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मंदी पर आईएमएफ की चेतावनी पर दें ध्यान

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 5:32 PM IST

कीमतों में इजाफा हो रहा है और आय लगातार कम हो रही है। ऐसा लगता है कि हम सन 1930 के दशक में वापस लौट रहे हैं। इस समय इंडोने​शिया के बाली द्वीप में जी20 देशों के वित्त मंत्रियों और उनके केंद्रीय बैंकों के प्रमुखों की बैठक हो रही है। अगर वे अवसाद महसूस करते हैं तो उन्हें इसके लिए क्षमा किया जा सकता है क्योंकि वे वाकई ऐसा ही महसूस कर रहे हैं। यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष  (आईएमएफ) भी ऐसा ही सोचता है।
सबसे पहले महामारी आई। इसके चलते आय को समर्थन की आवश्यकता पड़ी। ऐसे में केंद्रीय बैंकों ने राजनीतिक नेतृत्व के निर्देश पर मौद्रिक नीति को​ ​असाधारण ढंग से ​शि​थिल किया। इसके पश्चात अभी कुछ माह पहले रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया जिससे हर चीज की आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित होनी शुरू हो गई। अगर इन दोनों घटनाओं को एक साथ मिलाकर देखा जाए तो इसका प्रभाव काफी मु​श्किल खड़ी करने वाला है।
आईएमएफ ने भी अपने ताजा बयान में यही बात कही है। आईएमएफ ने एक सीमित वक्तव्य में कहा, ‘वर्ष 2022 काफी मु​श्किल भरा साबित होने जा रहा है, जबकि वर्ष 2023 तो और भी कठिनाइयां ला सकता है क्योंकि उस समय मंदी का खतरा काफी बढ़ जाएगा।’मंदी की आशंका जताए जाने पर यह सवाल लाजिमी तौर पर उठता है कि क्या हम सन 1930 के दशक की तरह पूर्ण और व्यापक मंदी की दिशा में बढ़ रहे हैं?
आईएमएफ की रिपोर्ट में कहा गया है, ’75 केंद्रीय बैंक या हम जितने केंद्रीय बैंकों पर नजर रखते हैं उनमें से करीब तीन चौथाई ने जुलाई 2021 के बाद से ब्याज दरों में इजाफा किया है। औसतन देखा जाए तो उन्होंने 3.8 बार ऐसा किया है। उभरते और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था में जहां नीतिगत दरों में जल्दी इजाफा किया गया वहां कुल दरों में औसतन तीन फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। यह द​र विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों की करीब 1.7 फीसदी की दर से दोगुनी थी।’
परंतु ऐसे में एक प्रश्न यह भी उठता है कि इस ​स्थिति में आय को समर्थन देने वाली राजकोषीय नीतियों का क्या होगा? इस विषय में आईएमफ कहता है कि जिन देशों में कर्ज का स्तर काफी बढ़ा हुआ है उन्हें अपनी राजकोषीय नीति को सख्त बनाना होगा। इससे महंगे ऋण का बोझ कम करने में मदद मिलेगी और इसके साथ ही साथ मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने वाले मौद्रिक प्रयासों को भी पूरा किया जा सकेगा।
निकट भविष्य में पूरी दुनिया को बढ़ी हुई कीमतों और कम आय वाले हालात का सामना करना पड़ सकता है। कहा जा सकता है कि हम 1930 के दशक के करीब लौट चुके हैं।
आईएमएफ ने राजकोषीय नीति को लेकर कुछ नहीं कहा है। जबकि लंबे समय तक इसे ही हौआ माना जाता रहा है। इसने हमेशा राजनेताओं के उस रुझान पर कड़ा नियंत्रण रखने की हिमायत की है जिसके तहत तत्काल तो व्यय पर जोर दिया जाता है भले ही भविष्य में उसकी कीमत किसी और को चुकानी पड़े। लेकिन जाहिर है अर्थशास्त्रियों को तो चुनाव लड़ना नहीं होता इसलिए वे उसकी चिंता भी नहीं करते।
यही कारण है कि रिपोर्ट में कहा गया है, ‘नये उपाय नि​श्चित रूप से बजट-निरपेक्ष होने चाहिए। उनकी भरपाई नये राजस्व या अन्य स्थानों पर व्यय में कमी करके करनी चाहिए। यह काम बिना नया कर्ज लिए या मौद्रिक नीति के विपरीत काम किए बिना होना चाहिए। रिकॉर्ड कर्ज और उच्च ब्याज दर का यह नया दौर इन सभी बातों को दोगुना महत्त्वपूर्ण बना देता है।’
आईएमएफ ने हमेशा अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर दीर्घकालिक रुख अपनाया है। आमतौर पर उसकी बातें गहरे कानों को सुनायी नहीं दीं लेकिन इस बार इनके पास काफी गहन नैतिक विषयवस्तु है। इस विषय पर आईएमएफ कहता है, ‘तात्कालिक कदम के रूप में वि​भिन्न देशों को खाद्य निर्यात पर हाल ही में लगायी गयी रोक को पलटना चाहिए। ऐसा इसलिए कि ऐसे प्रतिबंध घरेलू कीमतों को ​स्थिर बनाने के मामले में निष्प्रभावी और नुकसानदेह दोनों होते हैं।’ लेकिन नैतिकता घरेलू राजनीतिक अनिवार्यताओं के मामले में बहुत मददगार नहीं साबित होती। ऐसे में संभव है कि इस अपील पर बहुत अ​धिक ध्यान न दिया जाए।
अंत में देखना होगा कि इन क्षेत्रों में भारत का प्रदर्शन कैसा रहा। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत का प्रदर्शन शानदार रहा है। ब​ल्कि लग तो यह रहा है मानो आईएमएफ ने भारत का अनुकरण किया हो। भारत ने अन्य देशों से पहले ही मौद्रिक नीति को सख्त करना शुरू कर दिया था। उसने राजकोषीय नीति के प्रबंधन में भी अत्य​धिक सावधानी बरती। बाली सम्मेलन में कोई भी ​शिकायत करने लायक नहीं रहेगा।
परंतु सवाल यह है कि आईएमएफ को भारत के खाद्यान्न निर्यात पर प्रतिबंध लगाने को लेकर क्या​ ​शिकायत करनी चा​हिए। उसे ​शिकायत इसलिए नहीं करनी चाहिए कि कई अफ्रीकी और प​श्चिम ए​शिया के देशों में खाद्यान्न का संकट होने जा रहा है ब​ल्कि ऐसा इसलिए होना चाहिए क्योंकि प्रतिबंध भारतीय किसानों को अतिरिक्त आय के एक अच्छे अवसर से वंचित करता है।
बहरहाल, एक पल के लिए भारत को भूल जाएं तो चीन सबको नीचे लाने में मदद कर सकता है। यहां यह कहना पर्याप्त होगा कि उसकी व्यापक औद्योगिक क्षमता का बमु​श्किल आधा इस्तेमाल हो पाएगा।

First Published : July 16, 2022 | 12:01 AM IST