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इस्तीफे और केंद्र की चाल से बदल गया पुदुच्चेरी का राजनीतिक हाल

Last Updated- December 12, 2022 | 7:57 AM IST

पुदुच्चेरी के मुख्यमंत्री वी नारायणसामी सोमवार को विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर सके और उनकी सरकार गिर गई। इससे पहले किरण बेदी को राज्य के उप राज्यपाल पद से हटाकर उनकी जगह तेलंगाना की राज्यपाल तमिलसाई सुंदरराजन को नियुक्त किए जाने के फैसले से ज्वलंत चर्चा शुरू हो गई थी। पुदुच्चेरी में कुछ हफ्तों में ही विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। किसी उप राज्यपाल को कहीं और भेजे बगैर उसे हटाने से अपमान एवं बेइज्जत करने का संदेश जाता है।
पड़ोसी राज्य तमिलनाडु के विश्लेषकों ने फौरन ही अपने पुराने संदेह को सही ठहराना शुरू कर दिया। उनका कहना है कि बेदी के हद से आगे बढऩे और उनके दखलंदाजी भरे रवैये से आजिज आकर केंद्र ने उन्हें दंडित किया है। जहां यह सच है कि बेदी पुदुच्चेरी की सरकार के ‘निकम्मेपन’ एवं ‘भ्रष्टाचार’ के खिलाफ अथक अभियान चलाती रहीं और उनके आक्रामक अंदाज के प्रति गृह मंत्रालय का भरोसा लगातार बना रहा है। सत्तारूढ़ पार्टी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ‘किरण बेदी को जल्द ही कोई और दायित्व सौंपा जाएगा। हमारा संगठन बेदी जैसी महिलाओं को हमेशा तवज्जो देता है।’ पुदुच्चेरी में सत्तारूढ़ कांग्रेस के कई विधायक पाला बदलकर भाजपा के खेमे में आ गए और सरकार अल्पमत में आ गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 25 फरवरी को पुदुच्चेरी के दौरे पर जाने का कार्यक्रम है।  
बेदी पिछले कई साल से नारायणसामी सरकार पर गलत कार्यों में लिप्त होने के आरोप लगाती रही हैं। यह दौर उस जगह तक जा पहुंचा था कि नारायणसामी ने बेबसी भरे अंदाज में कहा था कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को उनके खिलाफ 10 मामलों की संस्तुति की गई है। इस तरह के आरोप विपक्षी दलों के मुख्यमंत्री सैकड़ों बार लगाते रहे हैं। इस तरह केंद्र के खिलाफ एक राजनीतिक आंदोलन खड़ा करने की कोशिश की जाती है ताकि केंद्र एवं राज्य के बीच तनातनी का सच्चा या झूठा आख्यान खड़ा किया जा सके। दूसरी तरफ बेदी के समर्थकों का कहना है कि वह मुख्यमंत्री एवं उनके दोस्तों के हाथों हो रही पुदुच्चेरी की बदहाली को मूकदर्शक बनकर नहीं देख सकती थीं। राज्य सरकार एवं बेदी के कार्यालय के बीच टकराव का पहला मुद्दा मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश का था। वर्ष 2017 में उप राज्यपाल के कहने पर भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) ने केंद्रशासित प्रदेश के कई निजी मेडिकल कॉलेजों में हुए 238 छात्रों के प्रवेश को निरस्त कर दिया था। यह कदम बेदी की उस शिकायत के बाद उठाया गया था कि इन सीटों के बिक जाने से पैसे के लिए योग्यता की तिलांजलि दे दी गई। यह मुद्दा मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए होने वाली नीट परीक्षा से संबंधित