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आधारभूत संरचना से जुड़ी समस्याओं का समाधान?

बदल रही परिस्थिति में नैबफिड को सफल होना चाहिए। बुनियादी ढांचा परियोजनाएं एक नया संपत्ति वर्ग हैं जो अच्छा रिटर्न देती हैं। बता रहे हैं तमाल बंद्योपाध्याय

Last Updated- June 21, 2024 | 9:10 PM IST
आधारभूत संरचना से जुड़ी समस्याओं का समाधान?, Is Nabfid the answer to India's infra woes?

देश में 2021 में स्थापित विकास वित्त संस्थान, राष्ट्रीय अवसंरचना वित्त पोषण और विकास बैंक (नैबफिड) के चेयरमैन केवी कामत का केबिन मुंबई के बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स की द कैपिटल बिल्डिंग की 15वीं मंजिल पर मौजूद है और यहां से आईसीआईसीआई बैंक मुख्यालय थोड़ी ही दूरी पर है जिसका नेतृत्व उन्होंने 2009 तक किया था।

इसके बाद छह साल यानी करीब 2015 तक वह बैंक के अध्यक्ष रहे, जिसका विलय इसकी मूल कंपनी आईसीआईसीआई लिमिटेड के साथ हो गया था। उन्हें शायद उन दिनों की याद आती होगी जब एक प्रोजेक्ट फाइनैंस संस्थान के पास अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए बैंक के साथ विलय करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।

लेकिन नैबफिड के अध्यक्ष के रूप में अब उन्हें दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में बुनियादी ढांचे के लिए पूंजी का इंतजाम करने के लिए एक बेहतरीन नजारा देखने को मिलता है, जिसका नेतृत्व इसके प्रबंध निदेशक (एमडी) राजकिरण राय करते हैं।

नैबफिड ने वित्त वर्ष 2024 में 1 लाख करोड़ रुपये मूल्य तक की मंजूरी दी। मार्च तक ऋण वितरण 36,000 करोड़ रुपये था और मई के अंत तक यह 45,000 करोड़ रुपये को पार कर गया। इसमें से लगभग 50 प्रतिशत 15-25 वर्षों का दीर्घकालिक ऋण हैं। राय को उम्मीद है कि चालू वित्त वर्ष में 2 लाख करोड़ रुपये की मंजूरी मिल जाएगी और ऋण वितरण 93,000 करोड़ रुपये के स्तर को पार कर जाएगा।

भारतीय स्टेट बैंक के पूर्व प्रबंध निदेशक राय ने अगस्त 2022 में यह कार्यभार संभाला था। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा बजट भाषण में नैबफिड की स्थापना की घोषणा के आठ महीने बाद अक्टूबर 2021 में कामत इस संस्थान से अध्यक्ष के रूप में जुड़े। दिसंबर 2022 में जम्मू कश्मीर में एक सुरंग परियोजना के लिए फंड का पहला वितरण किया गया था, जिसे काजीगुंड एक्सप्रेसवे प्राइवेट लिमिटेड संचालित कर रही थी।

अक्षय ऊर्जा वाली बिजली और पारंपरिक बिजली उत्पादन परियोजनाएं इसके पोर्टफोलियो में आधे से अधिक हैं और इसके बाद सड़कें (एक चौथाई से थोड़ा अधिक) और रेलवे हैं। इसने अब तक दूरसंचार, सिटी गैस वितरण, बिजली ट्रांसमिशन तथा वितरण में भी हाथ आजमाया है।

नैबफिड को 1 लाख करोड़ रुपये की अधिकृत शेयर पूंजी के साथ स्थापित किया गया है और इसका मुख्य उद्देश्य ऋण और इक्विटी निवेश के माध्यम से बुनियादी ढांचे की फंडिंग और दीर्घकालिक बॉन्ड तथा डेरिवेटिव बाजार तैयार करना है। भारत के वित्तीय बाजार ढांचे में बॉन्ड बाजार हमेशा से एक चुनौतीपूर्ण मुद्दा रहा है।

वर्ष 2006 के केंद्रीय बजट में कॉरपोरेट बॉन्ड बाजार तैयार करने के वास्ते अहम मुद्दों का हल करने के लिए एक उच्च-स्तरीय विशेषज्ञ समिति नियुक्त की गई थी लेकिन पूंजी बढ़ाने में बहुत कम प्रगति हुई है। वर्ष 2016 से, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बड़ी कंपनियों को अपने दीर्घकालिक ऋण का कुछ हिस्सा कॉरपोरेट बॉन्ड बाजार से जुटाने पर जोर दिया है।

नैबफिड की चुकता पूंजी 20,000 करोड़ रुपये है। इसके अतिरिक्त, 5,000 करोड़ रुपये का अनुदान भी है। पिछले साल इसने मुख्य रूप से घरेलू बीमा कंपनियों और पेंशन फंडों से 10 और 15 साल के दो चरणों के माध्यम से 19,500 करोड़ रुपये जुटाए हैं।

