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उपभोक्ता धारणा में अनिश्चितता

Published by
महेश व्यास
Last Updated- January 13, 2023 | 12:05 AM IST

हाल के दिनों में उपभोक्ता धारणा में नकारात्मक बदलाव देखने को मिला है। अमीरों और गरीबों की धारणा के बीच का अंतराल काफी हद तक बढ़ गया है। दिसंबर में उपभोक्ता धारणा सूचकांक (आईसीएस) में 1.7 फीसदी की गिरावट आ गई जबकि नवंबर माह में यह 0.9 फीसदी सिकुड़ गया था। ऐसे में इस सूचकांक ने अक्टूबर 2022 में अपने त्योहारी सीजन की उछाल के बाद 2.6 फीसदी की गिरावट दर्ज की है।

उपभोक्ता धारणा सूचकांक की नियमित जानकारी जुटाने वाले लोगों को इस बात का भी ध्यान देना चाहिए कि नवंबर के लिए आईसीएस में 0.2 फीसदी की गिरावट पहले से अनुमानित थी, जबकि यह संशोधित करके 1.7 फीसदी की भारी गिरावट पर लाई गई है। इसके अलावा, अक्टूबर में अनुमान से बेहतर आईसीएस के परिणाम देखने को मिले।

इस माह में आईसीएस 4.6 फीसदी पर अनुमानित किया गया था, जबकि यह बढ़कर 6.1 फीसदी पहुंच गया। ये संशोधन सीएमआईई के उपभोक्ता पिरामिड घरेलू सर्वेक्षण के हर वेव के अंत में होते हैं। संशोधन आमतौर पर छोटे होते हैं। लेकिन, इस बार ये सामान्य से अधिक थे।

नवंबर और दिसंबर के दौरान उपभोक्ता धारणाओं में गिरावट ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में देखने को मिली। इसके साथ ही वर्तमान आर्थिक सुधार की धारणा और भविष्य के प्रति इन अपेक्षाओं के संबंध में भी निराशा देखने को मिली। इन दो महीनों में संचयी गिरावट शहरी क्षेत्रों में अधिक देखने को मिली।

ग्रामीण क्षेत्रों में यह गिरावट 2.2 फीसदी दर्ज की गई जबकि इसके मुकाबले शहरी क्षेत्रों में इसमें 3.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी। वर्तमान में आर्थिक सुधार को लेकर लोगों की अपेक्षाओं में 6.6 फीसदी की भारी कमी आई है, जबकि भविष्य को लेकर लोग थोड़े आशावादी दिखे और इसमें 1.1 फीसदी की गिरावट देखने को मिली, जो वर्तमान आर्थिक सुधार की अपेक्षाओं से ठीक है। हालांकि, लोगों में निराशा व्यापक रूप से बनी हुई है, लेकिन भारतीय लोग अपने भविष्य के लिए कुछ आशावादी दिख रहे हैं।

उपभोक्ता धारणा अपने पूर्व-महामारी के स्तर से कम बनी हुई है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के कुछ संकेतकों में से एक है जो अभी तक पूरी तरह से ठीक नहीं हुई है। यह सीएमआईई के उपभोक्ता धारणा सूचकांक और आरबीआई के उपभोक्ता विश्वास सूचकांक में भी देखा जा सकता है।

उपभोक्ता धारणा या विश्वास इसलिए भी महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि ये घरेलू उपभोक्ताओं द्वारा खर्च की प्रवृत्ति को दर्शाते हैं, और यह घरेलू खर्च भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आधे से अधिक में योगदान देता है। परिवारों द्वारा निजी अंतिम उपभोग व्यय (पीएफसीई) भारत की कुल जीडीपी का 57 फीसदी है, जो बड़े पैमाने पर जीडीपी में योगदान को दर्शाता है।

यह एक पहेली है। उपभोक्ता धारणा कमजोर रहने के बावजूद पीएफसीई कैसे बढ़ता रहता है? 2021-22 में पीएफसीई 2019-20 के अपने स्तर से 1.4 फीसदी अधिक था लेकिन आईसीएस में 46 फीसदी की भारी गिरावट आई थी। यह भटकाने वाली प्रवृत्ति 2022-23 में भी जारी रह सकती है।

इसका जवाब विभिन्न आय समूहों के परिवारों के आईसीएस की रिकवरी में असमानता के माध्यम से जाना जा सकता है। गरीब परिवारों की धारणाओं की तुलना में अमीर परिवारों की धारणाओं में बेहतर सुधार हो रहा है। अभी तक कोई भी आय वर्ग पूर्व-महामारी के स्तर तक नहीं पहुंचा है। तो, पहेली अभी भी कायम है। असमानताएं सिर्फ रहस्य का हिस्सा समझाती हैं।

