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Editorial: पीएम-कुसुम योजना से कृषि को मिलेगी मजबूती

पीएम-कुसुम योजना कार्बन उत्सर्जन कम करने, सब्सिडी कम करने और किसानों को इनपुट की लागत के उतार-चढ़ाव से बचाने में निभा रही है बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- August 18, 2025 | 10:38 PM IST

कृषि क्षेत्र सिंचाई कार्यों के लिए देश की कुल बिजली के करीब पांचवें हिस्से की खपत करता है। डीजल का बहुत बड़ा हिस्सा भी इसी काम में लगता है। डीजल पंप की जगह सौर ऊर्जा से संचालित पंप लगाकर और ग्रिड से जुड़े पंपों को सौर ऊर्जा से जोड़कर पीएम-कुसुम (प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान) योजना कार्बन उत्सर्जन कम करने, सब्सिडी कम करने और किसानों को इनपुट की लागत के उतार-चढ़ाव से बचाने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

योजना का पहला चरण 2025-26 में चल रहा है और इसका लक्ष्य है सोलर पंपों, ग्रिड से जुड़े पंपों को सौर ऊर्जा से जोड़कर तथा बंजर भूमि पर छोटी सौर ऊर्जा परियोजनाओं की मदद से सिंचाई के लिए 34.8 गीगावॉट अतिरिक्त सौर ऊर्जा तैयार करना। करीब 34,000 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ योजना का लक्ष्य 14 लाख सोलर पंप स्थापित करना और 35 लाख ग्रिड से जुड़े कृषि पंपों को सौर ऊर्जा संचालित पंप में बदलना है। इसमें फीडर स्तर तक को भी सोलर में बदलना शामिल है।

वास्तव में मांग में इजाफा हुआ है और यह इस बात को रेखांकित करता है कि सौर ऊर्जा को स्वीकार करने और इसका विस्तार करने की अत्यधिक आवश्यकता है। 2024-25 में ही भारतीय नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी ने योजना के तहत ऋण की मंजूरी में 27 फीसदी इजाफा दर्ज किया और ऋण राशि 47,453 करोड़ रुपये पहुंच गई। ऋण वितरण में 20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।

इस संबंध में अगस्त 2024 में कृषि अधोसंरचना निधि में इसके एकीकरण के बाद नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा इस योजना के दूसरे चरण को शुरू करने की काफी संभावनाएं नज़र आती हैं। पहले चरण के सबकों से सीख लेते हुए अब केंद्रीय वित्तीय सहायता की सीमा हटाई जा सकती है और एग्रोवॉल्टेइक स्थापनाओं को समायोजित किया जा सकता है जहां फसल और सोलर पैनल एक साथ होते हैं। इसके साथ ही महाराष्ट्र के केंद्रीकृत भू-एकीकरण पोर्टल की तरह बड़े पैमाने पर अपनाए जाने वाले मॉडल भी अपनाए जा सकते हैं जहां 40,000 एकड़ से अधिक जमीन का इस्तेमाल सौर खेती के लिए किया जा रहा है।

डीजल पंप को बदलने से कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी और ईंधन कीमतों के उतार-चढ़ाव से बचने में मदद मिलेगी। सौर ऊर्जा दिन के समय उच्चतम उत्पादन करती है जो सिंचाई की जरूरतों के अनुरूप है और इसे अधिक किफायती बनाता है। इतना ही नहीं किसानों द्वारा जो अतिरिक्त बिजली तैयार की जाएगी उसे वापस ग्रिड में भेजा जा सकता है। इससे उन्हें न्यूनतम लागत पर अतिरिक्त आय अर्जित करने में भी मदद मिलेगी। इस प्रकार सौर ऊर्जा न केवल कार्बन उत्सर्जन कम करने में मदद कर सकती है बल्कि उसकी बदौलत हम विकेंद्रीकृत और मजबूत बिजली सहयोग हासिल कर सकते हैं और ग्रामीण समुदायों को भी मजबूत बना सकते हैं।

यह सही है कि पवन ऊर्जा और बायोमास भी देश में नवीकरणीय ऊर्जा मिश्रण के अहम घटक हैं। वे भी मायने रखते हैं लेकिन पवन ऊर्जा क्षमताओं का पूरा लाभ लेने में भौगोलिक बाधाएं आड़े आती हैं। यह किसानों के लिए भी उतना अनुकूल नहीं है। दूसरी ओर बायोमास लॉजिस्टिक्स और टिकाऊपन से जुड़े कई सवाल खड़े करती है। इनके विपरीत सौर ऊर्जा किसानों के नियंत्रण वाली और किफायती ऊर्जा साबित होती है।

आम परिवारों द्वारा सौर ऊर्जा को अपनाना पहले ही हमें अच्छे परिणाम देने वाला साबित हुआ है। देश में छतों पर स्थापित सौर ऊर्जा संयंत्रों की उत्पादन क्षता 19 गीगावॉट से अधिक हो चुकी है जबकि जुलाई 2025 तक कुल स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता 119 गीगावॉट से अधिक हो चुकी थी। पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना जैसी योजनाओं ने 10 लाख से अधिक घरों को सोलर पॉवर ग्रिड में शामिल किया है। इससे पता चलता है कि विकेंद्रीकृत मॉडल कामयाब हो सकते हैं।

अगर पीएम-कुसुम का दूसरा चरण पहले चरण से अधिक विस्तार हासिल कर सका तो भारत बहुत सफलतापूर्व ग्रामीण ऊर्जा क्रांति हासिल कर लेगा। बहरहाल, क्रियान्वयन में कई बाधाएं हैं। अक्सर जमीन के ऐसे टुकड़े हासिल करने में दिक्कत होती है जिन्हें एक साथ जोड़कर बिजली परियोजना विकसित करने वाले को दिया जा सके। इसके अलावा कई राज्य किफायती दरों पर बिजली देते हैं जिससे किसान सौर ऊर्जा पंपों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित नहीं होते। देश के बिजली क्षेत्र को गहन सुधारों की आवश्यकता है। ऐसे में कृषि में सौर ऊर्जा को अपनाना सकारात्मक संकेत है।

First Published : August 18, 2025 | 10:01 PM IST