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बैंक फर्जीवाड़े के नित नए बदलते स्वरूप

डिजिटल फर्जीवाड़े की घटनाओं से निपटने के लिए ग्राहकों को जागरूक बनाना जरूरी है, बता रहे हैं तमाल बंद्योपाध्याय

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तमाल बंद्योपाध्याय   
Last Updated- July 22, 2024 | 9:09 PM IST

दिल्ली के सीआर पार्क में रहने वाली 72 वर्षीया कृष्णा दासगुप्ता ने हाल ही में 83 लाख रुपये गंवा दिए, जब एक दिन उन्हें करीब 12 घंटे तक ‘डिजिटल अरेस्ट’ का सामना करना पड़ा। डिजिटल हाउस अरेस्ट क्या है? यह एक ऐसा तरीका है जिसका इस्तेमाल साइबर अपराधी लोगों को उनके घरों में कैद कर उनसे धोखाधड़ी करने के लिए करते हैं। ये अपराधी लोगों में खौफ पैदा करने के लिए ऑडियो या वीडियो कॉल करते हैं और खुद को पुलिस अधिकारी बताते हैं। वे आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) जैसे अत्याधुनिक तरीके का इस्तेमाल करके बनाई गई आवाज या वीडियो की मदद भी लेते हैं।

दासगुप्ता के लिए इस यंत्रणा की शुरुआत एक फोन कॉल से हुई, जिसमें उन्हें बताया गया कि उनका मोबाइल नंबर जल्द ही ब्लॉक हो जाएगा। उनके लिए यह बड़ी समस्या थी क्योंकि वह दिल्ली में अकेली रहती थीं और उन्हें मुंबई में रहने वाली अपनी बेटी और दामाद से अक्सर बात करनी होती थी।

जब उन्होंने फोन करने वाले को पलटकर कॉल किया तो उन्हें बताया गया कि उनका फोन नंबर कोई और इस्तेमाल कर रहा है, जिस पर अभद्र भाषा और अश्लील तस्वीरों का इस्तेमाल करने के कारण पुलिस की नजर है। जब उन्होंने अपने आधार कार्ड का ब्योरा साझा किया तब उन्हें बताया गया कि वे काले धन को सफेद बनाने के मामले में फंसी हुई हैं और दो घंटे के भीतर ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा।

पुलिस की वर्दी पहने एक युवक ने उनसे पूछा कि उनके बैंक खाते में कितना पैसा है। इसके बाद उनके जाल में फंसी दासगुप्ता पूरे दिन तब तक एक बैंक से दूसरे बैंक दौड़ती रहीं, जब तक उन्होंने आरटीजीएस के जरिये अपनी बचत का पूरा पैसा बताए गए खाते में जमा नहीं कर दिया। अगली सुबह जब उनकी बेटी और उनके दामाद ने बताया कि वह फर्जीवाड़े का शिकार हो गईं हैं तब उन्हें इस बात का अहसास हुआ।

जुलाई के पहले हफ्ते में हैदराबाद का एक 23 वर्षीय व्यक्ति पार्सल स्कैम का शिकार हो गया और उसे 12 लाख रुपये का चूना लग गया। पीड़ित व्यक्ति के पास फोन आया और फोन करने वाले ने खुद को फेडएक्स फेडएक्स से जुड़ा बताते हुए कहा कि उनके आधार नंबर का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है।

पार्सल स्कैल कैसे किया जाता है? इसकी शुरुआत एक फोन कॉल के साथ होती है जिसे करने वाला व्यक्ति फेडएक्स ग्राहक सेवा से जुड़े होने का दावा करता है। कॉल करने वाला अपने शिकार को बताता है कि उसके आधार नंबर से जुड़ा कोई पैकेज कहीं रोका गया है क्योंकि इसमें कोई अवैध सामान है। पीड़ित को ऐसे किसी भी पैकेज की जानकारी नहीं होती है लेकिन फर्जीवाड़ा करने वाला व्यक्ति जोर देकर कहेगा कि इसे मुंबई से भेजा गया था और अब इस सामान में नशीले पदार्थ पाए जाने के कारण यह सीमा शुल्क में फंसा हुआ है।

इसके बाद फर्जीवाड़ा करने वाला धमकी देगा कि कॉल मुंबई पुलिस के साइबर सेल को ट्रांसफर कर दी जाएगी। इसके बाद पीड़ित के पास एक फोन भी आएगा, जो किसी पुलिस अधिकारी का होगा और वह गिरफ्तार करने की धमकी देगा। एक निजी बैंक ने हाल ही में अपने ग्राहकों को सलाह देते हुए कहा, ‘फर्जीवाड़ा करने वाले लोग फोन के दौरान अपने शिकार के दिमाग से खेलते हैं। वे पीड़ित व्यक्ति को डरा-धमकाकर बैंक की जानकारी के साथ आधार और पहचान का अन्य विवरण भी देने के लिए कहते हैं।’

