बीते एक वर्ष में देश में 38 नई यूनिकॉर्न (ऐसी स्टार्टअप जिनका मूल्यांकन 100 करोड़ डॉलर से अधिक हो) तैयार हुईं। यह तादाद देश की कुल यूनिकॉर्न की एक तिहाई है। देश में अब 93 यूनिकॉर्न हैं जिनका संयुक्त मूल्य 330 अरब डॉलर है। इनमें वे 18 यूनिकॉर्न शामिल नहीं हैं जिन्हें गत वर्ष चिह्नित किया था तथा जो सूचीबद्ध हैं या सूचीबद्धता की तैयारी में हैं। हमने 21 अन्य यूनिकॉर्न को इसमें शामिल नहीं किया। 15 को उनके तरीकों में बदलाव के कारण तथा छह अन्य को इसलिए कि उनका मूल्यांकन 100 करोड़ डॉलर से कम हो गया था। देश के कारोबारी परिदृश्य में बदलाव जारी है। देश के सूचीबद्ध यूनिकॉर्न में 88 फीसदी नयी सदी में शुरू हुए जबकि 66 फीसदी गत वर्ष। इनमें से केवल 15 फीसदी बीएसई 500 में हैं।
दुनिया भर में यूनिकॉर्न बढ़ी हैं और अब इनकी तादाद 1,000 से अधिक है। इनका कुल बाजार मूल्य 3.3 लाख करोड़ डॉलर यानी वैश्विक शेयर बाजार पूंजीकरण के तीन फीसदी से अधिक है। महज पांच वर्ष पहले 200 यूनिकॉर्न के साथ यह अनुपात एक फीसदी से कम था। पूंजी के इतिहास की बात करें तो ऋण हजारों वर्षों से है, शेयर पूंजी करीब 600 वर्ष पुरानी है और औपचारिक वेंचर कैपिटल महज चंद दशक पुराना है। सन 1960 के दशक के शुरुआती दिनों में उद्योग के पास कुछ लाख डॉलर की संपत्ति थी और लगभग सारी की सारी अमेरिका में। तब से उद्योग का भौगोलिक विस्तार हुआ है। यह यूरोप, चीन होते हुए भारत और लैटिन अमेरिका तक पहुंचा।
आकार भी बढ़ा तथा 2010 में वेंचर कैपिटल और निजी इक्विटी निवेश बढ़कर 50 अरब डॉलर हो गया तथा गत वर्ष यह 600 अरब डॉलर का स्तर पार कर गया। इसके तीन प्रमुख कारक हैं:
पहला, बदलता जनांकीय ढांचा, संपत्ति और आय की बढ़ती असमानता और वैश्विक व्यापार ने मुद्रास्फीति तथा ब्याज दरों को कम किया है। इससे संस्थागत परिसंपत्ति प्रबंधकों मसलन पेंशन, बीमा और सॉवरिन संपत्ति फंड्स ने और अधिक जोखिम लिया तथा पूंजी का बड़ा भंडार एकत्रित किया जो ज्यादा जोखिम लेकर भी वृद्धि हासिल करना चाहते हैं। वेंचर कैपिटल फंड्स में थोड़ा सा निवेश बड़ा प्रतिफल दिलाता है। अक्सर पांच फीसदी निवेश से 60 से 80 प्रतिशत प्रतिफल मिलता है। यह जोखिम भरा होता है और अधिकांश परिवार अपनी बचत यहां नहीं लगाना चाहते। दूसरी ओर बड़े संस्थान कुछ प्रतिशत राशि वेंचर कैपिटल को आवंटित करते हैं। दूसरा, पूंजी की आपूर्ति में इजाफे के साथ इसकी मांग भी बढ़ती है। भौतिक संपत्तियों के स्वामित्व के बजाय सॉफ्टवेयर, ब्रांड और आपूर्ति क्षेत्र की जटिलताओं में अप्रत्यक्ष दिखने वाला निवेश बढ़ रहा है। अमेरिका में ऐसा निवेश 1990 के दशक में बढऩा शुरू हुआ। इनमें जोखिम भी ज्यादा होता है और प्रतिफल भी। जब ये कारगर होते हैं तो असीमित लाभ हो सकता है। कुछ को बड़े नेटवर्क प्रभाव का भी फायदा मिलता है। बल्कि आकार के साथ लाभ बढ़ता जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि उद्योग से होने वाला लाभ चुनिंदा कंपनियों तक सीमित है। बहरहाल, इसका अर्थ यह भी है कि कई अन्य कंपनियां सफल नहीं हो पातीं और उनमें किया गया निवेश डूब जाता है। पूंजी के बैंक जैसे पारंपरिक माध्यम ऐसे निवेश को फंड नहीं करना चाहेंगे। तीसरा, नई प्रौद्योगिकी आधारित कंपनियां भी पहले की तुलना में बहुत तेज गति से बढ़ रही हैं। दुनिया भर में इंटरनेट का प्रभाव बढ़ रहा है जिससे नए कारोबारी मॉडल सामने आ रहे हैं और मूल्य शृंखला से कमियों को दूर कर रहे हैं।