नए वितरण के लिए नैबफिड ने कई बैंकों से 20,000 करोड़ रुपये के ऋण का इंतजाम किया है। हरित जलवायु कोष सहित सौर, पवन ऊर्जा और शहरी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए दीर्घकालिक फंड के लिए कुछ बहुपक्षीय एजेंसियों के साथ बातचीत भी चल रही है। यह चालू वर्ष की अंतिम तिमाही में बाहरी वाणिज्यिक उधारी जुटाने की योजना को अंतिम रूप दे रहा है।

भारत में बुनियादी ढांचे की फंडिंग कभी आसान नहीं रही है। आजादी मिलने के बाद दीर्घावधि की परियोजनाओं, विशेषतौर पर बुनियादी ढांचे की फंडिंग के लिए ऋणदाताओं के एक विशेष वर्ग को बढ़ावा दिया गया जिसे विकास वित्त संस्थान (डीएफआई) कहा गया। ये तब तक अच्छी तरह चलते रहे जब तक उन्हें आरबीआई के मुनाफे से तैयार हुई, कम लागत वाले नैशनल इंडस्ट्रियल क्रेडिट (दीर्घावधि के परिचालन के लिए) फंड की सुविधा मिली थी।

उन्होंने सरकारी गारंटी वाले बॉन्ड के जरिये भी किफायती पूंजी जुटाई। पहली बार डीएफआई, भारतीय औद्योगिक वित्त निगम लिमिटेड की स्थापना 1948 में हुई थी। इसके बाद 1955 में आईसीआईसीआई और 1964 में भारतीय औद्योगिक विकास बैंक की स्थापना हुई। 1990 के दशक में सस्ती पूंजी का स्रोत बंद हो जाने के बाद से उनके लिए मुश्किलें खड़ी हो गईं और इसके चलते उनकी संपत्ति और देनदारियों में भारी असंतुलन पैदा हो गया।

इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फाइनैंस कंपनी की स्थापना 1997 में मुख्य रूप से निजी क्षेत्र के बुनियादी ढांचे के विकास और परियोजना से जुड़ी पूंजी जुटाने के लिए की गई थी। हालांकि, यह भी सफल नहीं हो सका। इस क्षेत्र में किए गए एक अन्य प्रयोग में भारतीय अवसंरचना वित्त कंपनी लिमिटेड (आईआईएफसीएल) भी शामिल है।

इसका लक्ष्य ‘भारत में विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचे के संवर्धन एवं विकास के लिए नए वित्तीय उपकरण’ मुहैया कराना है। वर्ष 2006 में स्थापित हुए, आईआईएफसीएल की 31 मार्च, 2023 तक बकाया ऋण राशि 42,271 करोड़ रुपये थी। वित्त वर्ष 2024 में, इसने 42,309 करोड़ रुपये की मंजूरी दी और 33,356 करोड़ रुपये का वितरण किया।

लगभग 100 कर्मचारी 23,000 वर्ग फुट के नैबफिड कार्यालय में काम करते हैं, जो भारत के विकास गाथा के लिए अहम बुनियादी ढांचे की फंडिंग में एक नया अध्याय तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं। शीर्ष-स्तर के कर्मचारी अनुबंध पर हैं जबकि प्रवेश स्तर पर, नैबफिड अपने पेरोल पर सीए, एमबीए और स्नातकोत्तर इंजीनियरों की भर्ती कर रहा है ताकि एक टीम तैयार की जा सके।

फंडिंग के साथ-साथ, यह लेन-देन से जुड़ी परामर्श सेवाओं के लिए एक परियोजना मूल्यांकन टीम भी तैयार कर रहा है जो आगामी सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) परियोजनाओं का तकनीकी अध्ययन करेगा। इस संबंध में उसने पहले ही अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। विचार यह है कि बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की पाइपलाइन तैयार करने में मदद मिले। इसका लक्ष्य राष्ट्रीय बुनियादी ढांचा पाइपलाइन के पूरक के रूप में बुनियादी ढांचा क्षेत्र के लिए एक डेटा भंडार भी बनाना है।

भले ही इस क्षेत्र में पहले के प्रयास विफल रहे हों लेकिन नैबफिड को सफल होना चाहिए क्योंकि पूरा पारिस्थितिकी तंत्र बदल रहा है। निवेशकों के नजरिये से देखा जाए तो बुनियादी ढांचा परियोजनाएं एक नया परिसंपत्ति वर्ग हैं जो बेहतर रिटर्न देने की गुंजाइश रखता है। मैं नई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के बारे में बात नहीं कर रहा हूं।

वे परियोजनाएं जो पूरी हो चुकी हैं और वे भुनाए जाने के लिए तैयार हैं, वे भी विदेशी पूंजी और निजी इक्विटी के अलावा खुदरा निवेशकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन सकती हैं। अक्टूबर 2022 में, केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने नैशनल हाईवेज इन्फ्रा ट्रस्ट (एनएचएआई इनविट) गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर (एनसीडी) की सूचीबद्धता के माध्यम से इसके रिटेल में प्रवेश को औपचारिक रूप से दर्शाने के लिए बंबई स्टॉक एक्सचेंज में इसकी शुरुआत की।

