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दिल्ली में नए मुख्यमंत्री के लिए आसान नहीं राह

दिल्ली में भारी जीत के बावजूद भाजपा के नए मुख्यमंत्री को उपराज्यपाल और केंद्र के अधिकारों की चुनौतियों का सामना करना होगा। क्या भाजपा अपनी ही सरकार को पूरी ताकत दे पाएगी?

Last Updated- February 14, 2025 | 10:37 PM IST
BJP

मजा आ गया…! दिल्ली विधानसभा चुनाव में भारी जीत दर्ज करने के साथ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को लगभग 30 साल बाद सत्ता में लौटते देख पार्टी के एक पदाधिकारी ने चहकते हुए कुछ इस तरह अपनी प्रतिक्रिया दी। मगर उस पदाधिकारी ने यह भी कहा कि धमाकेदार जीत के बाद भी नए मुख्यमंत्री की राह आसान नहीं होगी। उनका इशारा दिल्ली में जीत के बाद उभरने वाले नए सत्ता समीकरणों की तरफ था।

पिछले कुछ वर्षों के दौरान दिल्ली के उप-राज्यपाल के अधिकारों का दायरा कई तरह से लगातार बढ़ता गया है। वर्ष 2023 में एक अध्यादेश (जो बाद में संसद में पारित किया गया) के जरिये राष्ट्रीय राजधानी नागरिक सेवा प्राधिकरण की स्थापना की गई। इस प्राधिकरण में मुख्यमंत्री, दिल्ली के मुख्य सचिव और दिल्ली के प्रमुख गृह सचिव शामिल हैं। यह प्राधिकरण अधिकारियों के तबादलों और नियुक्तियों के बारे में तथा अनुशासन से जुड़े मामलों में उप राज्यपाल को सुझाव दे सकता है। इसका सीधा मतलब है कि दिल्ली में जनता द्वारा चुनी हुई सरकार को अधिकारियों की नियुक्ति, स्थानांतरण या तैनाती का अधिकार नहीं है।

उच्चतम न्यायालय ने 5 अगस्त, 2024 को कहा कि निगम प्रशासन की विशेष जानकारी रखने वाले 10 लोगों को दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में नियुक्त करने का उप राज्यपाल (एलजी) का अधिकार उनके कार्यालय से जुड़ा संवैधानिक कर्तव्य है। न्यायालय ने कहा था कि वह इस विषय पर मंत्रिपरिषद के सहयोग एवं उसकी सलाह पर निर्भर नहीं हैं। यह मामला दिल्ली नगर निगम में 10 सदस्यों की नियुक्ति से जुड़ा था। तत्कालीन आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने यह कहकर उनकी नियुक्तियों का विरोध किया था कि केवल कानून-व्यवस्था, पुलिस और जमीन ही केंद्र के सीधे नियंत्रण में हैं और उप राज्यपाल बाकी सभी विषयों पर मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य हैं।

शीर्ष न्यायालय ने आम आदमी पार्टी का यह तर्क नहीं माना। न्यायालय ने इसके लिए केंद्र-दिल्ली सरकार के संबंधों को निर्धारित करने वाले कानूनों और अतीत में आए उन आदेशों का हवाला दिया जिनमें निर्वाचित सरकार और नियुक्त प्रशासकों के बीच संतुलन स्थापित करने का जिक्र था।

कुछ हफ्ते बाद ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उप राज्यपाल को संसद से पारित और दिल्ली सरकार पर लागू होने वाले किसी भी कानून के तहत कोई भी प्राधिकरण, बोर्ड, आयोग या सांविधिक निकाय स्थापित करने का अधिकार दे दिया। आप ने इस आदेश के विरोध की कोशिश भी नहीं की क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 239 और दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र प्रशासन अधिनियम, 1991 की धारा 45डी के तहत केंद्र को यह फैसला लेने का पूरा अधिकार है।

जब आप की सरकार थी तब भाजपा को राजधानी दिल्ली पर सख्ती से नियंत्रण रखने की जरूरत महसूस हो रही थी मगर अब उसकी अपनी सरकार और मुख्यमंत्री होंगे तब भी क्या उसके लिए ये अधिकार जरूरी रहेंगे? इस सवाल पर बहस होती रहेगी मगर इससे भी जरूरी सवाल यह है कि इतने सारे अधिकारों के स्वामी होकर भी क्या उप राज्यपाल दिल्ली के शासन-प्रशासन में अब नरम रुख अख्तियार करेंगे?

