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विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दुनिया के देशों को मसौदा दिशानिर्देश जारी किए हैं। इनमें में सुझाया गया है कि स्वस्थ आहार को बढ़ावा देने के लिए दुनिया के देश किस तरह राजकोषीय नीतियां तैयार कर सकते हैं। दिशानिर्देशों के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से पर फिलहाल मंत्रणा चल रही है।
इसमें कहा गया है कि कर प्रणाली का सहारा लेकर चीनी युक्त पेय पदार्थों (एसएसबी) का उत्पादन नियंत्रित किया जा सकता है। डब्ल्यूएचओ ने विशेषकर उन देशों के अनुभव से सीखने की सलाह दी है जो चीनी युक्त पेय पदार्थों पर अतिरिक्त कर लगा रहे हैं। ऐसे देशों में ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका और मैक्सिको शामिल हैं।
इस चिंता का एक मजबूत आधार है। विकासशील देशों सहित पूरी दुनिया में आवश्यकता से अधिक चीनी का इस्तेमाल मधुमेह (टाइप 2 डायबिटीज) का एक प्रमुख कारण माना जाता है। कार्बन युक्त पेय पदार्थ (कार्बोनेटेड ड्रिंक्स), एनर्जी ड्रिंक्स़, फलों के रस ये सभी एसएसबी की श्रेणी में रखे गए हैं।
मधुमेह जीवन-शैली से जुड़ा रोग है जिसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। विशेषकर, उन देशों में विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है जहां मधुमेह की बीमारी तेजी से फैल रही है। डब्ल्यूएचओ के अनुमान के अनुसार खराब गुणवत्ता वाले, अति प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ पूरी दुनिया में धूम्रपान से भी अधिक संख्या में लोगों को लील रहे हैं।
सरकारें निकोटिन का सेवन करने से रोकने के लिए राजकोषीय नीति का इस्तेमाल करती रही हैं, इसलिए यह आशा करने का तर्कपूर्ण कारण है कि सरकार मधुमेह पर नियंत्रण के लिए भी ऐसी ही नीतियां आजमा सकती है।
हालांकि भारत में कुछ अलग तरह की समस्याएं हैं जिनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की संरचना कुछ ऐसी है जिसमें वर्तमान में बदलाव की गुंजाइश नहीं है। वातित पेय (एयरेटेड ड्रिंक्स) पर सिगरेट की तरह ही 28 प्रतिशत जीएसटी लगता है। इस पर और कर लगाना बुद्धिमानी नहीं होगी क्योंकि जीएसटी संरचना को अस्थिर करने से बचना ही उचित रहेगा।
एक और कर श्रेणी जोड़ने से पूरा जीएसटी तंत्र और पेचीदा हो सकता है। इस श्रेणी में मीठे एवं प्रसंस्कृत फल रस लाए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए इस समय फ्रूट जूस का वर्गीकरण इस बात की व्याखात्मक रेखा है कि अतिरिक्त चीनी (एडेड शुगर) या अन्य मीठी सामग्री मायने रखती हैं या नहीं। इन पर 12 प्रतिशत दर से कर लगता है।
इस वर्गीकरण को दो और श्रेणियों में विभाजित करना सीधा उपाय होगा। इनमें एक श्रेणी एडेड शुगर वाली और दूसरी प्राकृतिक रसों वाली हो सकती है। एडेड शुगर वाली श्रेणी पर कार्बन फ्रूट जूस की तरह ही कर लगाया जा सकता है। वास्तव में एडेड शुगर ही समस्या की जड़ है, न कि कार्बन का मिश्रण।
वास्तव में परिष्कृत चीनी युक्त सभी उत्पादों पर ऊंचा कर लगाया जा सकता है। इससे खाद्य प्रसंस्करण कंपनियां अधिक चीनी युक्त उत्पाद बेचने के बजाय अपने उत्पादों की बिक्री के लिए बेहतर तरीके खोज सकती हैं। भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामान्य तंदुरुस्ती के लिए इन उपायों के परिणाम जल्द ही दिखने लगेंगे। इसके अलावा उत्पादों पर एडेड शुगर का लेबल चिपकाया जा सकता है जैसा कि शाकाहारी एवं मांसाहारी उत्पादों के मामले में होता है।
इस विषय पर खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं दे पाया है। रोजमर्रा की जरूरतों के सामान बनाने वाली कंपनियों की मुहिम इसका एक कारण हो सकता है। उत्पादों पर सूचना स्पष्ट होने से उपभोक्ताओं का ध्यान तत्काल इसकी तरफ जाता है। केवल उत्पाद में उपयोग में लाए गए तत्त्वों के नाम अंकित करने से उपभोक्ताओं का हित सुरक्षित नहीं होता है।
उत्पादों पर स्पष्ट लेबल होने से उपभोक्ताओं को चयन करने में आसानी होगी। दुनिया में इस संदर्भ में ऐसे कई उदाहरण हैं जहां तंबाकू उत्पादों की तरह ही स्वास्थ्य संबंधी वैधानिक चेतावनी अंकित करना जरूरी होता है। इस दिशा में नियामकीय हस्तक्षेप की लंबे समय से जरूरत महसूस की जा रही है। लोगों में मधुमेह के खतरों को लेकर जागरूकता फैलाना भी सरकार की तरफ से एक अच्छा प्रयास हो सकता है।