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आरबीआई भी चल पड़ा अन्य केंद्रीय बैंकों की राह पर

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 7:08 PM IST

विश्लेषकों का मानना है कि जून में मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में नीतिगत दरों में एक और वृद्धि होगी। क्या नीतिगत दरों में 75 आधार अंक की वृद्धि होगी या भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) जून और अगस्त में थोड़ी-थोड़ी वृद्धि कर ब्याज दर कोविड-19 महामारी से पूर्व के स्तर 5.15 प्रतिशत तक कर देगा? या फिर इस स्तर तक पहुंचने में और समय लगेगा? अगर दो किस्तों में दरों में बढ़ोतरी हुई तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा।
कोविड के बाद रीपो रेट दो चरणों में घटाकर 5.15 प्रतिशत से 4 प्रतिशत कर दी गई थी। नकद आरक्षी अनुपात (सीआरआर) में भी एक प्रतिशत अंक की कमी की गई थी। रिवर्स रीपो रेट में भी कमी की गई थी। एक वर्ष बाद सीआरआर में कटौती वापस ले ली गई। महामारी से पहले भी फरवरी और अक्टूबर 2019 के बीच आरबीआई ने रिवर्स रीपो दर 6.25 प्रतिशत से 110 आधार अंक घटाकर 5.15 प्रतिशत कर दी थी।
आखिर जून में नीतिगत दरों में 75 आधार अंक वृद्धि को लेकर कयास क्यों लगाए जा रहे हैं? आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास के बयान पर एक बार गौर करते हैं। पिछले सप्ताह रीपो रेट 4.4 प्रतिशत करने के बाद उन्होंने कहा, ‘कोविड महामारी के कारण मौद्रिक नीति काफी उदार रखी गई थी। 27 मार्च को रीपो रेट में 75 आधार अंक की कमी की गई थी और 22 मई को इसमें 40 आधार अंक की और कमी की गई। अब एमपीसी ने रीपो रेट 40 आधार अंक बढ़ाकर 4.40 प्रतिशत करने का निर्णय लिया है। इसे 22 मई, 2020 के कदम की वापसी के रूप में देखा जा सकता है।’
अगर जून बैठक में आरबीआई ने 27 मार्च, 2020 को की गई 75 आधार अंक कटौती वापस ले ली तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा। 2020 में दरें घटाने के लिए एमपीसी की बैठक निर्धारित समय से पहले बुला ली गई थी। इस बार भी ऐसा ही हुआ और जून में प्रस्तावित बैठक समयानुसार ही होगी। इससे संकेत मिलते हैं कि जून में दरों में एक बार फिर वृद्धि होगी और इसके बाद यह सिलसिला और चलेगा। पिछले सप्ताह अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा नीतिगत दरें 50 आधार अंक घटाने से करीब 12 घंटे पहले आरबीआई ने रीपो रेट 40 आधार अंक बढ़ाकर 4.4 प्रतिशत तक दी थी।  इसके साथ स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी (एसडीएफ) दर बढ़कर 4.15 प्रतिशत हो गई है। सीआरआर भी 50 आधार अंक बढ़कर 4.5 प्रतिशत हो गया है जिससे वित्तीय प्रणाली से 87,000 करोड़ रुपये नकदी निकल जाएगी।
अप्रैल में एमपीसी ने नीतिगत दरें और अपने रुख में कोई बदलाव नहीं किया था। यह बात जरूर थी कि एमपीसी ने उदारवादी रुख जारी रखा मगर उसने तेजी से बढ़ती महंगाई को ध्यान में रखते हुए उदार रवैया वापस लेने पर ध्यान केंद्रित कर लिया। आरबीआई के रवैये में भी बदलाव देखा गया। कोविड के बाद उत्पन्न हालात में आरबीआई का सारा ध्यान आर्थिक वृद्धि दर बढ़ाने पर था मगर अप्रैल बैठक के दौरान महंगाई नियंत्रण वरीयता सूची में शीर्ष पर आ गया।
