ऐसा कितनी बार होता है कि आप अपनी मीटिंग में या फिर अपने स्टडी नोट्स को देखकर यह कह उठते हैं, ‘अरे! यह मैंने क्या लिखा हुआ है कि मैं खुद ही इसको नहीं पढ़ पा रहा हूं?’ दरअसल, आप की खुद की लेखनी आपका धोखा दे जाती है।
और जब आपके साथ ऐसा हो सकता है तो फिर दूसरे लोगों को कैसे आपकी हाथ की लिखावट पढ़ने में आएगी। बात अगर कुछ संवेदनशील मामलों की हो जहां पर हाथ की लिखावट बहुत अहमियत रखती हो तब फिर उसकी सही पहचान करना भी बड़ा जरूरी हो जाता है।
हम हैंडराइटिंग को एक टास्क के रूप में स्थापित करने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। ऐसा तो हम रोजाना ही करते हैं। इसको हम हाथ से लिखे दस्तावेजों, डाटा और दूसरी चीजों को खोजने के काम से भी मिला सकते हैं। क्या हाथ की लिखावट और मुश्किल अक्षरों की बनावट को और भी आसान बनाया जा सकता है।
क्या इसके लिए कंप्यूटर का उपयोग किया जा सकता है? और सबसे अहम बात यह है कि किस तरह से कंप्यूटरों को इसके लिए इस्तेमाल किया जा सकता है? कोई अस्पताल प्रशासन ही इसका सही और तेजी से जवाब दे सकता है।
आप उनको हाथ की लिखावट पहचानने का कारगर तरीका सुझाइए वह आपके शुक्रगुजार रहेंगे। दुनिया भर के अस्पतालों में डॉक्टर, नर्स, तकनीशियन और प्रशासनिक अमले को करोड़ों फॉर्म भरने पड़ते हैं। और जब एक बार वे फॉर्म भर दिए जाते हैं तो ज्यदातर मामलों में उन फॉर्मों की लिखावट की वजह से कई चीजें समझने में मुश्किल आती है।
कुछ जानकारियां स्पष्ट नहीं होने की वजह से मरीज की जान को खतरा भी हो सकता है। इसी तरह क्या कोई रेलवे क्लर्क हाथ से लिखे डाटा को बिना किसी गलती के स्कैन कर सकता है? क्या इंश्योरेंस क्लेम के लिए हाथ से भरे जाने वाले फॉर्म मुश्किल बनावट के चलते आसानी से पढ़े जा सकते हैं?
ठीक इसी तरह की बात पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज कराने और छात्रों की अध्ययन सामग्री के बारे में भी कही जा सकती है। आपको बता दें कि दुनिया भर में केवल मेडिकल रिकॉर्ड्स, बीमा, पुलिस शिकायतों, रेलवे आरक्षण, विश्वविद्यालय, कर्मचारियों के रिकॉर्ड, इनवॉयसेज और वित्तीय ब्यौरे से जुड़े हाथ से लिखे फॉर्म पर ही तकरीबन 70 अरब डॉलर की मोटी रकम खर्च की जाती हैं।
कई मामलों में, कानूनी आवश्यकता को पूरा करने के लिए हाथ से लिखे गए दस्तावेजों को इलेक्टॉनिक रूप से स्टोर करने की जरूरत समझी जा रही है। रीड इंक के संस्थापक अध्यक्ष थॉमस बिनफोर्ड कहते हैं, ‘जो पेपर ‘पढ़ने’ के लिए काम आता है उसकी कीमत काफी ज्यादा होती है। ‘ रीड इंक बेंगलुरू की कंपनी है जो पिछले आठ साल से हाथ की लिखावट को पहचानने वाला सॉफ्टवेयर तैयार कर रही है।
बिनफोर्ड ने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में 40 थीम का काम देखा है। इसके अलावा एमआईटी में वह कंप्यूटर विजन, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, मेडिकल इमेज प्रोसेसिंग, रोबोटिक्स और औद्योगिक निरीक्षण से जुड़े प्रोजेक्ट में बतौर शोध वैज्ञानिक शामिल रहे। साथ ही मुंबई के टीआईएफआर में भी वह फुलब्राइट स्कॉलर रह चुके हैं।
आज की तारीख में बिनफोर्ड, प्रतिभाशाली भारतीय लोगों के साथ और भी बेहतर ‘हैंडराइटिंग रिकॉगनिशन’ सॉफ्टवेयर तैयार करने में जुटी है। कंपनी ऐसे सॉफ्टवेयर पर काम कर रही है जिसमें हाथ की लेखनी की न केवल पहचान कर ली जाए बल्कि उसे सर्च और शेयर भी किया जा सके।
हाथ की लिखावट पहचानने के लिए ज्यादातर ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉगनिशन (ओआरसी) का इस्तेमाल किया जाता है। जिसमें एक मशीन अक्षरों को स्कैन करती है और फिर इसका मिलान किया जाता है। कंप्यूटर का इस्तेमाल करके इसको स्टोर, डिसप्ले, सर्च, एडिट और प्रिंट किया जा सकता है।
इसमें दिक्कत यही है कि ओआरसी में केवल 95 फीसदी एक्योरिसी ही है। वहीं, दवा, बीमा, वित्त और बैंकिंग जैसे क्षेत्रों में बिलकुल भी जोखिम नहीं लिया जा सकता। लेकिन रेड इंक के सीईओ इयोन बिनफोर्ड कहते हैं, ‘अब हमारा उत्पाद 98 फीसदी तक एक्युरेट है। और हमारा लक्ष्य इसको 99 फीसदी तक करने का है।’
रेड इंक सिस्टम हाथ की लिखावट से जुड़ा लेखनी भी बना रही है। कुछ खास तरह के अक्षरों की बनावट से भी लेख को पहचाना जा सकेगा। बिनफोर्ड कहते हैं, ‘हर आदमी का लिखने का तरीका अलग होता है। और दो लोग एक से ही अक्षर नहीं बना सकते।
कुछ लोग शॉर्ट हैंड का भी इस्तेमाल करते हैं जो केवल वे खुद ही समझ सकते हैं। हम चाहते हैं कि हमारा सिस्टम लोगों की हर तरह की लेखनी को पहचानने में सक्षम हो।’ इसका बाजार भी बहुत बड़ा है। अगर सबको जोड़ लिया जाए तो एंटरप्राइज मार्केट ही सबसे बड़ा है। अब मोबाइल फोन में भी इस तरह की डिवाइस दी जाने लगी हैं।