इस साल वार्षिक व्यापार नीति (एफटीपी) में निर्यात प्रोत्साहन योजना (एक्सपोर्ट प्रोमोशन स्कीम, ईपीसीजी) के तहत डयूटी में 3 फीसदी की कमी की गई है।
आयातकों को अब 3.09 फीसदी की डयूटी चुकानी होगी जिसमें भी 5.15 फीसदी पहले ही लागू है। इसका मतलब हुआ यह हुआ कि केवल 2.06 फीसदी की बचत होगी और निर्यात में 16.48 फीसदी प्रतिबंध लगेंगे।
ईपीसीजी स्कीम के तहत पूंजीगत वस्तुएं प्रभावित होंगी। पूंजीगत वस्तुओं पर पहले से ही 7.5 फीसदी की बेसिक डयूटी लगी हुई थी और अब इस स्कीम के तहत 14.42 फीसदी की अतिरिक्त डयूटी (सीवीडी)भी पूंजीगत वस्तुओं पर लग जाएगी, जिससे इनको सामान्यतऱ् 28.64 फीसदी की मार झेलनी होगी।
इसके चलते डयूटी में 25.55 रुपये की बचत होगी और निर्यात प्रतिबंध 204.40 रुपये पहुंच जाएगा। लघु उद्योगों के लिए निर्यात प्रतिबंध 153.30 रुपये हो जाएगा लेकिन इस स्कीम की वजह से उनका आयात 50 लाख रुपये तक रोक दिया गया है।
पिछले तीन सालो के औसत निर्यात को बरकरार रखने के लिए आवश्यकता को चालू रखा गया है, इसमें बड़े निर्यातक जिनके पास पिछले पांच सालों के औसत निर्यात का विकल्प है, उनको छोड़ दिया गया है। जिन क्षेत्रों में 5 फीसदी से अधिक की कमी आई है, उनके वार्षिक निर्यात में भी उसी अनुपात में कमी आई है।
निर्यात प्रतिबंधों में भी इस तरह से इजाजत दी गई है कि उन वस्तुओं का निर्यात किया जाए जिससे कम से कम 50 फीसदी पूंजीगत वस्तुओं का आयात किया जा सके। इसमें भी किसी कंपनी या उसी समूह की अन्य कंपनी द्वारा तैयार वस्तुओं या सेवाओ के निर्यात से संतुलन बनाया जाएगा। पुराना लाइसेंस इसमें कोई बाधा उत्पन्न नहीं करेगा।
ईपीसीजी स्कीम के तहत निर्यात के बदले फोकस मार्केट जैसी पुरस्कार योजनाएं भी उपलब्ध हैं। इसमें शुरुआती अनजानी बाधाओं को हटा दिया गया है।निर्यात प्रतिबंधों के समय में बढोतरी की स्थिति में अनफुलफिल्ड निर्यात में डयूटी में जिस अनुपात में बचत होती है, उस स्थिति में 2 प्रतिशत का कंपोजिशन शुल्क अदा करना होगा।
क्षेत्रीय प्राधिकरण (लाइसेंसिंग) लाइसेंस की वैल्यू 10 प्रतिशत से ऊपर तक बढ़ा सकते हैं और उसी अनुपात में निर्यात प्रतिबंध लगा सकते हैं। कुछ स्थितियां निर्यातकों के वश से बाहर हैं जैसे अंतरराष्ट्रीय कीमतों में गिरावट, तकनीकी खामियां, इन स्थितियों में निर्यात प्रतिबंधों में कुछ छूट देने पर विचार किया जा सकता है।
केंद्रीय उत्पाद एंव सीमा शुल्क बोर्ड(सेंट्रल बोर्ड ऑफ एक्साइज एंड कस्टम्स ) के 12 अक्टूबर 1998 के सर्कुलर नंबर 76 98 में स्पष्ट किया गया है कि डीईपीबी (डयूटी एनटाइटलमेंट पासबुक) के तहत किसी भी प्रकार की वस्तु के आयात पर प्रतिबंध नहीं है, ईपीसीजी जैसी अन्य योजनाओं के अंतर्गत जिन वस्तुओं का आयात हो रहा है और निर्यात की सूची में भी हों, उनको डीईपीबी जैसी योजनाओं में एकसमान देखा जाएगा।
डीईपीबी के अंतर्गत छूट, डीईपीबी में डयूटी छूट में बढोतरी से नियत्रित होती है। आयातित वस्तुओं एक और स्थिति में डयूटी में आंशिक छूट से बच सकती हैं,यह छूट डीईपीबी के बिना भी वस्तुएं आयात करने में भी प्रभावी हो सकती है। इसके लिए बस इतना करना है कि आयातित वस्तुएं इस मामले में जारी नोटिफिकेशन की शर्तों को पूरा करती हों।
सर्कुलर पर आधारित, कस्टम केवल डीईपीबी को स्वीकार नहीं करता बल्कि डीईपीबी के अंतर्गत बुनियादी तौर पर लगने वाले सीमा शुल्क के भुगतान को भी स्वीकार करता है। अब विदेश व्यापार नीति में यह सुविधा 1 जनवरी 2009 तक यह सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाएगी।
वित्त मंत्रालय ने जो 2 प्रतिशत डयूटी में कमी की है उसको देखते हुए यह अनावश्यक बाधाएं व्यापार को उस स्तर तक बढ़ावा नहीं दे पाएंगी जहां तक होनी चाहिए। और यह कोई ऐसी स्थिति नहीं है जिस पर वाणिज्य मंत्रालय कुछ बेहतर करने का श्रेय ले सके।