फेसबुक के अनुषंगी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म व्हाट्सऐप ने दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित किया है कि वह तब तक अपनी नई निजता नीति लागू नहीं करेगा जब तक निजी डेटा के संरक्षण को लेकर कानून नहीं बन जाता। इससे संबंधित विधेयक तीन वर्ष से अधिक समय से लंबित है और व्हाट्सऐप की निजता नीति उन कई क्षेत्रों में से एक है जहां कानून की अनुपस्थिति बड़ी चिंता का विषय है। व्हाट्सऐप की सेवा शर्तें अपनी जगह हैं और यह सोशल मीडिया कंपनी अपने उपयोगकर्ताओं को नए नियम स्वीकार करने के लिए उकसाती रहेगी। व्हाट्सऐप ने अक्टूबर 2020 में अपनी सेवा शर्तें बदलने का प्रस्ताव रखा था और इसके अनुपालन के लिए फरवरी 2021 की सीमा तय की थी। कंपनी ने चेतावनी दी थी कि अनुपालन न करने वालों को इस प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल नहीं करने दिया जाएगा। नई सेवा शर्तें इस प्रकार तैयार की गई थीं कि कारोबारियों को संचालन में आसानी हो। नई शर्तों के अधीन कारोबारी खाते अपने साथ संपर्क करने वाले निजी, व्यक्तिगत डेटा और मेटाडेटा को साझा कर सकते हैं। इस डेटा को मूल कंपनी फेसबुक के साथ या तीसरे पक्ष के सेवा प्रदाताओं के साथ साझा किया जा सकता है। व्यक्तिगत और कारोबारी खातों के बीच होने वाली चैट यानी बातचीत में एंड टु एंड इनक्रिप्शन जारी रहेगा लेकिन कारोबारी खाते लोकेशन (भौगोलिक स्थिति), बैंकिंग ब्योरा, बिलिंग का ब्योरा, बातचीत की समयावधि आदि साझा कर सकते हैं। चूंकि व्हाट्सऐप का इस्तेमाल स्कूलों की गतिविधियों के लिए भी किया जाता है इसलिए इसमें बच्चों के बारे में संवेदनशील जानकारी भी हो सकती है।
नई सेवा शर्तें व्हाट्सऐप की 2016 की प्रतिबद्धता को तोड़ती हैं जिसके तहत उपयोगकर्ताओं के साथ डेटा साझा करने के विकल्प से निकला जा सकता था। यह शर्त यूरोपीय संघ में लागू नहीं हो सकती क्योंकि यह वहां के जीडीपीआर का उल्लंघन करती है। जीडीपीआर दुनिया का सबसे बेहतर और व्यापक डेटा संरक्षण कानून है। अमेरिका में भी यह निजता और डेटा संरक्षण कानून का उल्लंघन होगा। इन सेवा शर्तों का भारत के 53 करोड़ उपयोगकर्ताओं ने भारी विरोध किया जिसके बाद व्हाट्सऐप ने कहा कि अनुपालन अनिवार्य नहीं होगा। यदि व्हाट्सऐप डेटा और मेटाडेटा डेटा और फेसबुक द्वारा सीधे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से जुटाए गए मेटा डेटा से संबद्ध हो तो यह कई उपयोगकर्ताओं के जीवन की 360 डिग्री की तस्वीर पेश कर देगा।
हालांकि व्हाट्सऐप ने समझदारी भरा निर्णय लिया है लेकिन अदालत के समक्ष उसकी बात ने सारी जवाबदेही सरकार पर डाल दी है। खेद की बात है कि सरकार 2017 से ही कानून बनाने को लेकर हिचकिचा रही है। उस समय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि निजता बुनियादी अधिकार है और डेटा संरक्षण कानून होना चाहिए। सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति बी श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया ताकि कानून का मसौदा बन सके। समिति ने जुलाई 2018 में व्यक्तिगत डेटा संरक्षण का मसौदा कानून पेश किया। इसमें कहा गया कि डेटा संग्रह और प्रसंस्करण के हर कदम पर सहमति लेनी होगी। परंतु मसौदा सदन में पेश नहीं किया गया। दिसंबर 2019 में इसका संशोधित मसौदा पेश किया गया जिसे श्रीकृष्ण ने स्वयं इसकी आलोचना की और कहा कि इसमें सरकारी एजेंसियों को निगरानी और डेटा पर एकतरफा अधिकार दिए गए हैं। मसौदा कानून नहीं बन सका और 2019 के बाद से कोई विधेयक नहीं पेश किया गया। हाल में पेश नए आईटी नियम (मध्यवर्ती दिशानिर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता नियम 2021) भी निजता और अभिव्यक्ति की आजादी का अतिक्रमण करते हैं और उनके समक्ष संवैधानिक आधार पर भी कई चुनौतियां हैं। कानून के अभाव में व्हाट्सऐप नेटवर्क प्रभाव पर निर्भर रह सकता है और उपयोगकर्ताओं को सेवा शर्त मानने के लिए प्रेरित करना जारी रख सकता है। परंतु सरकार ने नागरिकों के बुनियादी अधिकारों की रक्षा के लिए निजता और डेटा संरक्षण कानून नहीं बनाकर हर नागरिक को जोखिम में डाल दिया है।