उपभोक्ता धारणाओं का अध्ययन करने के लिए पांच तरह के वार्षिक आय वाले समूहों का अध्ययन किया जाता है, जिसमें न्यूनतम आयवर्ग 100,000 रुपये से कम (अर्थात मोटे तौर पर पीपीपी यानी क्रय शक्ति समानता 3.2 डॉलर प्रति व्यक्ति), निम्न मध्य-आय वर्ग 100,000 और 200,000 रुपये के बीच (पीपीपी 3.6-6.3 डॉलर प्रति व्यक्ति), मध्यम आय वर्ग 200,000 और 500,000 के बीच (पीपीपी 6.3-15.8 डॉलर प्रति व्यक्ति), उच्च मध्य-आय वर्ग 500,000 और 10,000,00 (पीपीपी 5.8-31.7 डॉलर प्रति व्यक्ति) के बीच और अमीर 10 लाख (पीपीपी 31.7 डॉलर प्रति व्यक्ति) से अधिक सालाना कमाते हैं।

त्योहारों के मौसम के बाद, यानी अक्टूबर और दिसंबर 2022 के बीच, सबसे कम आयवर्ग के लोगों के आईसीएस में 2 फीसदी की गिरावट आई जबकि अमीरों के लिए इसमें 9.2 फीसदी की वृद्धि हुई। हालांकि यह कठिन भी है क्योंकि यह दो आय दायरे पर आधारित है और जिनके बीच काफी अंतराल है और इसकी वजह से कम नमूने के कारण मासिक अनुमान थोड़ा अस्थिर हो जाता है। इसलिए, जब आय समूहों की बात आती है तो चार महीने के मूविंग एवरेज का अध्ययन करना बेहतर होता है। इसमें सीपीएचएस के पूर्ण नमूने का प्रभावी ढंग से उपयोग हो पाता है और अनुमान कहीं अधिक मजबूत होते हैं।

इस परिवर्तित श्रृंखला से पहली रिपोर्ट में यह प्राप्त हुआ कि पिछले छह महीनों में सबसे अमीर और सबसे गरीब आय समूहों के बीच उपभोक्ता धारणाओं में अंतर कम हो गया है क्योंकि सबसे गरीब लोगों की धारणाओं में तेजी आई है। यह अच्छा भी है क्योंकि यह आय में वृद्धि दर्ज करने वाले परिवारों के अनुपात में बड़ी वृद्धि को दर्शाता है। मई-अगस्त 2022 के दौरान परिवारों में 11 फीसदी की आयवृद्धि दर्ज की गई जबकि सितंबर-दिसंबर 2022 के दौरान यह लगभग 18 फीसदी तक पहुंच गई।

जब 1 लाख और 2 लाख रुपये के बीच सालाना कमाने वाले और 5 लाख और 10 लाख रुपये सालाना कमाने वाले लोगों के बीच उनकी धारणाओं की तुलना की जाती है तो अमीर और गरीब के बीच का अंतर महत्त्वपूर्ण होता है। 5 लाख और 10 लाख रुपये वाले आयवर्ग (उच्च मध्य-आय वर्ग) ने मई 2022 से अपनी उपभोक्ता धारणाओं में 39 फीसदी की वृद्धि देखी है। दूसरी ओर, 1 लाख और 2 लाख रुपये वाले आयवर्ग (निम्न मध्यम-आय वाले परिवारों) की धारणाओं में केवल 21 फीसदी की वृद्धि हुई है।

उच्च मध्यम आय वाले परिवारों ने उपभोक्ता धारणाओं में सबसे तेज वृद्धि दर्ज की है। इस समूह में 2 करोड़ से अधिक परिवार शामिल हैं। यह भी संभव है कि हम जो पीएफसीई में बढ़ोतरी देखते हैं, वह काफी हद तक इन्हीं परिवारों द्वारा खर्च किए जाते हैं। निम्न मध्य-आय वर्ग में 14 करोड़ से अधिक परिवार शामिल हैं।

मई और दिसंबर 2022 के बीच उनकी धारणाओं में भी 21 फीसदी का सुधार हुआ है। मई 2022 में, दोनों समूहों के आईसीएस स्तर समान थे। दिसंबर 2022 तक, उच्च मध्यम आय वाले परिवारों का आईसीएस निम्न मध्यम आय वर्ग के परिवारों के आईसीएस से 18 फीसदी अधिक था। अंतराल बढ़े हैं।

दिसंबर 2022 में परिवारों के उच्च मध्य-आय वर्ग का चार महीने का मूविंग एवरेज आईसीएस मार्च 2020 के अपने स्तर से 15.8 फीसदी कम था। अन्य सभी आय समूहों में उपभोक्ता धारणाएं अपने मार्च 2020 के स्तर से 20 फीसदी से अधिक कम हुई हैं।

ऐसा लगता है कि 2 करोड़ उच्च मध्यम आय वाले परिवार भारत में पीएफसीई वृद्धि का एक बड़ा हिस्सा चला रहे हैं। और इसमें शेष 30 करोड़ से अधिक परिवारों को भी शामिल कर लिया जाता है।

First Published : January 12, 2023 | 11:46 PM IST