ऐसी व्यवस्था में जोखिम पूंजी समृद्ध इलाकों से नई तकनीक और नए कारोबारी मॉडल की ओर स्थानांतरित होती है। यह दुनिया भर में उत्पादकता में इजाफे का अभिन्न अंग है। विकसित देशों समेत ज्यादातर अर्थव्यवस्थाएं छोटी कंपनियों को वृद्धिकारी पूंजी मुहैया कराने में संघर्ष करती हैं। खासतौर पर इसलिए कि बैंकों के मॉडल छोटे ऋण देने के लिए अनुकूल नहीं होते और इन कंपनियों के पास कुछ खास संपत्ति भी नहीं होती। उच्च जोखिम वाली परिसंपत्तियों में किए जाने वाले निवेश छोटे कारोबारों को पूंजी देने के लिए बेहतर तैयारी रखते हैं।
इन सभी कारकों से ढांचागत बातें जुड़ी हुई हैं लेकिन यह ध्यान देना अहम है कि मांग और आपूर्ति को चलाने वाले कारक स्वतंत्र हैं। नवाचार की गति कभी एकरूप नहीं रहती है और न ही पूंजी की आपूर्ति में एकरूपता रहती है। किसी भी अन्य बाजार की तरह निवेशकों का व्यवहार भेड़चाल वाला हो सकता है। खासकर शेयर बाजारों की हालिया सफलता ने गैर पारंपरिक फंड्स को भी आकर्षित किया है। बीता वर्ष भी उल्लेखनीय था जब निजी फंडिंग वाली व्यवस्था को पहली बार सूचीबद्ध व्यवस्था से जोड़ा गया था। हालांकि सभी प्रारंभिक पेशकश (आईपीओ) में निवेशकों की बेहतर रुचि नजर आई लेकिन तब से शेयरों के दाम तेजी से घटे हैं। इन कंपनियों का समेकित मूल्य आईपीओ के पहले के 32 अरब डॉलर के स्तर से सुधरकर सूचीबद्धता के समय तक 59 अरब डॉलर हो गया था लेकिन अब यह घटकर 40 अरब डॉलर रह गया है। ऐसे में सार्वजनिक बाजार निवेशकों को नुकसान हुआ लेकिन वेंचर कैपिटल तथा निजी इक्विटी कंपनियों को लाभ होने के कारण निजी निवेश का आना जारी रहा।
हमारी नजर में पूंजी उद्योग जगत की क्षमता से तेज गति से आयी और 50 फीसदी फंडिंग गैर पारंपरिक निवेशकों ने की। आने वाले एक दो वर्ष में ब्याज दर बढऩे पर यह गति धीमी पड़ सकती है। आर्थिक और भूराजनीतिक अनिश्चितता बढ़ी है और कई वैश्विक प्रौद्योगिकी कंपनियों के शेयरों में गिरावट आई है। भारत की यूनिकॉर्न की अर्थव्यवस्था के लिए महत्ता थोड़ी अधिक है। उनका संयुक्त बाजार मूल्य देश की सूचीबद्ध कंपनियों के बाजार पूंजीकरण के 10 फीसदी से अधिक है। अमेरिका में यह चार फीसदी, चीन में पांच फीसदी और वैश्विक औसत तीन फीसदी है।
इससे पता चलता है कि पूंजी की कमी से जूझ रही अर्थव्यवस्था को इस राशि की कितनी आवश्यकता है। गहरे बदलाव जारी हैं जो इस पूंजी से फंड होने वाले कारोबारों को वृद्धि प्रदान करते हैं। इनसे पाइप के जरिये पानी और स्मार्ट फोन के उपयोग के रूप में ग्रामीण बुनियादी ढांचे में तेज सुधार भी आ रहा है और यूपीआई भुगतान तथा फास्टैग लेनदेन के रूप में औपचारिकीकरण भी हो रहा है। इसके अतिरिक्त सेवा के रूप में सॉफ्टवेयर के रूप में मजबूत वैश्विक वृद्धि हासिल हो रही है। हमारे यूनिकॉर्न में काफी विविधता है। फिनटेक (क्रिप्टो समेत) से लेकर ई-कॉमर्स, एडटेक, उपभोक्ता क्षेत्र, लॉजिस्टिक और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र सभी तक ये विस्तारित हैं। यह विविधता कारोबारी क्षेत्र में भी मजबूती प्रदान करती है जिससे मध्यम अवधि के अनुमान बेहतर नजर आते हैं, भले ही निकट भविष्य में फंड की आपूर्ति धीमी हो जाए।
