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नैनो तकनीक से होगा कृषि का कायापलट

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 11:02 PM IST

खास जीन की मदद से अच्छी क्वॉलिटी के उत्पादों के विकास में बायो टेक्नोलोजी अहम भूमिका अदा कर रही है।


हालांकि इस तकनीक की पूरक नैनो टेक्नोलोजी इस क्वॉलिटी को बढ़ाने में और कारगर रोल निभाने को तैयार नजर आ रही है। जैविक कणों और कोशिकाओं के बेहतर इस्तेमाल में यह तकनीक काफी कारगर साबित हो सकती है।


इस तकनीक के जरिये वैसे लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है, जो अन्य तकनीकों के माध्यम से संभव नहीं है। इसके अलावा नैनो टेक्नोलोजी पेड़ और प्राणी संबंधी जीनोम के अध्ययन में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है, जिससे डीएनए को क्रमवार करने में अभी के मुकाबले काफी कम वक्त लगेगा और यह प्रक्रिया काफी आसान हो जाएगी।


हालंकि स्वास्थ्य, इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य जैविक व औद्योगिक क्षेत्रों में नैनो तकनीक की उपयोगिता को पहले ही काफी सराहा जा चुका है, लेकिन कृषि की सूरत बदलने में इसकी संभावित ताकत के बारे में ज्यादा लोगों को पता नहीं है। हकीकत यह है कि नैनो तकनीक के जरिये खाद्य सुरक्षा की स्थिति को बरकरार रखने के साथ-साथ फाइबर, ईंधन और अन्य कृषि उत्पादों की मांग भी पूरी की जा सकती है।


दरअसल भारत में बायो टेक्नोलोजी का इस्तेमाल थोड़ी देर से शुरू हुआ और इस वजह से यहां इस तकनीक का फायदा कृषि और इससे जुड़े अन्य क्षेत्रों में नहीं उठाया जा सका। लेकिन कृषि वैज्ञानिक नैनो तकनीक के मामले में ऐसी गलती दोहराना नहीं चाहते। कुछ कृषि विश्वविद्यालय पहले ही नैनो तकनीक से जुड़े कोर्स और रिसर्च संबंधी अभियान शुरू कर चुके हैं।


योजना आयोग द्वारा बनाई गई एक उपसमिति ने नैनो तकनीक के लिए मजबूत रिसर्च और डिवेलपमेंट आधार बनाने की सिफारिश की है। योजना आयोग ने आधुनिक तकनीक और किसानों तक नैनो तकनीक की पहुंच को मुमकिन बनाने के मद्देनजर सलाह देने के लिए इस समिति का गठन किया था। समित का गठन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक मंगला राय की अध्यक्षता में किया गया था।


समिति ने अपनी सिफारिश में नैनो तकनीक के लिए पहल के तहत नैशनल एग्रीकल्चरल रिसर्च सिस्टम बनाने की बात कही है। समिति ने इस मकसद के लिए एक संस्थान नैशनल इंस्टिटयूट ऑफ नैनो टेक्नोलोजी इन एग्रीकल्चर (नीना) के गठन की भी बात कही है। इस संस्थान को संबंधित क्षेत्रों और प्राइवेट सेक्टर से जोड़ने का भी प्रस्ताव है।
 
रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका और जापान जैसे विकसित देशों में नैनो तकनीक में तेजी से हुई प्रगति के मद्देनजर भारत को विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए 11वीं पंचवर्षीय योजना में इस तकनीक पर भारी राशि निवेश करने की जरूरत है, ताकि भविष्य में इस तकनीक का फायदा हमारे देश को भी मिल सके।


रिपोर्ट के मुताबिक, जीनोमिक्स संबंधी रिसर्च में नैनो तकनीक काफी मददगार साबित हो सकती है। इसके अलावा पानी की बचत, पेड़-पौधों की सुरक्षा आदि में भी यह तकनीक कारगर होगी।


होम्योपैथी की तर्ज पर नैनो तकनीक में भी अणुओं और कोशिकाओं के सूक्ष्म कणों की तरह काफी संभावना होती है और ये कण अणु और कोशिका की तरह ही कारगर साबित होते हैं। इसके मद्देनजर इस तकनीक का इस्तेमाल बीमारी के कारणों की खोज और इसके इलाज के लिए दवा और वैक्सीन ढूंढने में किया जा सकता है।


जहां तक वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन का मामला है, नैनो के कण संबंधित स्थान पर वैक्सीन के सक्रिय अवयवों को पहुंचाने में कामयाब हो सकते हैं। यानी इसके जरिए गंभीर बीमारियों से लड़ने में मदद मिलेगी। मसलन, इस तकनीक के जरिये जानवरों में पाई जाने वाली खुड़पका बीमारी का इलाज ढूंढने में भी मदद मिलेगी। गौरतलब है कि इस बीमारी का अब तक उन्मूलन नहीं किया जा सका है।


अगर किसानों के नजरिये से देखें तो नैनो तकनीक से खेती के लागत खर्चों में कमी आ सकती है। मिसाल के तौर पर नैनो-सेंसर्स और नैनो स्मार्ट डिलिवरी सिस्टम के जरिए पौधों को पानी और खाद का उचित पोषण मिल सकेगा। प्रोसेस्ड फूड और अन्य खास कृषि उत्पादों के मामले में नैनो तकनीक का इस्तेमाल हो सकता है, जिसके जरिए उत्पादों की पहचान और क्वॉलिटी  बरकरार रखने में मदद मिलेगी।


रपोर्ट के तहत इस तकनीक में अपार संभावनाएं हैं। साथ ही इसमें कई तरह की चीजों का समावेश है। इसके मद्देनजर इंजीनियरों, बायोलॉजिस्टों, केमिस्टों और पैथोलोजिस्ट आदि को मिलकर काम करने की जरूरत होगी। इसके लिए समिति ने नैनो तकनीक पर नैशनल कंर्सोटियम (राष्ट्रीय समूह) बनाने की बात कही है।


इसमें नीना के अलावा नैनो तकनीक की रिसर्च और डेवलपमेंट से जुड़े अन्य संस्थानों को शामिल करने का प्रस्ताव है। इन संस्थानों में भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान (आईआईटी), भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएस), बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू), जामिया हमदर्द के अलावा कई कृषि और अन्य विश्वविद्यालयों समेत सर्वोच्च वैज्ञानिक और रिसर्च संस्थानों को शामिल करने की बात कही गई है।


चूंकि नैनो तकनीक से जुड़े रिसर्च और डिवेलपमेंट कार्यक्रम के लिए काफी रकम की जरूरत होगी, इसलिए सरकार को इस मामले में फंड मुहैया कराने के मामले में काफी उदारता बरतनी होगी।


हालांकि, ऐसा नहीं है कि सरकार को काफी लंबे अर्से तक इस बाबत राशि मुहैया करानी पड़ेगा। इस रिसर्च के सकारत्मक नतीजे आने के बाद प्राइवेट कंपनियों को इसमें लाभ की संभावनाओं के बारे में पता चल सकेगा। इसके बाद निजी क्षेत्र के इस क्षेत्र में निवेश करने के लिए आगे आने की संभावना काफी प्रबल हो जाएगी।

First Published : April 22, 2008 | 11:24 PM IST