पौराणिक कथाओं में फीनिक्स पक्षी का जिक्र आता है, जो जलकर राख हो जाता है और उसी राख से दोबारा पैदा हो जाता है। अब आप सोचेंगे कि फीनिक्स का बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र से क्या लेना है? भारत के माइक्रोफाइनैंस उद्योग का इतिहास और सफर देखें तो आपको फीनिक्स नजर आएगा। फीनिक्स की ही तरह माइक्रोफाइनैंस क्षेत्र को भी बार-बार चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और कई दफा उसके अस्तित्व पर संकट खड़ा होता है मगर हर बार यह उद्योग फिर से खड़ा हो जाता है। इस उद्योग को हालिया झटका कर्नाटक सरकार से लग रहा है, जो कर्नाटक सूक्ष्म वित्त (बलपूर्वक कार्रवाई निषेध) अध्यादेश 2025 को किसी भी समय मंजूरी दिला सकता है।
माइक्रोफाइनैंस पर किसी भारतीय राज्य का यह पहला हमला नहीं है। असम विधानसभा ने 30 दिसंबर 2020 को सर्वसम्मति से असम सूक्ष्म वित्त संस्थान (पूंजी ऋण नियमन) विधेयक 2020 पारित कर दिया ताकि आर्थिक रूप से कमजोर लोगों खासकर विशेषकर महिलाओं को माइक्रोफाइनैंस संस्थानों और साहूकारों से बचाया जा सके।
विधेयक पारित होने के बाद राज्य के वित्त मंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने कहा था, ‘हमारे राज्य की उन महिलाओं के लिए यह सबसे अच्छा कानून है, जो लंबे समय से शोषण की शिकार हुई हैं और कर्ज वसूली एजेंट तथा माइक्रोफाइनैंस संस्थाएं जिनका गलत फायदा उठाती रही हैं।’ शर्मा ने भारतीय रिजर्व बैंक के अधिकार क्षेत्र पर भी सवाल उठाया और कहा, ‘रिजर्व बैंक ने कल मुझे चिट्ठी लिखी और विधेयक पारित करने से पहले उसके साथ मशविरा करने को कहा। उसने कुछ संशोधनों के सुझाव भी दिए। रिजर्व बैंक बीच में कैसे आ सकता है? यह सदन का विशेषाधिकार है।’
इस कानून के जरिये असम में सभी माइक्रोफाइनैंस का पंजीकरण अनिवार्य हो गया है और उन्हें अपने कारोबार के इलाके तथा ब्याज दर का ब्योरा भी देना पड़ता है। बकाया वसूलने के लिए किसी तरह की जोर-जबरदस्ती करने पर 6 महीने कैद या 10,000 रुपये जुर्माने का प्रावधान भी कर दिया गया। सितंबर 2023 में असम सरकार ने एक विधेयक पेश किया, जिसमें रिजर्व बैंक के नियमन में आने वाली संस्थाओं को ऊपर वाले कानून के दायरे से बाहर करने का प्रस्ताव था। विधेयक लाने की वजह यह थी कि कुछ माइक्रोफाइनैंस संस्थान इतना ज्यादा कर्ज दे रहे थे कि लोगों ने अपनी क्षमता से ज्यादा कर्ज ले लिया और उनमें से कई उसे चुकाने में नाकाम होने लगे। असम से 10 साल पहले दिसंबर 2010 में आंध्र प्रदेश सरकार ने आंध्र प्रदेश सूक्ष्म वित्त संस्थान (ऋण गतिविधि नियमन) अधिनियम पारित किया था, जिसमें माइक्रोफाइनैंस संस्थाओं को कर्जदारों के घर या दफ्तर से वसूली करने से एकदम रोक दिया गया और निर्देश दिया गया कि हर हफ्ते की जगह कानून में बताए गए सार्वजनिक स्थानों पर महीने में एक बार वसूली करें। आंध्र प्रदेश का कानून इसलिए आया क्योंकि कुछ माइक्रोफाइनैंस संस्थान अनैतिक तरीके से कर्ज वसूल रहे थे और उनके कारण कुछ कर्जदारों ने आत्महत्या तक कर ली। इन संस्थानों पर एक ही व्यक्ति को ऊंची ब्याज दर पर कई छोटे कर्ज देने के आरोप भी लगे।
2005 और 2010 के दरम्यान पांच साल में भारत का माइक्रोफाइनैंस उद्योग दुनिया के सबसे बड़े उद्योगों में शुमार हो गया, जिसका अड्डा आंध्र प्रदेश था। लेकिन आंध्र प्रदेश अधिनियम ने इस उद्योग के वजूद पर ही तलवार लटका दी और दक्षिण के इस राज्य में सभी माइक्रोफाइनैंस संस्थानों का कामकाज ठप हो गया। इसका असर कमोबेश हर राज्य में महसूस किया गया और इन संस्थाओं से कर्ज लेने वालों ने उसे चुकाने से इनकार कर दिया। इससे फंसा कर्ज बढ़ने लगा। बैंकों ने भी माइक्रोफाइनैंस संस्थाओं को कर्ज देने से इनकार कर दिया, जबकि इनका काम ही बैंक से कर्ज लेकर चलता है। कर्नाटक फिलहाल माइक्रोफाइनैंस का केंद्र नहीं है। क्रेडिट ब्यूरो इक्विफैक्स क्रेडिट इन्फॉर्मेशन सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड के आंकड़े बताते हैं कि दिसंबर 2024 तक कुल 3,84,396 करोड़ रुपये के कर्ज बांटने वाले माइक्रोफाइनैंस उद्योग के लिए कर्नाटक चौथा सबसे बड़ा राज्य था। कारोबार की मात्रा के लिहाज से बिहार, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश ही उससे आगे हैं और पश्चिम बंगाल का नाम कर्नाटक के बाद आता है। नवंबर तक कर्नाटक में कम से कम 55 लाख कर्जदार थे, जिन पर 37,500 करोड़ रुपये के छोटे कर्ज थे। ये कर्ज बैंकों (यूनिवर्सल बैंक और लघु वित्त बैंक दोनों), गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) और माइक्रोफाइनैंस संस्थानों ने दिए थे। फिर कर्नाटक के इस अध्यादेश का मकसद क्या है?
