यह वर्ष अब तक निवेशकों के लिए बहुत मुश्किल साबित हुआ है। उनके पास छिपने की कोई जगह नहीं थी और बाजार की अस्थिरता भी बढ़ी। कुछ ही महीनों में हमने जिंस कीमतों में चौथी सबसे तीव्र वृद्धि देखी। इस बीच रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया और बीते कुछ सप्ताह में तीसरी सबसे तेज गिरावट भी देखने को मिली। बॉन्ड प्रतिफल में भी काफी अस्थिरता नजर आई और वर्ष के आरंभ से ही इसमें उतारचढ़ाव का माहौल रहा। आंकड़ों पर नजर डालें तो वित्तीय बाजार कारोबारियों के लिए छिपने की कोई जगह नहीं थी। अगर आपने कच्चे तेल (ब्रेंट क्रूड के दाम 30 जून तक 47.6 फीसदी बढ़े) या व्यापक तौर पर जिंस में निवेश न किया हो (सीआरबी जिंस सूचकांक छह महीने में 25.3 फीसदी बढ़ा) तब तक संभावना यही है कि आप घाटे में हों। सरकारी प्रतिभूतियां 9.4 फीसदी नीचे थीं, एमएससीआई उभरते बाजार सूचकांक 17.6 फीसदी नीचे था, एसऐंडपी 500 सूचकांक 20 फीसदी गिरावट पर था और नैसडेक 29.2 फीसदी नीचे रहा (सभी कुल प्रतिफल)।
यह बहुत भयानक प्रदर्शन था और संदर्भ के लिए बताएं कि 1962 के बाद यह अमेरिकी शेयरों के सबसे खराब प्रदर्शन वाली पहली छमाही थी। वहीं यह 1788 के बाद 10 वर्ष के अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड की सबसे खराब शुरुआत थी। यह बीते 100 वर्षों में चौथा अवसर था जब अमेरिका में शेयर और बॉन्ड दोनों में गिरावट थी। साफ कहा जाए तो यह अब तक का सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण परिदृश्य था। ऐसे में यह सवाल लाजिमी तौर पर उठा कि अब आगे कैसे हालात बनेंगे? हमने दुनिया भर के शेयर बाजारों में तेजी की शुरुआत देखी जिसका नेतृत्व अमेरिका के पास था। बाजारों में हर रोज इजाफा देखने को मिला और लगातार चार दिनों तक तेजी भी देखने को मिली। क्या इसे स्थायित्व वाली तेजी माना जा सकता है या फिर यह एकबारगी है? जून के मध्य में एसऐंडपी सबसे बुरी स्थिति में था और उसमें 25 फीसदी गिरावट थी। यह युद्ध के बाद की मंदी की स्थिति में एसऐंडपी में आई माध्य गिरावट थी। अगर आप आंकड़ों पर नजर डालें तो युद्ध के बाद के समय में एसऐंडपी में न्यूनतम 15 प्रतिशत तक की गिरावट देखने को मिलती है। माध्य गिरावट 24 फीसदी और अत्यधिक गिरावट 50 प्रतिशत (वैश्विक वित्तीय संकट के समय 57 प्रतिशत की गिरावट देखी गई लेकिन उसके लिए बैंकिंग संकट अधिक उत्तरदायी था)। इस लिहाज से देखें तो बाजार पहले ही ऐसी स्थिति में है मानो हम गंभीर मंदी के मुहाने पर हों।
जिस समय मंदी का दौर न हो उस समय के इन्हीं आंकड़ों से पता चलता है कि माध्य गिरावट 12.5 प्रतिशत रही। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यह चौथी सबसे बड़ी गिरावट है जो मंदी से इतर देखने को मिली है। साफ है कि अगर आप मानते हैं कि अमेरिका मंदी की ओर नहीं बढ़ रहा है तो यह दलील दी जा सकती है कि पर्याप्त गिरावट आ चुकी है। इस हालत में बाजार शायद अपने निचले स्तर तक पहुंच चुका हो और अब तेजी की संभावना हो।
अगर आप मानते हैं कि अमेरिका और यूरोपीय संघ में वास्तव में मंदी आएगी तो शायद और गिरावट देखने को मिले। चूंकि मंदी के कारण मुद्रास्फीतिक शर्तों में बदलाव आएगा और वित्तीय हालात तंग होंगे इसलिए एक वित्तीय दुर्घटना की संभावनाएं काफी अधिक हैं। ऐसे में आशा की जा सकती है कि बाजार में गिरावट 40-50 प्रतिशत के चरम स्तर के नजदीक होगी। ऐसी स्थिति में और गिरावट आना लाजिमी है। भले ही इसमें कुछ समय लगे। अंतरिम समय में 15-20 फीसदी की तेजी आसानी से देखने को मिल सकती है।
