व्हाट्सऐप पर 21 जनवरी को एक क्लिप वायरल हुई जिसमें एक भीषण सड़क हादसा कार के डैशबोर्ड कैमरे में कैद हुआ था। यह हादसा मुंबई में अटल सेतु पर हुआ था। अटल सेतु शिवड़ी और न्हावा शेवा को जोड़ने वाला 21 किलोमीटर लंबा ट्रांस हार्बर लिंक है, जिसे हाल ही में वाहनों के लिए खोला गया है।
क्लिप में दिखा कि मरून रंग की एक तेज रफ्तार मारुति इग्निस कार आगे चल रही कार को बाईं तरफ से ओवरटेक करने की कोशिश करती है। मगर इग्निस का संतुलन बिगड़ जाता है और डिवाइडर से टकराकर वह कई पलटियां खा जाती है। शुक्र है कि उसमें सवार लोग बाल-बाल बच गए। मैं इस हादसे के बमुश्किल एक घंटे बाद ही वहां से गुजरा।
उल्वे से मुंबई वापसी के दौरान मैंने देखा कि दुर्घटनाग्रस्त कार को मौके से हटाया जा रहा था। यह हादसा और भी अधिक गंभीर हो सकता था। पुल पर दोनों ओर कारें लाइन से खड़ी थीं और लोग यहां के खूबसूरत नजारे को सेल्फी में कैद कर रहे थे। खास बात यह कि इस पुल पर रुकने या गाड़ी खड़ी करने की पूरी तरह मनाही है, लेकिन लोग एक घंटे पहले हुए भीषण हादसे के बावजूद यहां खतरे से पूरी तरह बेपरवाह दिख रहे थे। यहां तैनात पुलिस अधिकारी लोगों से पुल पर कारें नहीं रोकने की गुजारिश करते हुए व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए मशक्कत कर रहे थे।
डराने वाले तथ्य : हम खूब आधुनिक एक्सप्रेसवे, राजमार्ग और बड़े-बड़े पुल बना रहे हैं, लेकिन विश्व में सबसे ज्यादा सड़क हादसे और मौतों वाला देश होने का अपमानजनक धब्बा अपने ऊपर से नहीं हटा पा रहे हैं। पूरे विश्व में हर घंटे होने वाली लगभग 150 घातक सड़क दुघर्टनाओं में से लगभग 10 प्रतिशत भारत में होती हैं। इनमें आधे से अधिक राष्ट्रीय राजमार्गों और हाइवे पर होती हैं। देश में ओवरस्पीड, सड़कों की खराब इंजीनियरिंग एवं डिजाइन तथा पर्याप्त ट्रामा केंद्रों का अभाव जैसे कारक घातक सड़क दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार होते हैं।
सड़क की खराब इंजीनियरिंग और डिजाइन के कारण ही 4 सितंबर, 2022 को टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री और उनके दोस्त जहांगीर पंडोले की भीषण कार हादसे में जान चली गई थी। शुरुआती रिपोर्ट में हादसे का कारण तय सीमा से अधिक गति को बताया गया था, लेकिन बाद में अंतरराष्ट्रीय सड़क संगठन (आईआरएफ) द्वारा की गई गहन जांच में हादसे का असली कारण सामने आया, जिसमें बताया गया कि यह हादसा सड़क के गलत डिजाइन की वजह से हुआ था।
आईआरएफ की रिपोर्ट से पता चला कि तीन लेन वाला अहमदाबाद- मुंबई हाइवे हादसे वाली जगह अचानक दो लेन हो जाता है। रिपोर्ट में एक तथ्य यह उभर कर आया कि कार की पिछली सीट पर बैठे मिस्त्री और उनके मित्र ने सीट बेल्ट नहीं बांधी थी, यदि उन्होंने सीट बेल्ट लगाई होती तो उनकी जान बच सकती थी।
पिछले कुछ वर्षों में भीषण दुर्घटनाएं रोकने के लिए सड़कों में खराब इंजीनियरिंग व डिजाइन समेत अन्य खामियों को दूर करने की अनेक कोशिशें हुई हैं। लगभग 9,000 ब्लैकस्पॉट (जहां बार-बार सड़क हादसे होते हैं) चिह्नित किए गए। इसके अलावा, ‘शून्य घातक हादसा कॉरिडोर’ विकसित किए गए। इसी प्रकार का एक कॉरिडोर पुराने मुंबई-पुणे राष्ट्रीय राजमार्ग 48 पर बनाया गया है। इन प्रयासों का असर भी दिखा और 2021 तक इनकी वजह से तीन साल की अवधि में सड़कों के घातक हादसों में मौतों की संख्या 56 फीसदी तक कम हो गई।