हालांकि अगली एमपीसी बैठक से एक महीने पहले दरों में बढ़ोतरी ने सभी को हैरान कर दिया है। हाल तक आरबीआई ने अन्य बाजारों से भारत को अलग दिखाने की कोशिश की थी क्योंकि उसके अनुसार यहां महंगाई का जोखिम बिल्कुल अलग तरह का है। तो फिर आरबीआई ने अचानक यह कदम क्यों उठाया? क्या केंद्रीय बैंक जून में एमपीसी की बैठक तक इंतजार नहीं कर सकता था?
मुझे लगता है कि महंगाई के खतरे की वजह से आरबीआई को यह कदम उठाने पर विवश होना पड़ा है। मार्च में खुदरा महंगाई 7 प्रतिशत तक पहुंच गई जो पिछले 17 महीनों का सर्वाधिक स्तर है। तीन लगातार तिमाहियों में महंगाई दर आरबीआई के सहज स्तर 4 प्रतिशत (2 प्रतिशत कम या अधिक) से अधिक रही। अधिकांश विश्लेषकों को लगता है कि अप्रैल में खुदरा महंगाई 7.5 प्रतिशत से अधिक रहेगी। इस खुदरा महंगाई के आंकड़े आएंगे। उन्हें यह भी लगता है कि तेल, खाद्य वस्तुओं समेत गैर-खाद्य, गैर-तेल विनिर्माण महंगाई की वजह से आने वाले कई महीनों के दौरान महंगाई दर आरबीआई के सहज स्तर के ऊपरी सिरे से अधिक ही रहेगी।
दरों में अचानक बढ़ोतरी की वजह ‘महंगाई कम करना और महंगाई से जुड़े लक्ष्यों को साधना है’। इस बीच, मुद्रा एवं वित्त पर आरबीआई की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्तीय तंत्र में नेट डिमांड ऐंड टाइम लाइबिलिटी (सरल भाषा में बैंक जमा) का 1.2 प्रतिशत अधिशेष नकदी उपलब्ध होने से महंगाई बढ़ती है। इस समय यह रकम इसका दोगुना है। इस तरह, वित्तीय तंत्र से अधिशेष नकदी वापस लेने की आवश्यकता है। आरबीआई ने अगले कई वर्षों के दौरान धीरे-धीरे नकदी वापस लेने की बात कही है। क्या केंद्रीय बैंक ऐसा करने का साहस जुटा सकता है? सैद्धांतिक रूप में कमतर ब्याज दरों का स्थानीय मुद्रा पर असर पड़ सकता है।
जब दूसरे केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरें बढ़ाना शुरू कर दिया था तो आरबीआई की तरफ से इसमें देरी का क्या औचित्य था? मगर आरबीआई ने बिना समय गंवाए प्रतिक्रिया दिखाई। अगर और देरी होती तो नुकसान अधिक होता।
अप्रैल में महंगाई से जुड़े अनुमान बढ़ा दिए गए थे और वित्त वर्ष के लिए आर्थिक वृद्धि का अनुमान कम कर दिया गया। वित्त वर्ष 2023 के लिए महंगाई अनुमान 4.5 प्रतिशत से 120 आधार अंक बढ़ा कर 5.7 प्रतिशत कर दिया गया जबकि आर्थिक वृद्धि का अनुमान 60 आधार अंक कम कर 7.2 प्रतिशत कर दिया गया। जून में आरबीआई औसत महंगाई का अनुमान बढ़ाकर 6 प्रतिशत से अधिक कर सकता है और वृद्धि का अनुमान और कम किया जा सकता है। 10 वर्ष की अवधि के सरकारी बॉन्ड पर प्रतिफल अप्रैल के शुरू में 6.91 प्रतिशत था जो अब बढ़कर 7.45 प्रतिशत हो गया है। बाजार से उधार लेने पर सरकार का खर्च भी बढ़ जाएगा। वित्त वर्ष 2023 में सरकार की भारी भरकम उधारी कार्यक्रम का प्रबंधन करना आरबीआई के लिए उतना ही चुनौतीपूर्ण होगा जितना महंगाई का प्रबंधन और आर्थिक वृद्धि सुनिश्चित करना होगा।

First Published : May 9, 2022 | 11:17 PM IST