एनसीडी का एक-चौथाई हिस्सा खुदरा निवेशकों के लिए आरक्षित था। इनविट के दूसरे चरण में इसने हर वर्ष 8.05 प्रतिशत प्रतिफल की पेशकश की और इसकी ओपनिंग के सात घंटों के भीतर लगभग सात गुना अभिदान मिला।

इनविट, या इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट, एक म्युचुअल फंड की तरह है, जो निजी और संस्थागत निवेशकों की पूंजी को सीधे बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश करने और आमदनी के एक हिस्से को रिटर्न के रूप में हासिल करने में मददगार होता है। निवेशकों का एक नया वर्ग इन्फ्रा को परिसंपत्ति वर्ग के रूप में मानने के लिए तैयार है क्योंकि सभी घटक चाहे वह सरकार, वित्तीय संस्थान और कॉरपोरेट जगत हो, उन्होंने पिछली गलतियों से सीखा है।

परियोजना की फंडिंग के क्षेत्र में पिछले दशक की शुरुआत में काफी कुछ गड़बड़ था जिसमें पर्यावरणीय मंजूरी का न मिलना, अदालतों द्वारा परियोजनाओं पर रोक लगाना, कंपनियों का टाल-मटोल करना और बैंकों की खराब संपत्ति का बढ़ना शामिल है। बैंकों के फंसे कर्जों में सर्वाधिक योगदान देने वालों में दूरसंचार, बिजली, ईपीसी (इंजीनियरिंग, खरीद और निर्माण) और इस्पात जैसे चार संकटग्रस्त क्षेत्र शामिल हैं।

नियामक ने दिसंबर 2015 और मार्च 2017 के बीच छह तिमाहियों में एक परिसंपत्ति की गुणवत्ता समीक्षा के जरिये बैंकों को अपनी बैलेंसशीट बेहतर बनाने के लिए मजबूर किया। नतीजतन, बैंकिंग प्रणाली अब जोखिम से उबरने के लिए तैयार है क्योंकि 26 सूचीबद्ध बैंकों की शुद्ध गैर-निष्पादित संपत्ति 1 प्रतिशत से कम है और उद्योग ने वित्त वर्ष 2024 में अब तक का सबसे अधिक 3.2 लाख करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ कमाया।

वर्ष 2016 में बनी दिवालियापन एवं शोधन अक्षमता संहिता ने तंत्र से राजनीतिक संबंधों का लाभ हासिल करने वाले पूंजीपतियों को बाहर किया है और सरकार लौह अयस्क तथा कोयला खदानों के आवंटन और परियोजना से जुड़ी बाधाएं दूर करने के लिए सक्रिय हो गई हैं। अब किसी भी परियोजना में निवेश से पहले भूमि अधिग्रहण और पर्यावरणीय मंजूरी मिल जाती है।

फंडिंग का ढांचा भी बदल रहा है। बीमा, पेंशन और भविष्य निधि का बड़ा कोष क्रमशः लगभग 75 लाख करोड़ रुपये और 45 लाख करोड़ रुपये हो सकता है और यह दीर्घकालिक निवेश की तलाश में है। इसके अतिरिक्त, बाजार से धन जुटाया जा सकता है। बैंकिंग प्रणाली अब फंडिंग का एकमात्र स्रोत नहीं रह जाएगी। नैबफिड, बॉन्ड बाजार और दीर्घकालिक विदेशी और घरेलू फंड बुनियादी ढांचे के लिए मिश्रित फंडिंग के विकल्प तैयार करेगा, जिससे बैंकिंग प्रणाली के लिए जोखिम कम होगा।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने फरवरी 2021 के अपने बजट में नैबफिड के गठन की घोषणा करते हुए कहा था, ‘इस डीएफआई के लिए तीन वर्षों में कम से कम 5 लाख करोड़ रुपये का ऋण पोर्टफोलियो रखने की महत्त्वाकांक्षा है।’ यह लक्ष्य से काफी पीछे है लेकिन यह एक संस्था के लिए ऐसी महत्त्वाकांक्षा भी है जो हकीकत नहीं बन सकता है, खासतौर पर एक ऐसे संस्थान के लिए जो खुद को भारत के बुनियादी ढांचे की समस्याओं के पूर्ण समाधान के रूप में पेश कर रहा था।

क्या यह सफल होगा? यह कहना जल्दबाजी होगी। इस बीच, आरबीआई ने मई में अधूरी पड़ी परियोजनाओं के लिए विवेकपूर्ण ढांचे का मसौदा जारी किया है। यह मसौदा नाबार्ड सहित सभी बुनियादी ढांचा ऋणदाताओं के लिए संभावित रूप से चुनौती बन सकता है।

First Published - June 21, 2024 | 9:09 PM IST

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