सेव लाइफ फाउंडेशन जैसे गैर सरकारी संगठनों ने हादसे रोकने के लिए लोगों के बीच जागरूकता कार्यक्रम चलाए। उन्होंने केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के साथ-साथ राज्य सरकारों के साथ सहभागिता से सबूत आधारित जागरूकता कार्यक्रम चलाए। लोनावाला की हालिया यात्रा के दौरान हमने पाया कि अब बॉडी से बाहर तक सरिया लादे चलने वाले ट्रक दिखाई नहीं देते।
देश के अन्य हिस्सों में ट्रकों पर बाहर तक सरिया लादकर चलने की प्रवृत्ति भले अभी पूरी तरह बंद नहीं हुई हो, लेकिन सेव लाइफ फाउंडेशन जैसे संगठनों का धन्यवाद करना होगा, जिनके जागरूकता कार्यक्रमों की वजह से ऐसे लापरवाहीपूर्ण तरीके से सामान लादकर चलने की आदतों में कमी आई है। यही नहीं, वाहनों पर खतरनाक तरीके से सरिया आदि के लदान को रोकने के लिए 2014 में बनाए गए नियमों को राज्य सरकारों ने भी आगे बढ़कर सख्ती से लागू किया।
इन सब प्रयासों के बावजूद सबसे मुश्किल काम लोगों के व्यवहार में बदलाव लाना है। अटल सेतु पर मैंने 80 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से मध्य लेन में गाड़ी चलाने का निश्चय किया था, लेकिन दायीं लेन में गाडि़यां करीब 150 किलोमीटर की रफ्तार से दौड़ रही थीं, जबकि इस पुल पर अधिकतम गति सीमा 100 किलोमीटर प्रतिघंटा ही है। कई बार इन तेज रफ्तार गाडि़यों के किनारे से अचानक मध्य लेन में आ जाने के कारण मुझे अपनी गाड़ी की रफ्तार धीमी करनी पड़ी।
लाइव स्पीड गन और ई-चालान के माध्यम से जुर्माना लगाकर चालकों को ओवरस्पीड में गाड़ी चलाने से रोकने की कोशिश की जाती है। परंतु असली मुद्दा यह है कि लोग एक्सप्रेसवे पर तेज रफ्तार के खतरों को नजरअंदाज क्यों करते हैं। व्यवहार डिजाइन फर्म फाइनल-माइल, जो अब फ्रैक्टल समूह का हिस्सा है, का तर्क है कि गाड़ी चलाना एक गैर-संवेदी या लापरवाहीपूर्ण गतिविधि है। जब लोग एक्सप्रेसवे पर गाड़ी चलाते हैं, तो उनमें अन्य चालकों के साथ दुर्घटना होने के खतरे या उनके प्रति सहानुभूति की भावना नहीं होती। परिणामस्वरूप, चालक हादसे रोकने के लिए पारंपरिक सड़क सुरक्षा संकेतों को भी नजरअंदाज करते चलते हैं।
तेज रफ्तार के हिसाब से डिजाइन एक्सप्रेसवे पर लोगों को दुर्घटना के बारे में सचेत करने के लिए विशिष्ट संकेत लगे होते हैं। यहां दुर्घटना संभावित क्षेत्र होने का एहसास दिलाने के लिए कुछ ब्लैकस्पॉट पर सफेद धारियां बनाई जाती हैं, ताकि यहां चालक अपनी गाड़ी की रफ्तार कुछ धीमी कर ले और संभलकर चले। यही नहीं, इन एक्सप्रेसवे पर चालकों को सचेत करने के लिए अधिक से अधिक ग्राफिक और दृश्यात्मक संकेत भी लगाए जाते हैं।
ऐसे में व्यापक स्तर पर बदलाव लाने के लिए क्या किया जाए? स्पष्ट रूप से इसका जवाब पुलिस और इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस व्यवस्था में सुधार करना, बेहतर बुनियादी ढांचा विकसित करना और सुरक्षित कारें सड़कों पर लाना ही है। हमें ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने में भी अधिक कठोर नियमों को अपनाना होगा। इसी के साथ बेहतर सुविधाओं वाले ट्रॉमा सेंटर बनाने की जरूरत है, ताकि सड़क दुर्घटनाओं में मौतों की संख्या को कम किया जा सके। इन सबसे ऊपर सड़कों पर चलते हुए सबकी सुरक्षा का ख्याल रखने के लिए लोगों में व्यापक स्तर पर जागरूकता लानी होगी।
(लेखक फाउंडिंग फ्यूल के सह-संस्थापक हैं)