डेटा पर नजर रखने की बात करें तो अमेरिका में 30 वर्ष के तयशुदा मोर्गेज में इजाफा ध्यान देने लायक है। वह कुछ ही महीनों में 3 फीसदी से बढ़कर 6 फीसदी हो गया। बीते 70 वर्षों में अमेरिका में हर मंदी तब आई है जब दो से 10 वर्ष के बॉन्ड प्रतिफल कर्व में पलटाव आया। मार्च के अंत और अप्रैल के आरंभ तथा उसके बाद जून तथा जुलाई में हमें यह पलटाव देखने को मिला। स्पष्ट है कि मंदी का जोखिम बढ़ा है। इसके अलावा उपभोक्ता रुझान तथा के बीच भी असंबद्धता नजर आ रही है जो 70 वर्ष के निचले स्तर पर है और बेरोजगारी की दर रिकॉर्ड नीचे है।
2023 में अमेरिका मंदी में जाएगा या नहीं, आने वाले महीनों में यह तय करना अहम होगा। इससे ही कारोबारी आय को लेकर आपका रुख तथा फेड फंड का अंतिम बिंदु तय होगा। अगर आपको लगता है कि मंदी जैसे हालात नहीं हैं तो शायद गिरावट पूरी हो चुकी है। यदि आपको मंदी के सिद्धांत पर यकीन है तो शायद अभी और गिरावट आनी है। कम से कम शुरुआत में तो अमेरिकी शेयर बाजारों की दिशा ही वैश्विक प्रतिफल को संचालित करेगी। जहां तक दरों की बात है तो हम बहुत आश्चर्यजनक समय में रह रहे हैं। दरों के बढ़ने और नकदी की स्थिति तंग होने पर ऐसा लगता है कि कुछ वित्तीय दुर्घटनाएं अपरिहार्य तौर पर होंगी।
अभी कुछ समय पहले दुनिया भर के कुल सरकारी कर्ज के बकाये का 40 प्रतिशत नकारात्मक प्रतिफल दे रहा था। अब यह घटकर 2.5 फीसदी रह गया है। कुल कारोबारी कर्ज के बकाये में 10 फीसदी का प्रतिफल नकारात्मक था जो अब शून्य प्रतिशत हो चुका है। ऐसी कंपनी या सीएफओ जिन्होंने अपने कर्ज का आंतरिक स्थानांतरण नहीं किया या नया दीर्घकालिक ऋण नहीं जुटाया उन्होंने जीवन में एक बार मिलने वाला अवसर गंवा दिया। दूसरी बड़ी बात जापान और उसके केंद्रीय बैंक से संबद्ध है। बैंक ऑफ जापान वैश्विक ऋण दरों में ठहराव का अंतिम पड़ाव है और वह मौद्रिक नीति के क्षेत्र में एक अपवाद है। उसने जापान के 10 वर्ष के सॉवरिन प्रतिफल को 0.25 प्रतिशत पर सीमित रखा है जबकि लागत बढ़ रही है, येन में गिरावट आई है और यह रणनीति भी बहुत स्थायित्व वाली नहीं है। बैंक ऑफ जापान द्वारा जेजीबी बॉन्ड की खरीद की वर्तमान दर करीब 110 डॉलर प्रतिमाह है जो फेड और यूरोपीय केंद्रीय बैंक द्वारा अपने उच्चतम स्तर पर की जा रही खरीद से अधिक है। बैंक ऑफ जापान की बैलेंस शीट सकल घरेलू उत्पाद के 140 फीसदी के बराबर है जबकि फेडरल रिजर्व के मामले में यह 40 फीसदी पर थी। यह अनंत काल तक नहीं चल सकता। एक बार बैंक ऑफ जापान के आत्मसमर्पण करने के बाद क्या दुनिया भर में प्रतिफल बढ़ेगा? सभी बड़े केंद्रीय बैंक परिसंपत्तियों में कमी करेंगे और चरणबद्ध प्रोत्साहन के माध्यम से नकदी डालना बंद करेंगे। किसी निवेशक या वित्तीय बाजार ने अब तक चरणबद्ध सख्ती का अनुभव नहीं किया है। इसके अनचाहे परिणाम हो सकते हैं। दुनिया भर में नकदी की सख्ती देखने को मिल सकती है और दरों में इजाफा नजर आ सकता है क्योंकि मुद्रास्फीति अब वैश्विक हो चुकी है और दुनिया भर के केंद्रीय बैंक मौजूदा रुझान से पीछे हैं। दुनिया भर की वैश्विक मंदी के बीच यह खतरनाक रुझान है। यह बहुत अनिश्चित और अस्थिर समय है। 2022 की त्रासद आरंभिक छमाही के बाद आशा है कि दूसरी छमाही निवेशकों के पोर्टफोलियो के लिए कम नुकसानदेह साबित होगी। यह ऐसा समय है जब पोर्टफोलियो तैयार किया जा सकता है, अपनी होल्डिंग की गुणवत्ता सुधारी जा सकती है और बेहतरीन विचारों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।
(लेखक अमांसा कैपिटल से संबद्ध हैं)
