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Opinion: कहीं अत्यधिक आशावादी तो नहीं हैं बाजार?

वैश्विक स्तर पर विभिन्न प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद वित्तीय बाजार लगातार आशावादी बने हुए हैं। इन बाजारों के हालात तथा भारत पर इसके असर के बारे में बता रहे हैं अजय शाह

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अजय शाह   
Last Updated- February 09, 2024 | 9:47 PM IST

फरवरी 2022 में अनिश्चितता तेजी से बढ़ी। फरवरी 2023 में इस समाचार पत्र में प्रकाशित मेरे स्तंभ का शीर्षक कह रहा था कि अनिश्चितता में निश्चित रूप से कमी आ रही है। उसके बाद वर्ष के दौरान कई सकारात्मक घटनाएं घटीं और शायद यही कारण है कि वित्तीय बाजार अति आशावाद के शिकार हैं। 

गत वर्ष का बड़ा सवाल यह था कि कोविड के बाद विकसित देशों की अर्थव्यवस्था को नए सिरे से गति कैसे प्रदान की जाए? बड़े पैमाने पर दिए जाने वाले मौद्रिक और राजकोषीय प्रोत्साहन के कारण मुद्रास्फीति बढ़ी। यह 1970 के दशक के मुद्रास्फीति संकट की तरह नहीं था जब नीतिगत रणनीति को लेकर अनुमान लगाना सहज था क्योंकि मुद्रास्फीति को लक्षित किया जा रहा था।

परंतु सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) या रोजगार को लेकर होने वाले नुकसान के बारे में बहुत निराशा थी जो मुद्रास्फीति को कम करने में मददगार होगी। इस दौरान चीजें बेहतर ढंग से घटित हुईं। विकसित देशों की मुद्रास्फीति बिना बेरोजगारी या जीडीपी वृद्धि पर असर डाले कम हुई। अब वैश्विक अर्थव्यवस्था ऐसी है जहां अमेरिका में वृद्धि मजबूत बनी हुई है, चीन में वृद्धि का स्तर कम है और यूरोप तथा जापान में वृद्धि कमजोर है। 

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अनुमान जताया है कि 2024 में अमेरिका का वास्तविक जीडीपी 2.1 फीसदी तथा जापान और यूरो क्षेत्र का 0.9 फीसदी बढ़ेगा। विकसित बाजारों में ब्याज दरों में पहली कटौती प्रतीकात्मक होगी जो बताएगी कि कोविड के बाद का मुद्रास्फीति का दौर बीत रहा है। वित्तीय बाजार 2024 में ऐसी घटनाओं को लेकर आशावादी हैं। वीआईएक्स यानी वॉलैटिलिटी इंडेक्स और मूव (मेरिल लिंच ऑप्शन वॉलेटिलिटी एस्टीमेट इंडेक्स) के रूप में अनिश्चितता को मापने वाले दो सूचकांक हैं। 

बीते वर्षों के दौरान वीआईएक्स में 29 फीसदी की गिरावट आई जबकि मूव अपरिवर्तित रहा। यदि विकसित देशों में 2024 में ब्याज दरों में कटौती होती है तो भारत में पूंजी की आवक का नया दौर देखने को मिल सकता है। यह विश्व अर्थव्यवस्था में एक अहम मोड़ है जहां वर्तमान और भविष्य का अनुमान लगाते हुए भारत के लिए निहितार्थों का आकलन किया जा सकता है।

विकसित देशों में मुद्रास्फीति में गिरावट क्यों आई? महामारी के कारण आपूर्ति में आई बाधा दूर हो गई। इसके साथ ही रूस ने ऊर्जा के मामले में यूरोप को ब्लैकमेल करने का प्रयास किया लेकिन वह इससे सफलतापूर्वक निपटने में कामयाब रहा। अमेरिका अब दुनिया का सबसे बड़ा गैस निर्यातक है। कोविड के अंतिम दिनों में अस्थायी मुद्रास्फीति को लेकर एक आशावादी व्याख्या यह थी कि कंपनियों को कुछ समय तक अच्छा मार्जिन प्रदान करने की आवश्यकता है ताकि वे उत्पादन को दोबारा शुरू करने की तयशुदा लागत चुका सकें। 

अमेरिका का प्रदर्शन इतना अच्छा क्यों है? आंशिक तौर पर ऐसा महामारी से उबरने के क्रम में हुआ जहां अच्छी किस्मत भी साथ थी। अमेरिकी श्रम बाजार अन्य विकसित बाजारों की तुलना में अधिक लचीले हैं। राष्ट्रपति जो बाइडन की टीम पिछली सरकार की तरह लोकलुभावन कदम उठाने के बजाय गुणवत्तापूर्ण शासन व्यवस्था वाली टीम है। उसके बेहतर सोच और नीतिगत निर्णयों ने भी सकारात्मक अंतर पैदा किया। 

