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नए शहरों से बेहतर, मौजूदा आर्थिक केंद्रों को मजबूत करना है विकास की कुंजी

नए शहरों का निर्माण करने के बजाय मौजूदा आर्थिक केंद्रों को मजबूती प्रदान करना राज्यों के स्तर पर तेज वृद्धि हासिल करने में मदद करेगा। जानकारी दे रहे हैं शिशिर गुप्ता और ऋषिता

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शिशिर गुप्ता   
ऋषिता सचदेव   
Last Updated- May 06, 2025 | 10:21 PM IST

नए शहरों का निर्माण करने के बजाय मौजूदा आर्थिक केंद्रों को मजबूती प्रदान करना राज्यों के स्तर पर तेज वृद्धि हासिल करने में मदद करेगा। जानकारी दे रहे हैं शिशिर गुप्ता और ऋषिता सचदेव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आह्वान किया है कि 2047 तक देश को विकसित बनाने का लक्ष्य हासिल करना है। इसमें दो राय नहीं है कि राज्य सरकारें ही भविष्य के सुधार के एजेंडे को आगे ले जाएंगी लेकिन इस बात पर अभी भी विमर्श हो रहा है कि वृद्धि को गति देने के लिए क्या करना होगा। क्या राज्य सरकारों को मानव संसाधन या भौतिक संसाधनों में इजाफा करना चाहिए? क्या उन्हें मौजूदा शहरों पर ध्यान देना चाहिए अथवा नए शहरों के विकास पर? साथ ही, क्या सभी राज्यों को एक समान रणनीति के साथ आगे बढ़ना चाहिए?

देश के 20 बड़े राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि का गत 30 वर्षों का विश्लेषण बताता है कि राज्यों की वृद्धि को गति देने की दो प्रमुख धुरियां हैं: मजबूत विकास का गुण और विशेषीकृत प्रमुख आर्थिक केंद्र (केईसी) अथवा बड़े शहर। वृद्धि संबंधी गुणों की बात करें तो उनमें भौतिक पूंजी मसलन सड़क का घनत्व, सामाजिक पूंजी मसलन उच्च शिक्षा में सकल नामांकन या संचालन की गुणवत्ता मसलन श्रम बाजार का लचीलापन आदि शामिल हैं। केईसी को मुख्य रूप से उन जिलों के रूप में परिभाषित किया जाता है जिनकी शहरी आबादी 10 लाख से अधिक हो या जो राजधानी वाले शहर हों। ऐसे 58 केईसी सन 2000 में देश के 30 फीसदी जीडीपी के जिम्मेदार थे जो 2020 में बढ़कर 35 फीसदी हो गया। यह बताता है कि तेज वृद्धि हुई। वृद्धि के इस ढांचे से कुछ अहम संदेश उभरते हैं।

सबके लिए एक वृद्धि रणनीति नहीं: वृद्धि विशेषताएं बुनियादी तत्वों के रूप में काम करती हैं जबकि केईसी उत्प्रेरक का काम करते हैं। केवल राज्य विशेषताओं पर ध्यान केंद्रित करने से केईसी के सामने आने वाली बाध्यकारी बाधाओं को नजरअंदाज किया जा सकता है, जबकि केवल केईसी पर ध्यान केंद्रित करना वांछनीय नहीं है, क्योंकि हमें कमजोर विकास विशेषताओं के वातावरण में राज्य के विकास को सार्थक रूप से बढ़ाने वाले विकास के अलग-अलग क्षेत्रों के बहुत कम सबूत मिलते हैं। राज्यों को अपनी रणनीति इन दो बुनियादी धुरियों पर अपने प्रदर्शन के इर्दगिर्द तैयार करनी चाहिए।

उदाहरण के लिए बेहतरीन विशेषताओं के बावजूद महाराष्ट्र का वृद्धि संबंधी प्रदर्शन औसत रहा। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि 2000 से 2020 के बीच इसके केईसी की वैश्विक वृद्धि दर केवल 7 फीसदी के करीब रही। यह गुजरात और उत्तराखंड जैसे राज्यों के उलट है जिन्होंने ऐसी ही विशेषताओं के बीच तेज जीडीपी वृद्धि हासिल की। ऐसा दो अंकों की केईसी वृद्धि की बदौलत हुआ। महाराष्ट्र को उच्च भूमि कीमतों और मुंबई और पुणे में खराब परिवहन जैसे मुद्दों से निपटना चाहिए। उधर हरियाणा में तेज वृद्धि काफी हद तक गुरुग्राम के 2000 से 2020 के बीच के सालाना 10 फीसदी से अधिक के जोरदार विकास की बदौलत है। राज्य की वृद्धि की गति को बरकरार रखने के लिए सामाजिक और भौतिक पूंजीगत मानकों में सुधार करना आवश्यक है।

वृद्धि में सुधार करने में राज्यों की अहम भूमिका: नौ चिह्नित वृद्धि मानकों में से छह राज्य सूची में हैं- अपराध, राजकोषीय घाटा, स्वास्थ्य सेवा, पारेषण एवं वितरण क्षति, श्रम सुधार और भू नीतियां। ऐसे में इन पर राज्यों का पूरा नियंत्रण रहता है। इसी तरह केईसी बड़े शहरी केंद्र है जिन पर शहरी स्थानीय निकायों का नियंत्रण रहता है। बेहतर प्रबंधन वाले शहरी केंद्र अपने कारोबारों की उत्पादकता बढ़ाते हैं और वृद्धि को गति देते हैं। चूंकि शहरी स्थानीय निकाय राज्य सरकारों के प्रति जवाबदेह होते हैं इसलिए राज्यों को एक बार फिर प्रमुखता मिल रही है।