क्या पीड़ित पर प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज होने वाली है? क्या गिरफ्तारी होगी? धन शोधन के आरोपों से कैसे बचा जा सकता है? डरा हुआ पीड़ित इन सवालों से पीछा छुड़ाने के लिए जल्द से जल्द रकम भेजने में जुट जाता है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार पिछले एक साल में घोटालों के शिकार लोगों ने फेडएक्स, डीएचएल, ब्लू डार्ट, डीटीडीसी जैसी कुरियर कंपनियों के नाम पर करोड़ों रुपये गंवाए हैं।

जून के मध्य में वेंकटेश (नाम बदला हुआ) को अमेरिका में रहने वाले अपने एक दोस्त का व्हाट्सऐप संदेश मिला। जैसे ही फोन की स्क्रीन पर दोस्त की तस्वीर दिखी, वेंकटेश उत्साहित हो गए क्योंकि उन्होंने अपने दोस्त से काफी समय से बात नहीं की थी। बातचीत में पता चला कि उनका दोस्त अभी-अभी दिल्ली पहुंचा है और उसकी बेटी का पैर टूट गया है। बेटी अस्पताल में भर्ती है और उसे तुरंत कुछ पैसों की जरूरत थी। वेंकटेश ने बिना कुछ सोचे समझे अपने दोस्त द्वारा बताए गए बैंक खाते में 80,000 रुपये भेज दिए।

यह वाकया सुबह के समय हुआ। कुछ घंटे बाद दोपहर में वेंकटेश ने अपने दोस्त को यह जानने के लिए फोन किया कि उसकी बेटी कैसी है। उसके दोस्त को फोन का जवाब देने में देर हो गई। उसकी आवाज से वेंकटेश को लगा कि वह सो रहा था। वास्तव में ऐसा ही था क्योंकि सैन फ्रांसिस्को में उस वक्त आधी रात से भी ज्यादा का समय था, जहां उनका दोस्त रहता है। दरअसल उनका दोस्त भारत आया ही नहीं था। उसने वेंकटेश से पैसे भी नहीं मांगे थे। फर्जीवाड़ा करने वाले शख्स ने वेंकटेश के साथ चैट की, अपने प्रोफाइल पर उसके दोस्त की तस्वीर का इस्तेमाल किया, जिसे उसने सोशल मीडिया अकाउंट से निकाला था।

ये भारतीय बैंकिंग उद्योग को परेशान करने वाले धोखाधड़ी के कुछ हालिया उदाहरण हैं। कुछ समय पहले तक, धोखेबाज 5जी अपग्रेड, सिम ब्लॉक, लंबित केवाईसी या दस्तावेज सत्यापन से संबंधित एसएमएस भेजते थे। फोन पर खुद को बैंक अधिकारी बताने वाली घटनाओं की भी कमी नहीं थी। झारखंड के एक शहर में फिशिंग घोटाले से जुड़ी सच्ची घटनाओं पर आधारित वेबसीरीज ‘जामताड़ा’ नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई थी, जिसमें इस तरह की समस्याएं दिखाई गई थीं। हालांकि इसे नाटकीयता से भरने के लिए थोड़ी अतिशयोक्ति भी थी।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की वित्त वर्ष 2024 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन वर्षों में बैंकों को श्रेणियों में बांटकर फर्जीवाड़े के मामलों का आकलन किया गया तो पता चला कि निजी क्षेत्र के बैंकों ने अधिकतम संख्या में फर्जीवाड़े की सूचना दी। किंतु सरकारी बैंकों में ज्यादा रकम की धोखाधड़ी की गई थी।

उदाहरण के तौर पर वित्त वर्ष 2024 में सरकारी बैंकों ने धोखाधड़ी के 7,472 मामले दर्ज कराए, निजी बैंकों द्वारा दर्ज कराए गए 24,210 मामलों के एक तिहाई से भी कम हैं। मगर सरकारी बैंकों में 10,507 करोड़ रुपये का फर्जीवाड़ा हुआ, जो निजी बैंकों के 3170 करोड़ रुपये के मुकाबले तीन गुना से भी अधिक है।

वित्त वर्ष 2024 में कुल मिलाकर ऐसे 36,075 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 13,930 करोड़ रुपये शामिल थे। वित्त वर्ष 2023 में फर्जीवाड़े के 13,564 मामले थे और इसमें शामिल रकम 26,217 करोड़ रुपये थी वहीं वित्त वर्ष 2022 में 9046 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 45,358 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी हुई।

