वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में केंद्र सरकार का सकल कर राजस्व गिरकर 2.7 लाख करोड़ रुपये रह गया। यह पिछले वर्ष की समान अवधि से 32 फीसदी कम है। जबकि इसी अवधि में केंद्र का विशुद्ध कर राजस्व 46 फीसदी की गिरावट के साथ महज 1.35 लाख करोड़ रुपये रह गया। यह अस्वाभाविक है।
केंद्र के सकल कर राजस्व और शुद्ध कर राजस्व के लिए राज्यों को किया जाने वाला हस्तांतरण भी बड़ी वजह है। परंतु अप्रैल-जून तिमाही में केंद्र सरकार के शुद्ध कर राजस्व में और राज्यों को किए जाने वाले कर आवंटन में गिरावट चौंकाने वाली रही।
केंद्र के शुद्ध कर राजस्व में 46 फीसदी की भारी गिरावट की तुलना में केंद्रीय करों के राज्यों को मिलने वाले हिस्से में महज 10 फीसदी की कमी आई। केंद्र और राज्यों को वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में सकल कर संग्रह का बराबर-बराबर हिस्सा मिला। राज्यों को 1.34 लाख करोड़ रुपये और केंद्र को 1.35 लाख करोड़ रुपये मिले।
यह अस्वाभाविक इसलिए है क्योंकि चौदहवें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार सन 2015-16 से 2019-20 तक केंद्र के सकल कर राजस्व का केवल 42 फीसदी हिस्सा राज्यों के साथ साझा किया जाना चाहिए। वर्ष 2020-21 के लिए पंद्रहवें वित्त आयोग ने 41 फीसदी हिस्सा राज्यों से साझा करने की बात कही।
परंतु पहली तिमाही में केंद्र ने राज्यों के साथ कुल कर संग्रह में 50 फीसदी साझेदारी की। इस कर संग्रह में अधिभार और उपकर शामिल थे जो करीब 10 फीसदी थे। यानी राज्यों को वास्तविक हस्तांतरण आधे से कुछ अधिक होगा। गत वर्ष की तुलना में यह बढ़ोतरी अस्वाभाविक है। 2019-20 की पहली तिमाही मेंं केंद्र का शुद्ध कर राजस्व 6 फीसदी बढ़कर 2.51 लाख करोड़ रुपये हो गया। परंतु इस अवधि में राज्यों को हस्तांतरण 6 फीसदी घटकर 1.48 लाख करोड़ रुपये रह गया। यानी केंद्र को ज्यादा राशि मिली और राज्यों को कम। राज्यों को सकल कर राजस्व में केवल 37 फीसदी हिस्सेदारी मिली।
दीर्घकालिक नजरिया बताता है इस वर्ष पहली तिमाही में केंद्र के शुद्ध कर राजस्व और राज्यों को हस्तांतरण का रुझान 2018-19 और 2019-20 से एकदम उलट है। 2018-19 की पहली तिमाही में केंद्र के सकल कर राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी 40 फीसदी थी और अगले वर्ष यह घटकर 37 फीसदी रह गई। परंतु अप्रैल-जून 2020-21 में यह बढ़कर 50 फीसदी हो गई।
राज्यों को 2018-19 और 2019-20 में कम हुई हिस्सेदारी की शिकायत करने का पूरा हक है। परंतु क्या पहली तिमाही के आंकड़ों के मुताबिक वे चालू वर्ष में यह मुद्दा उठा सकते हैं? फिर भी कई राज्य चिंतित हैं क्योंकि उन्हें केंद्र से उनका हिस्सा नहीं मिल रहा।