था। सभी राज्यों को सफल उम्मीदवारों की सूची तैयार करने के लिए एक काउंसलिंग प्राधिकारी नियुक्त करने को कहा गया था। पुदुच्चेरी ने भी एक केंद्रीकृत प्रवेश समिति बनाई थी लेकिन कुछ निजी कॉलेजों ने पैनल के सुझावों से बाहर जाकर भी कुछ सीटें भर ली थीं। बेदी ने कुछ छात्रों के माता-पिता से मिले पत्रों के आधार पर यह शिकायत की थी जिनमें कहा गया था कि लाखों रुपये देने के बावजूद उनके बच्चों को प्रवेश नहीं दिया गया। बेदी का कहना था कि राज्य सरकार की सफल छात्रों का सूची केंद्रीकृत समिति की सूची से मेल नहीं खाती है। बहरहाल एमसीआई के कदम से 55 छात्र सीधे तौर पर प्रभावित हुए। उसके बाद बेदी ने इस मामले में सीबीआई जांच की भी संस्तुति कर दी। नारायणसामी के मुताबिक, सीबीआई ने उन्हें जानकारी दी कि ‘दोषपूर्ण’ सूची तैयार करने से जुड़े रहे अधिकारियों के खिलाफ भेजी शिकायत पर वे काम नहीं कर रहे हैं। जबकि उप राज्यपाल के कार्यालय ने कहा कि सीबीआई इस पर काम कर रही है। इसके एक साल बाद कांग्रेस ने भी पलटवार किया। दो विधायकों ने बेदी के कार्यालय से निजी कंपनियों को भेजे गए न्योतों पर अपनी सफाई देने की मांग रखी। पुदुच्चेरी में जल-भंडार इकाइयों को गाद से मुक्त कराने के लिए कंपनियों से फंड की मांग की गई थी जो उनके सीएसआर कार्य में आ जाता। इसी के साथ कांग्रेस ने विधानसभा में एक प्रस्ताव भी पारित किया जिसमें उप राज्यपाल से यह मांग की गई थी कि वह सरकार को राजभवन से चलाने की कोशिश न करें। लेकिन बेदी इस केंद्रशासित प्रदेश में ‘भ्रष्टाचार के खात्मे’ के अपने रास्ते से डिगने को तैयार न थीं।
अन्नाद्रमुक विधायक वैयापुरी मणिकंदन ने बेदी को लिखे एक पत्र में शिकायत की थी कि कोविड महामारी के दौरान अधिकारियों ने सरकारी स्वामित्व वाले पॉन्डिचेरी डिस्टिलरीज लिमिटेड (पीडीएल) के समूचे स्टॉक की कालाबाजारी कर दी जिससे सरकार को बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ। लॉकडाउन के दौरान पुदुच्चेरी में शराब की तमाम दुकानें बंद थीं लेकिन यह डिस्टिलरी खुली रही। लॉकडाउन लगने के ठीक पहले पीडीएल ने छह टैंकरों में भरा माल खरीदा था। विधायक ने पूछा था कि उस माल का क्या हुआ? बेदी ने इस पत्र को चंद दिनों में ही जांच के लिए सीबीआई को प्रेषित कर दिया। ऐसे में राज्य सरकार खुद को किनारे लगाने की कोशिश का शिकार समझने लगी। बेदी का यह अंदाज पदासीन सरकार के मुकाबले में मददगार साबित हुआ।
नारायणसामी इस जंग को पुदुच्चेरी को केंद्र के चंगुल से बचाने की लड़ाई बताने में लगे हुए थे। काफी कुछ 2009-13 के दौरान जैसा था जब गुजरात में नरेंद्र मोदी का राज्यपाल कमला बेनीवाल से टकराव चल रहा था। अब उस जंग का चेहरा बदल गया। लिहाजा उस अभियान की धार कुंद हो गई। नारायणसामी को निशाने पर लेने के लिए कोई और व्यक्ति या फिर कोई और मुद्दा तलाशना होगा। सरकार गिरने के बाद उन्हें अपने पुराने सहयोगियों से भी लडऩा होगा।

First Published - February 22, 2021 | 11:30 PM IST

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