भारत की सेवाओं पर आधारित अर्थव्यवस्था में कुछ सार्थक बदलाव हुए हैं। महामारी से पहले की अवधि की तुलना में शुद्ध आधार पर, सेवा निर्यात से राजस्व में प्रति वर्ष 60 अरब डॉलर से अधिक रकम मिल रही है। इससे भुगतान संतुलन के मोर्चे पर काफी राहत मिली है।
सिर्फ मुद्रास्फीति ही इन आंकड़ों को बढ़ा रही है, ऐसा नहीं है। महामारी से पहले के स्तर की तुलना में 40 प्रतिशत अधिक सेवाओं के निर्यात ने उच्च तकनीक, मध्यम तकनीक और कम तकनीक वाली वस्तुओं के निर्यात को बड़े अंतर के साथ पीछे छोड़ दिया है। वास्तव में, भारत के सेवा क्षेत्र ने वैश्विक बाजार में अपनी हिस्सेदारी हासिल करना जारी रखा है, भले ही वस्तुओं की हिस्सेदारी का स्तर सपाट ही रहा।
सवाल यह है कि वास्तव में क्या हो रहा है? हम हमेशा से भारत के संभावनाओं से भरे आईटी क्षेत्र के बारे में जानते हैं। लेकिन हाल में दिख रही तेजी का आधार क्या है? निश्चित रूप से शीर्ष सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कंपनियों के राजस्व में वृद्धि ने अहम भूमिका निभाई है। यह सर्वविदित है कि महामारी के दौरान हुए बड़े बदलाव के चलते वैश्विक स्तर पर विशेष रूप से आईटी खर्च में तेजी आई।
कोविड-19 ने अधिकांश उद्योगों को डिजिटल निवेश और मल्टी-चैनल व्यवसाय में तेजी लाने के लिए प्रेरित किया और कंपनियों के बैक-एंड प्रौद्योगिकी बुनियादी ढांचे को ज्यादा बेहतर और अनुकूल बनाने के लिए बदलने पर जोर दिया है। इसके मूल में क्लाउड था और क्लाउड कंपनियों के साथ खर्च किए गए लगभग प्रत्येक 1 डॉलर से भारत की आईटी कंपनियों की सेवाओं को 3 डॉलर खर्च को बढ़ावा मिला।
लेकिन ऐसा लगता है कि दिग्गज आईटी कंपनियों के मुनाफे से इतर भी कुछ बदलाव दिख रहे हैं। शीर्ष आईटी कंपनियों के राजस्व की तुलना में ‘अन्य’ आईटी सेवाओं का निर्यात तेजी से बढ़ रहा है। करीब पांच साल पहले तक प्रमुख आईटी कंपनियों का राजस्व, कुल सेवा निर्यात में करीब 55 प्रतिशत था, लेकिन अब यह घटकर करीब 45 प्रतिशत रह गया है। पिछले दो साल में आईटी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों के राजस्व में औसतन 12 प्रतिशत की वृद्धि हुई है वहीं दूसरी तरफ कुल आईटी सेवाओं के निर्यात में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
इन ‘अन्य’ आईटी सेवाओं के निर्यात में आखिर किसकी भूमिका हो सकती है? इसका एक महत्वपूर्ण कारण मध्यम आकार की आईटी कंपनियों में अच्छी वृद्धि को माना जा सकता है जिनकी बाजार हिस्सेदारी बढ़ रही है। दरअसल वित्त वर्ष 2022 में वे बड़ी आईटी कंपनियों की तुलना में लगभग 50 प्रतिशत की तेजी से बढ़ी हैं।
