गंगा महज एक नदी न होकर हमारी सभ्यता, संस्कृति और आस्था का प्रतीक भी है। इसका प्रवाह भारतीय जीवनशैली की तासीर तय करता है। अपनी अनथक यात्रा में यह भारतीय रीति-रिवाज के अलग-अलग पहलुओं से हमें रूबरू कराती है। ऐसे में गंगा का नदीनामा लिखने की कोशिश जाहिर तौर पर नायाब मानी जाएगी। खासतौर पर तब, जब अल्फाज को और जीवंत बनाने के लिए तस्वीरों की मदद ली जाए। हाल ही में आई किताब ‘गंगा – ए डिविनिटी इन फ्लो’ में भी शब्दों और तस्वीरों के जरिये उसी रौ में बहने का प्रयास किया गया है, जैसा कि गंगा का सफरनामा है।
भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) के अधिकारी विजय सिंघल ने इस किताब को लिखा है। दिल्ली के पत्रकार अतुल भारद्वाज ने इसके लिए फोटोग्राफी की है। विजन इंडिया प्रकाशन द्वारा 240 पन्नों में छापी गई इस किताब की भूमिका नामचीन फिल्म स्टार अमिताभ बच्चन ने लिखी है। गोमुख से गंगासागर तक की गंगा की यात्रा की दास्तां 400 से ज्यादा तस्वीरों के जरिये कही गई है।
यह किताब इस मायने अनूठी है कि इसमें विषय को फलसफाना अंदाज में अलग दृष्टिकोण देने की कोशिश की गई है। इसमें सिर्फ गंगा यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ावों जैसे ऋषिकेश, हरिद्वार और बनारस के घाटों का ही जिक्र नहीं है, बल्कि कुछ ऐसे ज्वलंत सवाल भी उठाए गए हैं, जिन्हें लेकर अब तक कोई खास संजीदगी नहीं दिखाई गई है। गंगा की भौगोलिक स्थिति से रूबरू कराते हुए किताब में इस बात पर जोर दिया गया है कि यदि पर्यावरण के प्राकृतिक तानेबाने से इसी तरह छेड़छाड़ जारी रही, तो आने वाले दिनों में गंगा का वजूद ही खत्म हो जाएगा। इसकी स्थिति एक बरसाती नदी सरीखी हो जाएगी, जिसे अपना गला तर करने के लिए साल भर बारिश के रुत का इंतजार करना पड़ता है।
विजय सिंघल और अतुल भारद्वाज ने गंगा के आदि से अंत तक (करीब 25,00 किलोमीटर) का सफर करीब 3 साल में पूरा किया। इस दौरान उन्होंने एक आम आदमी के नजरिए से इस नदी के हर उस पहलू को छूने की कोशिश की, जिनका सरोकार भारतीय जनमानस से है। फिर उन्होंने गंगा को जीवन के प्रतीक और ज्ञान के स्रोत के तौर पर पेश करके उसके सौंदर्य क ो बेहद खूबसूरत अंदाज में परोसने का काम इस किताब के जरिये किया।
पहले भी दर्शन से संबंधित कई किताबें लिख चुके सिंघल मेकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी कर चुके हैं। शायद यही वजह है कि अपनी नई किताब में गंगा की पवित्रता को सूक्ष्म स्तर से सांसारिक स्तर पर परिभाषित करने की उन्होंने भरसक कोशिश की है। गंगा पर उनकी किताब उनके प्रकृति प्रेमी होने और प्रकृति के विभिन्न रूपों की तह तक पड़ताल करने की ख्वाहिश को जाहिर करती है। अतुल भारद्वाज दिल्ली के ही पत्रकार रहे हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ फोटोग्राफी का शौक परवान चढ़ा और उनका यह शौक अब जुनून में तब्दील हो चुका है। इस किताब में उनकी फोटोग्राफी की जो खास बात नजर आती है, उसमें कभी किसी दार्शनिक का अंदाज छुपा होता है, तो कभी किसी संगीत की सुरीली-सी धुन सुनाई पड़ती है। अतुल ने गंगा के सफर और प्रवाह के सौंदर्य को खूबसूरती से उभारा है।
पर किताब की कीमत (3000 रुपये) इतनी रखी गई है कि यह आम आदमी की किताब बमुश्किल ही बन पाए। शायद यही वजह है कि खुद सिंघल भी मानते हैं कि यह कॉफी टेबल की किताब है। सरल शब्दों में कहें तो कॉफी टेबल पर होने वाले बौध्दिक विमर्श में किताब का जिक्र होगा, बहस-मुबाहसे होंगे और फिर प्याले में तूफान आएगा। बोलचाल की भाषा में कहें तो यह किताब ‘मास’ के लिए नहीं, बल्कि ‘क्लास’ के लिए है।
