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प्री-इंस्टॉल नहीं रहेगा संचार साथी, अब स्पैम से निपटने के समाधान पर फोकस होना चाहिए

अब समय आ गया है कि सभी हितधारकों के साथ एक ठोस परामर्श प्रक्रिया फिर शुरू की जाए ताकि उस समस्या का समाधान खोजा जा सके जो विकराल रूप ले चुकी है

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निवेदिता मुखर्जी   
Last Updated- December 04, 2025 | 9:51 PM IST

साइबर सुरक्षा में सेंध (जिसे कई रूपों एवं तरीकों से अंजाम दिया जा सकता है) भारत में दो दशकों से भी अधिक समय से एक हकीकत बन कर परेशान कर रही है। तमाम उपायों के बाद भी इसका अब तक कोई ठोस समाधान निकल पाया है। यहां तक कि मोबाइल हैंडसेट निर्माताओं को सरकार की तरफ से दिया गया हालिया निर्देश भी अब केवल कागजों में दब कर रह जाएगा। सरकार ने मोबाइल हैंडसेट बनाने वाली कंपनियों को स्मार्टफोन पर ‘संचार साथी’ ऐप्लिकेशन पहले से ही इंस्टॉल करने के लिए कहा था। सरकार का कहना था कि ‘संचार साथी’ ऐप से धोखाधड़ी से निपटने में बहुत मदद मिलेगी। दूरसंचार विभाग ने ऐपल और सैमसंग सहित सभी मोबाइल हैंडसेट निर्माताओं कंपनियों को यह निर्देश दिया था। मगर संसद और समाचार चैनलों के स्टूडियो में काफी शोर-शराबे के बाद विभाग को यह आदेश वापस लेना पड़ा।

इस मुद्दे पर मचा घमासान फिलहाल थम गया है मगर इस पर बहस आगे भी होती रहेगी। पहली बात तो यह कि हैंडसेट निर्माताओं खासकर ऐपल से ऐसे निर्देश का पालन करने की उम्मीद नहीं की जा सकती थी क्योंकि उसे दुनिया भर में चलने वाले अपने पूरे एल्गोरिद्म में बदलाव करना पड़ता। ऐपल ऐसे मुद्दों पर अक्सर अपना रुख साफ करती रही है इसलिए उसने सरकार के समक्ष जरूर अपना पक्ष रखा होगा। अमेरिका की यह दिग्गज कंपनी और उसके फोन बेचने वाली इकाइयां भारत में आईफोन बनाकर विनिर्माण क्षेत्र को मजबूती दे रहे हैं इसलिए यह स्थिति काफी असहज रही होती।

‘संचार साथी’ ऐप मोबाइल हैंडसेट में डालना भले ही उपभोक्ताओं के हित में होता मगर यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया। विपक्षी दलों और नागरिक समूहों ने इसे सरकार की मनमानी करार दिया और इसका विरोध करने लगे। क्या हमारे फोन पर यह ऐप हमारी गोपनीयता में सेंध लगा सकता है और मोबाइल में सहेजी अहम जानकारी चुरा सकता है या उन पर निगरानी रख सकता है? इस बात का कोई पुख्ता प्रमाण तो अब तक सामने नहीं आया है मगर मोबाइल फोन पर एक ऐप के जरिये व्यक्तिगत जानकारी चोरी या सार्वजनिक होने का डर साइबर धोखाधड़ी जितना ही भयानक हो सकता है। यह कारण स्वयं ही सरकार के लिए स्मार्टफोन निर्माताओं को दिया अपना आदेश वापस लेने के लिए पर्याप्त रहा होगा।

सवाल है कि स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियों को किसी भी साइबर सुरक्षा उल्लंघन का खमियाजा क्यों भुगतना चाहिए। वे न तो साइबर अपराध को प्रत्यक्ष या परोक्ष बढ़ावा दे रही हैं और न ही ऐसी दूरसंचार सेवाएं प्रदान कर रही हैं जिनके माध्यम से धोखाधड़ी हो रही है।

अगर उपयोगकर्ता अपने फोन पर ‘संचार साथी’ ऐप डाउनलोड करने या डिलीट करने के लिए आजाद है, जैसा सरकार ने विरोध बढ़ने के बाद इस हफ्ते की शुरुआत में स्पष्ट किया था तो स्मार्टफोन निर्माताओं पर अनुपालन बोझ डालने का कोई कारण नहीं था। कोई भी फर्जीवाड़ा उपयोगकर्ताओं की ही सिरदर्दी साबित होती इसलिए स्मार्टफोन निर्माताओं को इस पूरे झमेले में शामिल किए बिना उन्हें (उपयोगकर्ताओं को) अपनी पसंद का कोई भी ऐप डाउनलोड करने की आजादी होनी चाहिए। यह अच्छी बात है कि सरकार ने तत्परता दिखाकर कदम पीछे खींच लिए।