इसके लागू होने के 30 दिन के भीतर कर्नाटक में काम कर रहे सभी माइक्रोफाइनैंस संस्थानों को पंजीकरण के लिए आवेदन डालना होगा और बताना होगा कि वे कहां काम करना चाहते हैं, कितना ब्याज लेते हैं और कर्ज किस तरह वसूलते हैं। पंजीयन अधिकारी स्वतः संज्ञान लेकर या शिकायत मिलने पर किसी भी समय पंजीकरण रद्द कर सकता है। सरकार उधार देने, वसूलने और वसूलने के तरीके तय कर सकती है। माइक्रोफाइनैंस संस्थान या उनके एजेंट कर्ज वसूलने के जोर-जबरदस्ती करेंगे तो सजा मिलेगी, जिसमें 6 महीने से 10 साल तक की कैद और 5 लाख रुपये तक जुर्माना शामिल है। राज्य पंजीकरण प्राधिकरण गलत तरीके अपना रहे संस्थानों का पंजीकरण रोक या रद्द भी कर सकता है। प्रस्तावित अध्यादेश साफ कहता है कि रिजर्व बैंक के पास पंजीकृत बैंकों या एनबीएफसी पर यह लागू नहीं होगा।
सवाल यह है कि अगर विधेयक माइक्रोफाइनैंस संस्थानों की नकल कर कर्ज बांट रहे अनियमित संस्थानों को निशाने पर ले रहा है तो क्या उसे माइक्रोफाइनैंस के बजाय दूसरा शब्द इस्तेमाल नहीं करना चाहिए? असल में माइक्रोफाइनैंस का मतलब छोटे कर्ज है और चूंकि माइक्रोफाइनैंस संस्थान ही ज्यादातर ऐसे कर्ज देते हैं, इसलिए तोहमत और खमियाजा उन्हें ही भुगतना पड़ता है क्योंकि उधार लेने वाले कायदे से चलने वाले और बेकायदा संस्थानों के बीच फर्क नहीं कर पाते। आंध्र प्रदेश का 2010 का अध्यादेश रिजर्व बैंक में पंजीकृत संस्थाओं पर भी लागू हुआ था मगर बाद में उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय ने इसे खारिज कर दिया था। फिर उसने भी अध्यादेश लाकर रिजर्व बैंक में पंजीकृत संस्थाओं को इसके दायरे से बाहर किया।
अक्सर रसूख वाले स्थानीय लोग इन अनियमित संस्थाओं के बिचौलिये का काम करते हैं, कर्ज की अर्जी डलवाते हैं, किस्त वसूलते हैं और किसी खास इलाके के कर्जदारों को संभालते हैं। वे अपने घर में ही बैठक करते हैं और हर हफ्ते किस्त वसूलते हैं। कभी-कभार वे किस्त संस्था के पास जमा करने के बजाय खुद रख लेते हैं। इससे कर्जदार डीफॉल्टर बन जाते हैं और कर्ज देने वाली संस्था का फंसा कर्ज बढ़ जाता है। यदि कर्नाटक इसी अध्यादेश के साथ आगे बढ़ता है तो माइक्रोफाइनैंस संस्थाएं मुश्किल में पड़ेंगी और पूरे देश में असर महसूस होगा। यह भी तब होगा, जब माइक्रोफाइनैंस उद्योग फंसे कर्ज की बढ़ती तादाद और कम कर्ज वितरण से जूझ रहा है। मगर उम्मीद है कि उद्योग फीनिक्स की तरह एक बार फिर उठ खड़ा होगा।