मैं वित्त वर्ष 2022 से पहले के धोखाधड़ी के आंकड़ों में गहराई से नहीं जा रहा हूं क्योंकि बैंक इनमें लगातार संशोधन करते हैं। मिसाल के तौर पर आरबीआई की वित्त वर्ष 2023 की सालाना रिपोर्ट में उस वर्ष के धोखाधड़ी के मामलों की संख्या 13,553 आंकी गई (यह ताजा सालाना रिपोर्ट के मुताबिक है।) लेकिन जिस रकम का जिक्र किया गया वह कहीं अधिक 30,252 करोड़ रुपये थी।

इसके अलावा किसी साल बताए गए धोखाधड़ी के दर्ज मामले कई साल पहले भी हो सकते हैं। आरबीआई के फर्जीवाड़े से जुड़े पूरे आंकड़े वर्ष के दौरान दर्ज किए गए कम से कम 1 लाख रुपये के घोटाले से जुड़ा है। रिपोर्ट में दर्ज राशि, बैंकों या ग्राहकों द्वारा हुए नुकसान को नहीं दर्शाती है। वास्तविक नुकसान वसूली पर निर्भर करेगा।

आरबीआई ने जनवरी 2016 में धोखाधड़ी का डेटाबेस सेंट्रल फ्रॉड रजिस्ट्री (सीएफआर) शुरू किया, जिसे ऑनलाइन सर्च किया जा सकता है। बैंकों खास तौर पर सरकारी बैंकों द्वारा सीएफआर के इस्तेमाल को बढ़ाने में समय लगा।

वित्त वर्ष 2018 की आरबीआई की सालाना रिपोर्ट में बताया गया था कि बैंकों द्वारा रिपोर्ट किए गए किए गए धोखाधड़ी के मामलों की संख्या पिछले 10 वर्षों में लगभग 4,500 थी, जो वित्त वर्ष 2018 में बढ़कर 5,835 हो गई। भगोड़े हीरा कारोबारी नीरव मोदी द्वारा पंजाब नैशनल बैंक से तथाकथित लेटर ऑफ अंडरटेकिंग का इस्तेमाल कर 14,000 करोड़ रुपये निकालने के कारण वित्त वर्ष 2018 में फर्जीवाड़े में शामिल रकम में भारी उछाल आई।

एक और दिलचस्प बात यह रही कि ऋण पोर्टफोलियो में ज्यादा बड़ी रकम की धोखाधड़ी देखी जाती है। मगर संख्या की बात करें तो ऋण की धोखाधड़ी से बड़ी संख्या में डिजिटल धोखाधड़ी होती है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक मुख्य रूप से ऋण धोखाधड़ी से जूझते हैं जबकि डिजिटल धोखाधड़ी निजी बैंकों में ज्यादा होती है।

वित्त वर्ष 2020 में इस रुझान की शुरुआत हुई जब आखिरी बार बैंकिंग उद्योग के ऋण पोर्टफोलियो में संख्या और मूल्य दोनों के लिहाज से अधिक धोखाधड़ी देखी गई। डिजिटल बैंकिंग में अभूतपूर्व प्रगति, खास तौर पर भुगतान क्षेत्र में प्रगति के कारण वित्त वर्ष 2021 के बाद से धोखाधड़ी की पूरी तस्वीर ही बदल गई है। अब डिजिटल फर्जीवाड़े (कार्ड के इस्तेमाल संबंधी, इंटरनेट या बाकी चीजें) की घटनाओं ने ऋण से जुड़ी धोखाधड़ी को पीछे छोड़ दिया है।

यह आलेख लिखते समय मेरे मोबाइल फोन पर एक एसएमएस आया जिसमें लिखा था, ‘इंडिया पोस्टः आपका पैकेज वेयरहाउस में आ गया और हमने दो बार डिलिवरी करने की कोशिश की लेकिन पते से जुड़ी अधूरी सूचना के कारण हम ऐसा नहीं कर पाए। आप अपने पते का ब्योरा 48 घंटे में अपडेट करें नहीं तो आपका पैकेज वापस भेज दिया जाएगा। आप अपने पते को इस लिंक पर अपडेट करें।

लिंक…. अपडेट पूरा होने के बाद आपको हम 24 घंटे के भीतर दोबारा डिलिवरी करेंगे, इंडिया पोस्ट!’ अगर मैं पता अपडेट करने के लिए इस लिंक पर क्लिक करता हूं तब मैं अगले हफ्ते अपना कॉलम लिखने की स्थिति में नहीं रहूंगा। आप तो समझ ही गए होंगे कि ऐसा क्यों होगा।

First Published : July 22, 2024 | 9:09 PM IST