्थकों को प्रसन्न करने के लिए और यह दिखाने के लिए उठाया गया है कि वे उस युद्ध को रोकने के लिए कुछ कर रहे हैं जिसे समाप्त करने का उन्होंने वादा किया था। भारत सरकार ने उचित ही इस कदम को ‘अनुचित, अन्यायपूर्ण और अविवेकपूर्ण’ करार दिया है।

पिछले सप्ताह 25 फीसदी का उच्च शुल्क लगाने का निर्णय भी आर्थिक दृष्टि से बेतुका था। ट्रंप ने बार-बार कहा है कि भारत की शुल्क दरें ज्यादा हैं और यहां कारोबार करना मुश्किल है। यह माना जा सकता है कि भारत ने व्यापार को लेकर अधिक निराशावादी नजरिया अपनाया है और उसे अपने हितों को ध्यान रखते हुए अधिक खुलापन अपनाना चाहिए था। परंतु यह भी सही है कि भारत लगातार चालू खाते के घाटे में रहा है। इसका अर्थ यह है कि वह शेष विश्व को जितनी वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात करता है, उनसे कहीं अधिक का आयात करता है।

गत वित्त वर्ष में चीन के साथ हमारा व्यापार घाटा 100 अरब डॉलर का था। वास्तव में वर्ष 2024-25 में भारत का वस्तु व्यापार घाटा 280अरब डॉलर से अधिक था। ऐसे में चीन जैसे देश भी हैं जिनके साथ भारत का घाटा है और अमेरिका जैसे देश भी हैं जिनके साथ अधिशेष बना हुआ है। व्यापार ऐसे ही चलता है। बहरहाल ट्रंप की नजर में व्यापार घाटे का अर्थ अनुचित व्यापार नीतियां हैं। सच कहें तो इस समय पूरी दुनिया अमेरिकी प्रशासन के गलत विचारों से ही जूझ रही है।

अब जबकि भारत को सबसे अधिक शुल्क दर का सामना कर रहे देशों में शुमार कर दिया गया है तो यह महत्त्वपूर्ण है कि संभावित विकल्पों पर विचार किया जाए। भारत उन शुरुआती देशों में से एक है जिन्होंने ट्रंप प्रशासन से व्यापार वार्ता शुरू की थी। कई मौकों पर ऐसा लगा कि दोनों पक्ष साझा लाभ वाले समझौते पर पहुंच गए हैं। खुद ट्रंप ने ऐसी संभावनाएं जताईं। बहरहाल भारत पर उच्च शुल्क दर लगा दी गई। 25 फीसदी का अतिरिक्त शुल्क अधिकांश भारतीय निर्यातकों को अमेरिकी बाजार से लगभग बाहर कर देगा। औषधि और इलेक्ट्रॉनिक्स पर उक्त शुल्क दरें लागू नहीं हैं लेकिन कहा नहीं जा सकता है कि ये कब तक शुल्क दायरे में आने से बचे रहेंगे।

दोनों देशों के रिश्ते सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं हैं, ऐसे में अमेरिका के ताजा कदमों के नतीजे अच्छे नहीं होंगे। भारत को अमेरिका से संवाद जारी रखना चाहिए। भारत रूसी तेल आयात में चरणबद्ध कमी की शुरुआत कर सकता है हालांकि यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि वह रणनीतिक कारणों से रूस से दूरी बनाएगा। व्यापक स्तर पर भारत को इस दौर का इस्तेमाल प्रतिस्पर्धा बढ़ाने और नए बाजार तलाश करने में करना चाहिए। इस मोर्चे पर देरी करने का विकल्प अब हमारे पास नहीं है।

First Published : August 7, 2025 | 9:42 PM IST