यहां तक कि मजबूत राज्यों को भी काफी आगे आना होगा। चीन के वृद्धि केंद्र मसलन शांघाई और पेइचिंग चार दशकों से सालाना 10 फीसदी से ज्यादा की दर से विकसित हो रहे हैं जबकि हमारे बेहतरीन प्रदर्शन वाले केईसी भी दो दशकों से 7 से 10 फीसदी की दर से बढ़ रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप शांघाई और पेइचिंग का जीडीपी आज 500 अरब डॉलर का स्तर पार कर चुका है जबकि हमारे सबसे बड़े केईसी यानी मुंबई का जीडीपी करीब 150 अरब डॉलर का है। इसी तरह केरल और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य जहां 75 वर्ष की देश में सबसे अधिक जीवन प्रत्याशा है, वे विश्व स्तर पर 66वें पर्सेंटाइल पर हैं।

विशेषज्ञता अहम लेकिन उसे नियंत्रित नहीं किया जा सकता: 2000 से 2020 के दौरान केईसी ने आमतौर पर वृद्धि के मामले में अपने संबंधित राज्यों को सालाना 1-3 फीसदी अंकों से पछाड़ दिया। तेज वृद्धि की प्राथमिक वजह है क्षेत्रवार विशेषज्ञता। विशेषज्ञता तब उत्पन्न होती है जब एक खास क्षेत्र के कारोबारों को एक खास जगह पर निवेश करना उचित लगता है और वे उसे आर्थिक गतिविधियों के एक बड़े केंद्र में बदलते हैं। बेंगलूरु कंप्यूटर सेवा केंद्र के रूप में उभरा क्योंकि कर्नाटक में प्रशिक्षित कर्मी बड़ी तादाद में थे। उत्तराखंड का वाहन हब या हिमाचल प्रदेश का औषधि केंद्र के रूप में उभार इसलिए हुआ क्योंकि केंद्र सरकार ने 2003 में विशेष औद्योगिक प्रोत्साहन पैकेज घोषित किए थे। केईसी में विशेषज्ञता नैसर्गिक रूप से पैदा होती है, उसे गढ़ा नहीं जा सकता।

वृद्धि में पूंजी बनाम श्रम: पूंजी गहन विशेषज्ञता और वृद्धि के बीच तगड़ा संबंध है जबकि श्रम गहन विशेषज्ञता के साथ रिश्ता कमजोर है। श्रम गहन उद्योगों के सबसे प्रमुख केईसी की बात करें तो वे हैं पंजाब में लुधियाना (कपड़ा), तमिलनाडु में कोयंबत्तूर (कपड़ा) और उत्तर प्रदेश में आगरा (चमड़ा)। इन्हें भी दो अंकों में वृद्धि नहीं हासिल हुई। इसके विपरीत पूंजी गहन केंद्र मसलन उत्तराखंड में उधम सिंह नगर (वाहन) और हरिद्वार (मशीनरी), हिमाचल प्रदेश में सोलन (रसायन और मशीनरी) तथा गुजरात में जामनगर (पेट्रोलियम) आदि सभी ने 2000 से 2020 के बीच दो अंकों में वृद्धि हासिल की। श्रम गहन विनिर्माण के धीमे प्रदर्शन ने तेज वृद्धि हासिल करने की इच्छा रखने वाले राज्यों के लिए चुनौती उत्पन्न की है। यह एक बड़ी नीतिगत पहेली बनी हुई है।

वृद्धि के कम होने के जोखिम: देश में केईसी अपेक्षाकृत अच्छी तरह से बिखरे हैं। एक अधिक वितरित मॉडल की तलाश करने से वृद्धि में धीमापन आ सकता है। भारत की सरकारों ने निरंतर वृद्धि को अधिकतम करने का प्रयास किया है जबकि इस दौरान वे क्षेत्रीय असमानता को दूर करना चाहती हैं। परिभाषा के स्तर पर देखें तो केईसी सभी राज्यों में मौजूद हैं जबकि चीन जैसे देशों के इनका प्रभाव केवल पूर्वी क्षेत्रों में केंद्रित है। अगर हम अधिक विस्तृत मॉडल को अपनाते हैं तो वृद्धि में धीमापन आ सकता है क्योंकि इसमें संसाधनों के वितरण के कारण लाभ के बंट जाने की संभावना है।

सरकार को मौजूदा केंद्रों को सुधारने के काम को प्राथमिकता देते हुए नए उभरते केंद्रों को पोषित करना चाहिए बजाय कि नए शहर तैयार करने के। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें तैयार होकर परिणाम देने में बहुत अधिक समय लग सकता है।

उदाहरण के लिए गुरुग्राम को उत्तर भारत का केंद्रीय कारोबारी जिला बनने में 15-20 साल का समय लगा, जबकि उसके पास दिल्ली से नजदीकी, एयरपोर्ट से करीबी और जमीन की उपलब्धता जैसे तमाम सकारात्मक पहलू थे। वृद्धि को बढ़ाने के लिए जहां क्षेत्रीय असमानता को दूर करना होगा, वहीं संसाधनों का प्रवाह भी मौजूदा और उभरते वृद्धि केंद्रों की ओर होना चाहिए। अगर भारत को 2047 तक विकसित भारत बनने का लक्ष्य पूरा करना है तो राज्य सरकारों को मजबूत बुनियादी ढांचा विकसित करने पर जोर देना होगा जहां अहम आर्थिक केंद्र तैयार हो सकें।

(लेखक सीएसईपी के क्रमश: सीनियर फेलो और एसोसिएट फेलो हैं। लेख में उनके निजी विचार हैं)

First Published : May 6, 2025 | 10:21 PM IST