लेकिन कुछ अन्य घटनाक्रम पर भी ध्यान देना आवश्यक होगा। विश्लेषण से अंदाजा मिलता है कि आईटी सेवाओं की कुल सेवा निर्यात में लगभग 70 प्रतिशत हिस्सेदारी है। आईटी सेवाओं के निर्यात में, कंप्यूटर सेवाओं की हिस्सेदारी 65 प्रतिशत है और इसके बाद पेशेवर और प्रबंधन परामर्श सेवाएं (22 प्रतिशत), तकनीकी और व्यापार से संबंधित सेवाएं (8 प्रतिशत) और अनुसंधान और विकास (3 प्रतिशत) की हिस्सेदारी है। संभवतः इस तरह की हिस्सेदारी से ज्यादा महत्वपूर्ण है इन क्षेत्रों में वृद्धि के रुझान होना।
पिछले तीन वर्षों में, पेशेवर और प्रबंधन परामर्श क्षेत्र सबसे तेजी से बढ़ा है और इसमें 29 प्रतिशत की सलाना चक्रवृद्धि दर (सीएजीआर) से वृद्धि हुई है और इसके बाद कंप्यूटर सेवाओं (16 प्रतिशत) तथा अनुसंधान एवं विकास (13 प्रतिशत) का स्थान है। एक क्षेत्र जो इन प्रमुख क्षेत्रों में से प्रत्येक के माध्यम से राजस्व बढ़ाता है, वह है ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (जीसीसी) और उसका उभार। हमारा भी मानना है कि आईटी सेवाओं में तेजी से वृद्धि में इसका योगदान है।
आखिरी जीसीसी क्या हैं? सीधे शब्दों में कहें, तो वे विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एमएनसी) द्वारा भारत में स्थापित की गई इकाइयां हैं जो उन्हें वैश्विक तकनीकी सेवाएं, अनुसंधान एवं विकास, इंजीनियरिंग और आईटी से संबंधित मदद देती हैं। कई बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भारत में जीसीसी स्थापित किए हैं और यह संख्या वित्त वर्ष 2015 के 1,026 से बढ़कर वित्त वर्ष 2022 में 1,570 हो गई है। वास्तव में, भारत में लगभग 40 प्रतिशत वैश्विक जीसीसी हैं और इस अनुपात में विस्तार हो रहा है।
वर्तमान में इनका प्रत्यक्ष उत्पादन लगभग 51 अरब डॉलर के दायरे में है जो कुल आईटी सेवा निर्यात का 25 प्रतिशत है। पिछले दो वर्षों (वित्त वर्ष 2021-23) में जीसीसी के उत्पादन में 19 प्रतिशत की सालाना चक्रवृद्धि दर से वृद्धि हुई है जो सामान्यतौर पर समग्र आईटी सेवाओं के निर्यात में वृद्धि के अनुरूप है।
पिछली वृद्धि की तुलना में सबसे अधिक महत्वपूर्ण भविष्य की संभावनाएं हैं। जीसीसी दायरे और संभावनाएं दोनों लिहाज से विस्तार कर रहे हैं। कार्यों में सहायक और समर्थक सेवा प्रदाताओं के रूप में अपनी शुरुआत करने के बाद वे तकनीकी सक्षमता, व्यापार संचालन, क्षमता विकास और यहां तक कि शोध एवं विकास और कारोबार विकास के लिए आगे बढ़े हैं।
भारत में 1,570 जीसीसी में से लगभग 50 प्रतिशत इंजीनियरिंग शोध एवं विकास (आरऐंडडी) से जुड़ी सहायता देते हैं। कुल जीसीसी कर्मचारियों की संख्या में इनकी हिस्सेदारी 40 प्रतिशत से अधिक है और यह 12 प्रतिशत की वार्षिक चक्रवृद्धि दर से बढ़ रही है। यहां एक उदाहरण ब्रिटेन की दवा निर्माता कंपनी एस्ट्राजेनेका के जीसीसी का है, जिसने ग्लोबल इनोवेशन ऐंड टेक्नोलॉजी सेंटर के रूप में अपनी दोबारा ब्रांडिंग की है जिससे नवाचार में वृद्धि हुई है।
