निजी निवेश देश में आर्थिक और सांस्कृतिक गतिशीलता का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत है। सन 2011 के बाद के परिदृश्य को देखें तो इस कहानी का एक हिस्सा बुनियादी ढांचागत क्षेत्र में निजी निवेश में भारी कमी और इस क्षेत्र में सरकार की बढ़ी हुई भूमिका का है। हाल के महीनों में इसमें कुछ सुधार देखने को मिला है।
अधिकांश जीडीपी और रोजगार निजी क्षेत्र से ही उत्पादित होते हैं। किसी देश की महानता का संबंध वहां लोगों को मिली आजादी, उनकी ऊर्जा, रचनात्मकता और उनमें मौजूद आशावाद से होता है। जब निजी फर्म तयशुदा परिसंपत्ति तैयार करती हैं तो इससे दीर्घावधि का उत्पादन और मेहनताने के भुगतान की एक दीर्घकालिक धारा तैयार होती है। कोई भी निवेश परियोजना बहुत कम समय के लिए भूमिका निभाती है और इस दौरान दीर्घकालिक उत्पादन और मेहनताने का एक सतत सिलसिला शुरू होता है।
सन 1991 से 2011 के बीच भारत ने मजबूत वृद्धि हासिल की। उसके बाद निजी निवेश लडख़ड़ा गया। निजी निवेश के आकलन का एक तरीका है विशुद्ध तयशुदा परिसंपत्तियों में सालाना वृद्धि जो गैर वित्तीय कंपनियों की सालाना बैलेंस शीट में नजर आती है। एक अन्य तरीका है सीएमआईई कैपेक्स डेटाबेस के जरिये नजर डालना जो निवेश परियोजनाओं का ब्योरा रखता है। 2021 में रुपये में किए गए आकलन में निजी क्रियान्वयाधीन परियोजनाओं के शेयरों का अधिकतम मूल्य 2011-12 में 90 लाख करोड़ रुपये था। बाद के वर्षों में वह घटकर 50 लाख करोड़ रुपये रह गया। औसतन देखा जाए तो यह 5 लाख करोड़ रुपये या करीब 70 अरब डॉलर प्रति वर्ष की गिरावट है।
यह बीते दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू है। हर देश में राज्य का निर्माण ही निजी व्यक्तियों की आजादी और आशावाद को आकार देता है। वही यह निर्धारित करता है कि लोग निवेश और संगठन निर्माण के इच्छुक हों। मैंने और विजय केलकर ने इन सवालों पर उपाय सुझाए थे जो नवंबर 2019 में पेंगुइन ऐलन लेन से ‘इन सर्विस ऑफ द रिपब्लिक: द आर्ट ऐंड साइंस ऑफ इकनॉमिक पॉलिसी’ के नाम से प्रकाशित हुए।
बीते दो वर्षों से प्रौद्योगिकी कंपनियों की सफलता को लेकर काफी उत्साह है। परंतु हमें इस विशाल आकार को देखते हुए अपने उत्साह को नियंत्रित करना होगा। सुई को इस विशाल अर्थव्यवस्था की गति और दिशा को बदलना आसान नहीं है। करीब तीन लाख करोड़ डॉलर सालाना की जीडीपी में एक फीसदी हिस्सा होता है 30 अरब डॉलर प्रति वर्ष। इसी प्रकार अगर 40 करोड़ की कुल श्रम शक्ति और 80 करोड़ बेरोजगार लोगों से तुलना की जाए तो 10 लाख नए रोजगार कोई खास मायने नहीं रखते। सूचना प्रौद्योगिकी देश का सबसे बड़ा उद्योग है और लोकरुचि की तमाम कथाएं वहां से उपजती हैं। परंतु वहां इतना विकास नहीं हो रहा है जो अर्थव्यवस्था की प्रमुख समस्याओं की भरपाई कर सके।