स्वदेशी रूप से निर्मित पोर्टल के रूप में 2013 में शुरू किया ‘संचार साथी’ इस साल के शुरू में मोबाइल ऐप में बदल दिया गया। ‘संचार साथी’ की मदद से उपयोगकर्ताओं को संदिग्ध फोन कॉल की चेतावनी मिल सकती थी और वे अपने गुम हुए फोन का पता भी लगा सकते थे। मगर फोन के माध्यम से धोखाधड़ी रोकने के एक उपकरण के रूप में इसे सरकार द्वारा आगे बढ़ाए जाने से विवाद शुरू हो गया।

देश में फोन के जरिये वाले अनचाहे एवं अनावश्यक संदेश या कॉल (स्पैम) पर अंकुश लगाने की दिशा में पहल 2006 में भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) की परामर्श प्रक्रिया के साथ शुरू हुई। ट्राई के परामर्श पत्र में कहा गया था, ‘चूंकि, टेलीफोन सर्वव्यापी संचार माध्यम बन गए हैं इसलिए टेलीफोन के माध्यम से मार्केटिंग और विज्ञापन गतिविधियां तेजी से बढ़ी हैं। बोलचाल की भाषा में इसे ‘टेलीमार्केटिंग’ कहते हैं। इन दिनों टेलीमार्केटिंग में अनचाहे कॉल और मेसेज काफी आने लगे हैं।’

इसमें कहा गया कि पिछले एक साल में अवांछित वाणिज्यिक कॉल्स ने राज्य सभा, सर्वोच्च न्यायालय, दिल्ली उच्च न्यायालय, भारतीय रिजर्व बैंक और दिल्ली के राज्य आयोग (उपभोक्ता) का समय और ध्यान खींचा है। ट्राई ने ‘डू-नॉट-कॉल’ के विकल्प और टेलीमार्केटिंग कंपनियों, सेवा प्रदाताओं और उपभोक्ताओं के साथ मिलकर इस समस्या के संभावित समाधान पर सार्वजनिक प्रतिक्रिया और सुझाव मांगे।

यह भारत में मोबाइल फोन आने के एक दशक बाद की बात थी और तब ऐप (घड़ियों, कैलकुलेटर आदि को छोड़कर) बहुत अधिक चलन में नहीं थे। वर्ष 2007 में अमेरिका के क्यूपर्टिनो में ऐपल ने अपना पहला आईफोन पेश किया, जिसमें मैप्स, मौसम का हाल बताने वाले और फोटो जैसे ऐप पहले से ही मौजूद (बिल्ट-इन) थे। 2008 में कंपनी ने अपना ऐप स्टोर शुरू किया और थर्ड-पार्टी ऐप के लिए रास्ता खुल गया। खबरों के अनुसार 2010 में अमेरिकन डायलेक्ट सोसाइटी ने ‘ऐप’ (ऐप्लीकेशन का संक्षिप्त नाम) को ‘वर्ष का शब्द’ घोषित कर अपनी सूची में शामिल कर लिया।

जहां तक साइबर सुरक्षा की बात है तो जब अवांछित कॉल एवं मेसेज पर चर्चा शुरू हुई तब ऐप्स नहीं होने के कारण जोखिम बहुत कम था। मगर तब भी स्पैम और अनचाहे संदेश व्यवसायों और व्यक्तियों के लिए चिंता का बड़ा कारण बन गए।

दूरसंचार विभाग और ट्राई ने 2006 के बाद स्पैम की रोकथाम से जुड़े प्रावधानों एवं नियमों पर चर्चा शुरू की। यह सिलसिला बाद में भी जारी रहा और 2008, 2010, 2012, 2014, 2017, 2018 तथा आज तक परामर्श एवं सिफारिशों का दौर चल रहा है।

इस मामले से जुड़े सरकार के लोगों का कहना है कि लोगों के श्रेष्ठ हित में यथासंभव सब कुछ किया जाना चाहिए और इसमें एक ऐसा आदेश वापस लिया जाना भी शामिल है, जो निजता का हनन माना जा रहा था। अब समय आ गया है कि सभी हितधारकों के साथ एक ठोस परामर्श प्रक्रिया फिर शुरू की जाए ताकि उस समस्या का समाधान खोजा जा सके जो विकराल रूप ले चुकी है। केवल एक सरकारी ऐप से चुटकियों में इस समस्या का समाधान होता नहीं दिख रहा है।

First Published : December 4, 2025 | 9:42 PM IST