यूरोप और अमेरिका में स्थित रक्षा क्षेत्र का औद्योगिक आधार यूक्रेन युद्ध के बाद बढ़ाया जा रहा है। रक्षा व्यय का डॉलर मूल्य अभी भी काफी कम है और खरीद प्रक्रिया अक्सर विनिर्माण प्रक्रियाओं में नए निवेश को गति दे रही हैं जो अन्यथा कमजोर पड़ चुकी थीं। एक डॉलर की प्रतीत होने वाली खरीद भी दीर्घकालिक आपूर्ति श्रृंखला में निवेश को कई स्तरों पर बढ़ावा दे रही है।

वर्ष 2024 के लिए पांच अहम चुनौतियां इस प्रकार हैं:

  1. कई देशों में 2024 में चुनाव होने हैं और कई लोकलुभावन बातों वाले नेता जीत सकते हैं। एक उदाहरण के रूप में देखें तो विक्टर ओर्बन की अवज्ञा आंशिक तौर पर उनके इस दांव पर आधारित हो सकती है कि एक साल के भीतर यूरोपीय संघ में उनके जैसे कई लोकलुभावन नेता उत्पन्न हो जाएंगे। चुनावी साल में कई देशों की सरकारें अलग तरह से व्यवहार करेंगी। अगर डॉनल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बन जाते हैं तो दुनिया भर में उथलपुथल मच जाएगी और यूक्रेन और जलवायु परिवर्तन जैसी दिक्कतें बढ़ेंगी।
  1. यूक्रेन पर रूस के हमले ने दुनिया को मुश्किल में डाला और यह अब भी जारी है। अगर कोई देश पड़ोसी मुल्क पर हमला कर देगा तो कोई अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था नहीं बचेगी। यह युद्ध कई स्तरों पर अस्थिरता बढ़ा रहा है। यूक्रेन युद्ध ने हालात नहीं बदले होते तो ईरान भी पश्चिम एशिया में इतना आक्रामक नहीं होता।
  1. तीसरा वैश्वीकरण आकार ले रहा है। यह वह चरण है जहां सर्वाधिक आर्थिक प्रभुत्व उन देशों के इर्दगिर्द होता है जो कम विदेश नीति और सैन्य संरेखण वाले हों। इससे अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बेहतरी आती है लेकिन इसकी कीमत आर्थिक वृद्धि के मोर्चे पर चुकानी होती है।
  1. नकदी की उच्च उपलब्धता दुर्घटनाओं की संभावना पैदा करती है। अब तक की उल्लेखनीय बात यह है कि उभरते बाजारों के केंद्रीय बैंकों द्वारा इतना धन जुटाने के बीच गलतियां बहुत कम हुईं। इसके बावजूद हम पूरी तरह निश्चिंत होने की स्थिति में नहीं हैं।
  1. आखिर में जैसा कि हम 2020 के बाद से ही जोर दे रहे हैं, हम नए परिदृश्य से मुखातिब हैं। वर्तमान मॉडल और सिद्धांत सामान्य समय को ध्यान में रखकर बने हैं। ऐसे में गलतियां होना संभव है।

वित्तीय बाजारों के एसऐंडपी 500 और वीआईएक्स के मूल्यांकन में वित्तीय बाजारों का प्रदर्शन अच्छा रहा है। भारत की बात करें तो भारतीय निर्यात का सबसे बेहतर माप सोने और पेट्रोलियम उत्पादों को छोड़कर अन्य वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात पर ध्यान केंद्रित करना है। 

इस आधार पर फरवरी 2022 के बाद से निर्यात स्थिर रहा है। फरवरी 2022 के बाद से विकसित बाजारों का अस्वाभाविक रूप से बेहतर प्रदर्शन भारतीय निर्यात की उछाल में शामिल नहीं है। अगर विकसित बाजारों में तेजी जारी रही तो क्या भारतीय निर्यात में सुधार होगा? यदि ऐसा नहीं हुआ तो भारतीय निर्यात को नुकसान होगा।

गाजा में चल रही लड़ाई विश्वस्तर पर कोई बहुत गहन युद्ध नहीं है लेकिन यह भारत के लिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि स्वेज नहर के रास्ते मालवहन मुश्किल हो गया है। भारत से यूरोप और अमेरिका के पूर्वी द्वीप को जाने का यह प्रमुख रास्ता है जो फिलहाल बाधित है और केप ऑफ गुड होप के जरिये दूसरे मार्ग से माल ढोने पर लागत बढ़ गई है। बंबई और कराची दुनिया के दो बंदरगाह हैं जहां स्वेज नहर अधिक मायने रखती है। 

भारत में निवेश की कमजोरी के कारण चालू खाते का घाटा अधिक नहीं है। ऐसे में वैश्विक वित्तीय हालात में बदलाव रुपये के लिए हालात को मुश्किल नहीं बनाएगा। हालांकि कई परिसंपत्तियों का पुनर्मूल्यांकन हो सकता है क्योंकि वीआईएक्स और भारतीय परिसंपत्ति के मूल्यांकन में संबंध है।

(लेखक एक्सकेडीआर फोरम में शोधकर्ता हैं)

First Published : February 9, 2024 | 9:47 PM IST