भारतीय सिनेमा को आज की तारीख में दुनिया भर में काफी इज्जत दी जाती है।
लेकिन यही इज्जत और प्रशंसा का बोध उसी समय काफूर हो जाता है, जब बात अपने फिल्मी विरासत को संभालकर रखने की आती है।इतना विकसित होने के बावजूद फिल्मों के संग्रहण को आज भी मायानगरी की गलियों में अहमियत नहीं दी जाती, जो हमारी राष्ट्रीय विरासत का हिस्सा है। इसी वजह से कई खूबसूरत तस्वीरें और फिल्में इतिहास की गर्त में कहां खो गईं, किसी को पता ही नहीं चला।
दुनिया भर में हर साल सबसे ज्यादा फिल्में अपने ही देश में बनाई जाती हैं। लेकिन इनमें से केवल 15 से 18 फीसदी फिल्मों का ही तरीके से संग्रहण हो पाता है। इसी बात ने तो पुणे के मशहूर फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीटयूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) को कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया। इस संस्था ने इस बाबत एक कोर्स शुरू करने का फैसला किया है। यह जल्द ही अपने छात्र-छात्राओं को फिल्म संग्रहण और संरक्षण के गुर सिखाएगा।
इस काम के लिए संस्थान ने थॉमसन फाउंडेशन फॉर फिल्म्स एंड टेलिविजन हेरिटेज से हाथ मिलाया है। कल के फिल्मकारों को फिल्म संग्रहण की बुनियादी जानकारी देने और देश की फिल्मी विरासत को बचाए रखने में उसकी अहमियत को समझने के लिए एफटीआईआई ने पुणे फिल्म ट्रेजर्स फेस्टीवल की शुरुआत की है। यह आयोजन अब हर साल किया जाएगा।
इस तरह का पहला फेस्टीवल नैशनल फिल्म आर्कइव्स ऑफ इंडिया (एनएफएआई), पुणे के प्रांगण में 17 से 20 मार्च के बीच आयोजित किया गया था। अमेरिका का जॉर्ज ईस्टमैन हाउस, एफटीआईआई और फ्रांसिसी संस्था सिनेमादक्यू फ्रांसिसिये ने मिलकर इस फेस्टीवल का आयोजन किया था। इसमें दुनिया की जानी-मानी फिल्मी हस्तियों ने हिस्सा लिया था।
इनमें सुधीर मिश्रा, ओलिवर आसयास, निशिकांत कामत और जेन फ्रांसिस रॉजर जैसी नामचीन हस्तियां शामिल हैं। थॉमसन फॉउंडेशन के एमडी सेवराइन वेमाइरे ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि, ‘इस वक्त भारत में कोई फिल्म स्कूल फिल्म संरक्षण का पाठ नहीं पढ़ाता। एक तरफ तो फिल्मों के मामले में भारत एक सुपरपॉवर बनकर उभारा हैस लेकिन फिल्मों के संरक्षण के बारे में कोई ज्यादा जानता ही नहीं।
यूरोप और अमेरिका के इंस्टीटयूट तो इस मामले में मास्टर्स की डिग्री भी देते हैं। भारत के फिल्मकारों और फिल्म स्कूलों को इस बारे में गंभीरता से सोच विचार करना होगा। साथ ही, उन्हें मजबूत कदम भी उठाने पड़ेंगे।’ इस साल के इस फिल्म फेस्टीवल का थीम था, सिनमा की आधुनिकता और आधुनिक सिनेमा। इस साल से यह फिल्म फेस्टीवल हर साल आयोजित किया जाएगा।
साथ ही, यह एफटीआईआई में पहले साल के कैरीकुलम का हिस्सा भी होगा। एफटीआईआई के फैकल्टी मेंबर सुरेश छाबिड़या का कहना है कि,’मिर्च मसाला जैसी खूबसूरत और जबरदस्त फिल्म आज की तारीख उपलब्ध नहीं है। कारण, सिर्फ इतना है कि इसका संग्रहण ठीक से नहीं किया जा सकता। भारत में बनी फिल्में हमारी राष्ट्रीय विरासत के हिस्से हैं। इन्हें हमें किसी भी कीमत पर बचाकर तो रखना ही पडेग़ा। इसीलिए हमें कल के फिल्मकारों को फिल्म संरक्षण के बारे में बताना तो पड़ेगा ही।’
एनएफएआई के निदेशक के. शशिधरन ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि,’ हर साल देश में बनी कुल फिल्मों में से केवल 15 से 18 फीसदी फिल्मों का ही हर साल संग्रहण हो पाता है। देसी फिल्म निर्माताओं को तो इनके संग्रहण की चिंता ही नहीं है। 2006 में देश में 1092 फीचर फिल्में देश में बनी थी, जिसमें से केवल 200 को ही हमारे पास संरक्षण के लिए भेजा गया था। हमें लोगों के बीच जागरुकता फैलाने की जरूरत है।’