एक शानदार प्रदर्शन के बाद यह संभव है कि भारत की आईटी सेवाओं के निर्यात में बढ़ोतरी की गति अगले एक साल में धीमी पड़ती वैश्विक वृद्धि के अनुरूप कम हो जाए। परंपरागत रूप से, इसके संबंध कमजोर वृद्धि वाले वर्ष और व्यापक अनिश्चितताएं, कम विवेकाधीन परियोजना खर्च और कम तकनीकी बजट चक्रों से जुड़े होते हैं। हमारा मानना है कि सेवा निर्यात में वृद्धि, पिछले कुछ वर्षों में 15 प्रतिशत से कम होकर वित्त वर्ष 2024 और वित्त वर्ष 2025 में 7-8 प्रतिशत सीएजीआर हो सकती है।
लेकिन हमें इस अवधि के दौरान भारत में विदेशी वित्त को लेकर चिंता की कोई बड़ी वजह नहीं दिखती है। पिछले कुछ वर्षों में सेवा निर्यात में तेजी से मिलने वाले लाभ, तेल की कीमतों में कमी और कम उपभोक्ता आयात के कारण पिछले साल की तुलना में विदेशी पूंजी के बेहतर स्थिति में होने की संभावना है। यह अनिश्चितता से भरे समय में रुपये के लिए कुछ राहत हो सकती है और इसके साथ ही यह भारतीय रिजर्व बैंक पर अमेरिका के फेडरल रिजर्व की तरह की दरें बढ़ाने के दबाव को भी कम करेगी।
अगले दो वर्षों के बाद, आईटी सेवाओं के लिए मध्यम अवधि का दृष्टिकोण पहले की तुलना में अधिक उत्साह से भरा दिखता है क्योंकि उद्योगों में तकनीक की पैठ है और जीसीसी से संभावनाओं के दायरे का विस्तार होता है।
भारत के तकनीकी व्यापार समूह नैसकॉम ने वित्त वर्ष 2030 तक आईटी सेवा राजस्व में 500 अरब डॉलर का लक्ष्य रखा है। हमारा अनुमान है कि अगले दो साल में कुल सेवा निर्यात वृद्धि में अस्थायी नरमी के बाद वित्त वर्ष 2026 से 2030 के बीच इसमें करीब 9 प्रतिशत सीएजीआर तक की वृद्धि की दरकार होगी।
इससे भी दिलचस्प बात यह है कि शुद्ध आधार पर, निर्यात वित्त वर्ष 2019 के 6.8 अरब डॉलर प्रति माह से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में 12 अरब डॉलर प्रति माह हो गया है और यह वित्त वर्ष 2030 तक 20 अरब डॉलर प्रति माह तक हो सकता है। जैसा कि हमने ऊपर चर्चा की है कि वित्त वर्ष 2019 और वित्त वर्ष 2023 के बीच इसे 60 अरब डॉलर का अतिरिक्त राजस्व मिला है। अगर नैसकॉम का लक्ष्य हासिल हुआ तो वित्त वर्ष 2023 से 2030 के बीच शुद्ध सेवा निर्यात में 100 अरब डॉलर का इजाफा हो सकता है।
यह महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि और निवेश दरों में वृद्धि के कारण अधिक वस्तुओं का आयात होता है और इससे वस्तु व्यापार घाटे की बिगड़ती स्थिति को सेवा अधिशेष में वृद्धि से काफी हद तक कम किया जा सकता है, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार को बनाए रखने में मदद मिलती है।
भारत का आईटी क्षेत्र दुनिया की तकनीकी जरूरतों को प्रभावशाली तरीके से पूरा करने के कारण बढ़ा है। यह अल्पावधि (जब फेडरल रिजर्व लंबे समय तक दरें बढ़ाता है) और मध्यम अवधि में (संभावित रूप से बढ़ते वस्तु व्यापार घाटे के लिए पूंजी देने में मदद करता है) भी विदेशी मुद्रा के लिहाज से अतिरिक्त मदद देने की संभावनाओं से भरा है।
दोनों लेखिका क्रमशः एचएसबीसी में मुख्य अर्थशास्त्री (भारत और इंडोनेशिया) और अर्थशास्त्री (भारत) हैं।