भारत में पंपों पर पेट्रोल तथा डीजल की कीमतें निर्धारित करने की प्रणाली जटिल है। भारतीय वाहन चालक जून 2022 में एक लीटर डीजल के लिए 100 रुपये से अधिक कीमत दे रहे थे जबकि अंतरराष्ट्रीय कीमत 170 डॉलर प्रति बैरल थी।
इस समय वैश्विक कीमतें पहले से आधी रह गई हैं जबकि वाहन चालकों को प्रति लीटर पहले जैसी ही कीमत चुकानी पड़ रही है। घोषित नीति यह है कि पंप पर पेट्रोल-डीजल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में उनकी कीमत के अनुसार तय होगी।
सरकारी रिफाइनर तेल की आयात समता कीमत (आईपीपी)और निर्यात समता कीमत (ईपीपी) के आधार पर औद्योगिक कीमत निर्धारित करते हैं। पेट्रोल और डीजल के मामलों में वे 80 फीसदी आईपीपी और 20 फीसदी ईपीपी का इस्तेमाल करते हैं।
आयात समता कीमत पर पहुंचने के लिए अरब गल्फ एसऐंडपी प्लैट्स असेसमेंट कीमत का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें अरब के बंदरगाह से भारत तक का मालढुलाई का भाड़ा, बीमा, बंदरगाह शुल्क और कर शामिल होते हैं। रुपये और डॉलर की विनिमय दर का भी प्रभाव होता है।
इसके अलावा मुंबई बंदरगाह पर आपूर्ति कीमत का आकलन करने के बाद आंतरिक पाइपलाइन का व्यय और अन्य लॉजिस्टिक व्यय को शामिल करने के बाद वह कीमत तय होती है जिस पर तेल कंपनियां रिफाइनरी से तेल खरीदती हैं। आखिर में स्थानीय वितरण लागत और मार्केटिंग मार्जिन शामिल करके पंप पर तेल की कीमत तय होती है।
भारत पेट्रोल और डीजल के क्षेत्र में न केवल आत्मनिर्भर है बल्कि 2022-23 में उसने 58 अरब डॉलर के तेल उत्पादों का निर्यात भी किया। बहरहाल, राज्यों के रिफाइनरों को आयात समता कीमत का इस्तेमाल करने की इजाजत है। यह तर्क दिया जा सकता है कि भारत अपनी जरूरत के 87 फीसदी हिस्से के लिए जिस आयातित कच्चे तेल की कीमत पर निर्भर रहता है उसे मानक माना जाना चाहिए।
उदाहरण के लिए जून 2022 में डीजल और पेट्रोल की कीमत क्रमश: 171 डॉलर प्रति बैरल और 149 डॉलर प्रति बैरल थी। परंतु कच्चे तेल की कीमत 116 डॉलर प्रति बैरल थी जो डीजल से काफी कम थी। कच्चे तेल को मानक बनाने से कीमतों में कमी आती लेकिन इससे रिफाइनरों का मुनाफा भी कम होता।
ईंधन की कीमत तय करने का फॉर्मूला सरकारी तेल कंपनियों के पक्ष में झुका हुआ नजर आता है। रियायती रूसी तेल ने तेल विपणन कंपनियों का मुनाफा और बढ़ा दिया है। फरवरी 2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला किए जाने के बाद से सरकारी रिफाइनरों ने 30 करोड़ बैरल से अधिक रूसी कच्चा तेल खरीदा। 10 डॉलर प्रति बैरल की औसत रियायत के साथ यह बचत करीब 3 अरब डॉलर की है।
मई में भारत ने कच्चे तेल का जो आयात किया उसमें रूसी तेल की हिस्सेदारी 46 फीसदी रही। ऐसे में यह तर्क उचित ही है कि क्रूड बास्केट की कीमत के आकलन के भारतीय फॉर्मूले में रूसी ग्रेड भी नजर आना चाहिए। लेकिन यह बास्केट खाड़ी देश के क्रूड और ब्रेंट क्रूड को दर्शाती है जबकि सस्ते रूसी तेल की अनदेखी करती है।
गत वर्ष अप्रैल से रिफाइनरों ने कीमत संबंधी अपने फॉर्मूले का अनुसरण बंद कर दिया और कीमतों को अपरिवर्तित रखा। जबकि इस बीच अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमतों और विनिमय दर में काफी बदलाव आया।
निजी क्षेत्र के रिफाइनर और टोटाल, सऊदी अरामको और एडनॉक जैसे संभावित निवेशक इंतजार कर रहे हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि सरकार अपनी कीमत नीति और पंप पर कीमत तय करने की नीति दोनों की समीक्षा करे ताकि उपभोक्ताओं और निवेशकों की चिंता दूर की जा सके।
बाजार अर्थव्यवस्था की किसी भी अन्य वस्तु या सेवा की तरह ईंधन कीमतों का पारदर्शी और प्रतिस्पर्धी होना जरूरी है। संभव है कि सरकार कीमतों में तेज इजाफे की स्थिति में कुछ उपभोक्ताओं को राहत मुहैया कराना चाहे। ऐसा समर्थन सीधे उपभोक्ताओं को दिया जा सकता है या रिफाइनरों की क्षतिपूर्ति की जा सकती है। अस्पष्ट मूल्यांकन से संभावित निवेश प्रभावित होगा।