समस्या का एक हिस्सा बुनियादी ढांचे से संबद्ध है। 2021 में रुपये के संदर्भ में देखें तो 2011-12 में निजी ‘क्रियान्वयनाधीन परियोजनाएं’ करीब 36 लाख करोड़ रुपये की थीं जो अब 10 लाख करोड़ रुपये की हो चुकी हैं। निजी ‘क्रियान्वयनाधीन परियोजनाओं’ में 26 लाख करोड़ रुपये की गिरावट बुनियादी ढांचे में समस्या की वजह से है। निजी निवेश में आई गिरावट का आधा हिस्सा बुनियादी ढांचा क्षेत्र में है तथा शेष आधा अन्य हिस्सों में। बुनियादी ढांचा क्षेत्र पर सावधानी से नजर डालें तो पता चलता है कि सरकारी बुनियादी परियोजनाओं में विस्तार ने क्षतिपूर्ति की है। सन 2011 से 2018 तक कुल ‘क्रियान्वयनाधीन’ बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का मूल्य करीब 70 लाख करोड़ रुपये था और निजी निवेश में आ रही कमी की भरपाई सरकारी निवेश से की जा रही थी। परंतु सरकारी बुनियादी ढांचा निवेश पर जोर देने की नीति में भी अपरिहार्य रूप से कुछ दिक्कतें हैं। सरकार की राजकोषीय क्षमता और परियोजना प्रबंधन सीमित हैं। ऐसे में सरकारी नेतृत्व वाली नीतियों के लिए सीमित गुंजाइश है। सन 2018 के बाद से सरकार की ‘क्रियान्वयनाधीन परियोजनाओं’ का मूल्य वास्तविक संदर्भ में 7 लाख करोड़ रुपये तक कम हुआ है। परिणामस्वरूप, कुल ‘क्रियान्वयनाधीन परियोजनाएं’ 2018 के 72 लाख करोड़ रुपये से कम होकर आज 63 लाख करोड़ रुपये रह गई हैं। 2018 के बाद बुनियादी निवेश में यह बदलाव और अर्थव्यवस्था के मांग क्षेत्र के लिए उसके परिणामों को व्यापक रूप से चिह्नित नहीं किया गया है।
दोबारा निजी ‘क्रियान्वयनाधीन परियोजनाओं’ की बात करें तो ताजा आंकड़ा बताता है कि 38 लाख करोड़ रुपये के निचले स्तर से सुधार हुआ और अप्रैल-जून 2021 तिमाही में यह बढ़कर 39.58 लाख करोड़ रुपये हुआ। यहां तीन बातें नजर आती हैं।
1. महामारी में कुछ कंपनियों को भारी अनिश्चितता का सामना करना पड़ा, उनके पास प्रबंधन में बहुत अधिक गुंजाइश नहीं रह गई थी और उन्होंने निवेश की गतिविधियों को स्थगित कर दिया। सन 2021 तक अनिश्चितता में कमी आई और कंपनियां दोबारा सामान्य निवेश की दिशा में बढऩे लगीं।
2. विकसित देशों में टीकाकरण ने गति पकड़ी। विकासशील देशों ने राजकोषीय नीति की मदद से अपनी अर्थव्यवस्था को गति देने की ठानी। भारत के निर्यात में तेजी आई। चीन के राष्ट्रवाद ने इसमें मदद की। दुनिया के कई देशों ने वहां से अपना कारोबार भारत स्थानांतरित किया। कई भारतीय कंपनियों ने निर्यात या उससे संबद्ध गतिविधियों पर जोर दिया और निर्यात में तेजी का लाभ उठाया। इन घटनाओं के जरिये निर्यात क्षेत्र में कई कंपनियां निवेश कर रही हैं।
3. आखिरकार, महामारी में खपत का रुझान बदला। कुछ उद्योगों मसलन वाणिज्यिक अचल संपत्ति का प्रदर्शन खराब रहा लेकिन कुछ उद्योग मसलन ब्रॉडबैंड दूरसंचार ने बेहतरी दर्ज की। अनुकूल उद्योगों ने उच्च वृद्धि हासिल की और अब वे दोबारा निवेश कर रहे हैं।
बात करें तो करीब दो लाख करोड़ रुपये का बदलाव वास्तव में बहुत अधिक नहीं है। ताजा आंकड़े अगर बदलाव लाते हैं तो वे महत्त्वपूर्ण होंगे। जुलाई-अगस्त और सितंबर 2021 के आंकड़े 1 अक्टूबर को जारी किए जाएंगे। हमें उन पर नजर रखनी चाहिए। माना जा सकता है कि 43 लाख करोड़ रुपये की तेजी गत दशक औसत वर्ष की गिरावट की भरपाई कर देगी।
निजी निवेश में सुधार से वित्तीय, मशविरा, शोध, विनिर्माण और पूंजीगत वस्तु उद्योग के लिए मांग में सुधार होता है। इन सभी उद्योगों को बीते दशक में कठिनाई का सामना करना पड़ा। अब उनकी तकदीर बदल सकती है।
(लेखक पुणे इंटरनैशनल सेंटर में शोधकर्ता हैं)