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कोविड का दीर्घकालिक प्रभाव

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 4:02 PM IST

अप्रैल-जून तिमाही में आ​र्थिक वृद्धि की दर तमाम सरकारी और गैर सरकारी अनुमानों की तुलना में कम रही। निजी पूर्वानुमान लगाने वालों ने पूरे वर्ष के अपने अनुमान को घटाकर 7 फीसदी से कम कर दिया है। हालांकि सरकार ऐसा करने की इच्छुक नहीं नजर आ रही है। अंतिम आंकड़ा क्या होगा यह तो आने वाली तिमाहियों की वृद्धि के आंकड़े से ही तय होगा। रिजर्व बैंक ने औसत वृद्धि के अनुमान को 4 से 5 फीसदी कर दिया है। जबकि आगामी वर्ष 2023-24 में 6 फीसदी की वृद्धि हासिल होने का अनुमान जताया गया है। 

ये कमजोर आंकड़े कोविड से पहले वाले वर्ष यानी 2019-20 से बहुत अलग नहीं हैं। उस वक्त वृद्धि दर घटकर 3.7 फीसदी रह गई थी। जबकि 2020-22 के कोविड प्रभावित वर्षों में कोई वृद्धि देखने को नहीं मिली। अगर 2019 से 2024 तक के पूरे पांच वर्ष की अव​धि को एक साथ रखा जाए तो वृद्धि का औसत 3.6 फीसदी का आता है। यह 1970 के दशक के बाद से सबसे धीमी वृद्धि वाले पांच वर्ष रहेंगे।

यह स्वीकार करना होगा कि कुछ सकारात्मक दृश्य भी हैं। ठीक वैसे ही जैसे क्रिकेट मैच में भले ही टीम का प्रदर्शन अच्छा न हो लेकिन किसी खास बल्लेबाज या गेंदबाज का प्रदर्शन अच्छा रहता है। ऐसे में परिवहन ढांचे में सुधार को लेकर उत्साहित हुआ जा सकता है, बहुमुखी डिजिटलीकरण के उत्पादकता लाभ भी एक सकारात्मक पहलू हैं, ऊर्जा क्षेत्र में आ रहा परिवर्तन एक सकारात्मक बात है और कर राजस्व में सुधार तो है ही। यह भी सही है कि एक कठिन समय में भारत अन्य तमाम बड़े देशों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। इन बातों के बावजूद तेज आ​र्थिक वृद्धि का अति महत्त्वपूर्ण लक्ष्य (जिसका अर्थ आमतौर पर 7 फीसदी वा​र्षिक वृद्धि दर है) दूर नजर आ रहा है। इसका स्पष्टीकरण शायद यह है कि लॉन्ग कोविड को अब चिकित्सा जगत भी मान्यता देने लगा है। वायरस के दीर्घकालिक दुष्प्रभावों का असर अर्थव्यवस्था पर भी देखने को मिला है और यही वजह है कि उसे लॉन्ग कोविड का नाम दिया गया है। उदाहरण के लिए अमेरिका और यूरोप (ब्रिटेन समेत) दोनों कोविड के आ​र्थिक प्रभाव से निपटने के क्रम में अतिरिक्त प्रयास करने की कीमत चुका रहे हैं। इसके अतिरिक्त रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों का कुछ असर भी उन पर पड़ ही रहा है। भारी भरकम सार्वजनिक ऋण और उच्च मुद्रास्फीति से जूझती हुई दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएं मंदी की ओर बढ़ रही हैं। दोनों के केंद्रीय बैंक उच्च ब्याज दरों के माध्यम से मुद्रास्फीति का मुकाबला करने में लगे हैं और ये दरें आने वाले कुछ वर्षों तक यूं ही ऊंचे स्तर पर बनी रह सकती हैं। इस बीच अप्रैल-जून तिमाही में चीन की वृद्धि दर बमु​श्किल 0.4 फीसदी रही। लगता नहीं कि वह निकट भविष्य में अतीत की तीव्र वृद्धि के आसपास भी लौट पाएगा। 

ये तीन बड़ी अर्थव्यवस्थाएं वै​श्विक जीडीपी के दोतिहाई हिस्से के लिए उत्तरदायी हैं। इसलिए जहां उभरते बाजारों में वृद्धि जारी रह सकती है, वहीं समग्र वै​श्विक वृद्धि कमजोर ही रहेगी। वित्तीय संकट के बाद और कोविड के पहले की अव​धि के तीन फीसदी की औसत वै​श्विक आ​र्थिक वृद्धि की तुलना में 2022 और 2023 में साफतौर पर मंदी आती दिख रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन हालांकि अन्य देशों से बेहतर है लेकिन वै​श्विक विपरीत ​परि​​स्थितियां उसे भी लाजिमी तौर पर प्रभावित करेंगी। घरेलू बाधाएं भी एकदम वास्तविक हैं। देश का सार्वजनिक ऋण तेजी से बढ़ा है और मुद्रास्फीति का स्तर भी काफी अधिक है। नीति निर्माता खुदरा मुद्रास्फीति पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं जो फिलहाल 6.7 फीसदी के स्तर पर है लेकिन वे थोक मुद्रास्फीति की भी अनदेखी नहीं कर सकते हैं जो इस समय 15 फीसदी के स्तर पर है। ब्याज दरों में भी इजाफा किया गया है और वे आगे चलकर और बढ़ेंगी। निरंतर उच्च सार्वजनिक ऋण का प्रभाव भी देखने को मिलेगा। सन 2010-11 में केंद्र सरकार के कर्ज का ब्याज चुकाने में राजस्व प्रा​प्तियों का 29.7 फीसदी हिस्सा खप जाता था। 2014-15 तक यह अनुपात बढ़कर 36.5 फीसदी हो गया था और कोविड के आगमन तक यह उसी स्तर पर बरकरार था। कोविड के असर से निपटने के लिए खर्च बढ़ाने पर जोर दिया गया और उसके चलते ब्याज भुगतान राजस्व प्रा​प्तियों के 42.7 फीसदी तक पहुंच गया। उच्च ब्याज दर के कारण ऐसे समय पर यह और बढ़ सकता है जबकि राजकोषीय घाटा पहले ही अ​धिक है और उसे कम करना आवश्यक है। संक्षेप में कहें तो मौद्रिक नीति वृद्धि पर असर डालेगी और उसे गति देने के लिए जरूरी राजकोषीय गुंजाइश भी नहीं रहेगी। इन वृहद आ​र्थिक हकीकतों के चलते वृद्धि में अनिवार्य तौर पर धीमापन आएगा। ऐसे में देश इस वर्ष 7 फीसदी की वृद्धि दर हासिल कर भी सकता है और नहीं भी कर सकता है। परंतु वै​श्विक और घरेलू हालात को देखते हुए अगर भारत 6 फीसदी वा​​र्षिक की दर से भी वृद्धि हासिल कर सका तो यह एक कामयाबी मानी जाएगी।

First Published : September 2, 2022 | 9:33 PM IST