दिल्ली और केंद्र के रिश्तों का एक और पहलू है, जिस पर नजर होनी चाहिए। दिल्ली प्रशासन से जुड़े अधिकतर मामले गृह मंत्रालय के नियंत्रण में होते हैं। अगले कुछ सप्ताहों में भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का नाम तय हो जाएगा, जिसके बाद बहुत कुछ नए भाजपा अध्यक्ष और गृह मंत्री अमित शाह के बीच के समीकरण पर निर्भर रहेगा। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि दिल्ली को राज्य का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष भाजपा ने ही किया था और मदन लाल खुराना ने इसका नेतृत्व किया था।

जब आप सरकार की शक्तियां कम कर दी गईं तो भाजपा में ज्यादातर लोग यह सोचकर खुश थे कि दिल्ली संभालने के मामले में आप पर विश्वास नहीं किया जा सकता है। मगर भाजपा की पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग के समय दिल्ली जैसी थी अब कई मामलों में उससे बदतर हो गई है। भाजपा के अध्यक्ष यह बात समझेंगे और उनके मन में सहानुभूति भी होगी। मगर क्या उनका राजनीतिक कद इतना बड़ा होगा कि वह गृह मंत्री और उप राज्यपाल को समझा पाएं कि दिल्ली की निर्वाचित सरकार अब राष्ट्रीय राजधानी के हित में निर्णय लेने के लिए पूरी तरह सक्षम है?

एमसीडी फिलहाल आम आदमी पार्टी के नियंत्रण में है। केंद्र के पास दो विकल्प हैं। पहला, वह एमसीडी भंग करे और नए चुनाव कराए और दूसरा, आयुक्तों के जरिये निगम चलाए। इससे सत्ता एक ही जगह केंद्रित हो जाएगी और आप सोचेंगे कि यही होना है तो एमसीडी के चुनाव कराए ही क्यों जाते हैं।

भाजपा को इस बात का पूरा एहसास है कि आप की पकड़ बिल्कुल खत्म नहीं हुई है और कांग्रेस का भी थोड़ा-बहुत आधार है। आप 14 सीटों पर जितने वोटों से हारी है, उससे ज्यादा वोट उन सीटों पर कांग्रेस को मिले हैं। कम से कम एक सीट पर मजलिस-ए-इत्तहादुल मुस्लिमीन (एमआईएम) ने संघर्ष त्रिकोणीय बना दिया, जिससे मतों का बंटवारा हुआ और जिसका फायदा भाजपा (मुस्तफाबाद से मोहन सिंह बिष्ट) को हुआ। मान लेते हैं कि यह सब राजनीतिक समीकरण के बजाय महज गणित है।

मगर केंद्र सरकार के समक्ष भाजपा कमजोर दिखेगी तो आप बिना समय गंवाए उससे मुश्किल सवाल पूछना शुरू कर देगी। यूं भी सत्ता में रहने के बजाय विपक्ष में रहना आम आदमी पार्टी को अधिक सहज लगता है। इसकी संभावना तो नहीं है कि दिल्ली को चलाने के तौर-तरीकों में भाजपा कोई ठोस प्रशासनिक बदलाव लाएगी। लेकिन उसका शासन लोगों को कैसा नजर आए, यह उसे जरूर देखना और बदलना होगा अन्यथा मदनलाल खुराना के सभी त्याग व्यर्थ चले जाएंगे।

First Published - February 14, 2025 | 10:37 PM IST

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