शायद राज्य इसलिए चिंतित हैं क्योंकि उन्हें डर है कि पहली तिमाही का रुझान आने वाली तिमाहियों मेंं बरकरार नहीं रहेगा। अतीत के रुझान बताते हैं कि पहली तिमाही में हमेशा राज्यों को ज्यादा हिस्सा मिलता है जो बाद में घट जाता है। मसलन वर्ष 2018-19 में पूरे वर्ष का कर हस्तांतरण 7.61 लाख करोड़ रुपये रहा जो केंद्र के सकल कर संग्रह का 37 फीसदी था। यह पहली तिमाही के 40 फीसदी से कम था। सन 2019-20 में राज्यों को वर्ष भर में 6.5 लाख करोड़ रुपये मिले जो केंद्र के कुल कर राजस्व का 32 फीसदी था। यह पहली तिमाही के 37 फीसदी से कम था।
क्या राज्यों का भय अतिरंजित है? आने वाली तिमाहियों में पहली तिमाही के 50 फीसदी से चाहे जितनी गिरावट आए अगर कोई अनहोनी नहीं हुई तो सालाना हस्तांतरण 32-37 फीसदी से कम नहीं होगा।
एक संभावना यह है कि केंद्र शायद पहली तिमाही में 2019-20 के कर हस्तांतरण का बकाया चुका रहा हो जिसके चलते राज्यों को मिलने वाली राशि में इजाफा हुआ है। परंतु ऐसा तो हर वर्ष पहली तिमाही में होना चाहिए। तो पिछले साल यह 37 फीसदी और इस साल 50 फीसदी क्यों रहा? या शायद केंद्र ने राज्यों के पुराने बकाया को निपटाने की प्रक्रिया तेज की है ताकि फंड की कमी होने पर राज्यों की आलोचना का सामना नहीं करना पड़े। शायद अगली तिमाहियों में राज्यों की हिस्सेदारी को धीरे-धीरे कम करने की योजना हो। याद रहे कि मूल रूप से इस वर्ष केंद्र के सकल कर राजस्व में 30 फीसदी हिस्सेदारी मिलनी थी।
राज्यों की आशंका की एक और वजह है। इसका संबंध पंद्रहवें वित्त आयोग और वित्त मंत्रालय की उस हालिया चर्चा से है जो इस बात पर केंद्रित थी कि केंद्र बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिए संसाधन कहां से जुटा सकता है? विशेषज्ञों के मुताबिक यह वित्त आयोग के दायरे के बाहर की बात है। राज्यों को आशंका है कि उन्हें सरकारी बैंकों के पुनर्पूंजीकरण में केंद्र का बोझ साझा करने को कहा जा सकता है। इससे उनकी हिस्सेदारी कम होगी। पंद्रहवां वित्त आयोग पहले ही केंद्र के रक्षा और आंतरिक सुरक्षा व्यय के बराबर की कटौती उनके हिस्से में कर सकता है। इससे भी उनका हिस्सा घटेगा। चौदहवें वित्त आयोग ने 2015-16 में केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी 10 फीसदी बढ़ाकर 42 फीसदी कर दी थी। केंद्र सरकार ने इस फॉर्मूले को स्वीकार कर लिया था लेकिन उसने अधिभार और उपकर पर अधिक भरोसा शुरू कर दिया था जो राज्यों के साथ बांटा नहीं जाता। राज्यों में चल रही कई विकास योजनाओं में भी केंद्र की हिस्सेदारी कम की गई थी। 2014-15 केंद्र के सकल कर राजस्व में अधिभार और उपकर की हिस्सेदारी करीब 6 फीसदी थी लेकिन बीते दो वर्ष से यह 10 फीसदी से अधिक है। इससे राज्यों का हिस्सा घटा है। विकास योजनाओं पर व्यय कम करना भी राज्यों पर भारी पड़ रहा है। राज्यों का संदेह जुलाई 2019 में उस समय बढ़ गया जब केंद्र ने पंद्रहवें वित्त आयोग के कार्यक्षेत्र को बढ़ाते हुए रक्षा और आंतरिक सुरक्षा के लिए अलग व्यवस्था की बात कही। राज्यों को भय है कि यह व्यय उनके हिस्से से लिया जा सकता है। अब आयोग और वित्त मंत्रालय के बीच बैंकों में पूंजी डालने को लेकर चल रही चर्चा ने उन आशंकाओं को नए सिरे से परवान चढ़ाया है।