भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने सार्वजनिक निर्गमों के सूचीबद्ध होने में लगने वाला समय कम करने के संबंध में एक विमर्श पत्र जारी किया है। इस विमर्श पत्र के अनुसार सेबी का मानना है कि अगर सूचीबद्धता प्रक्रिया वर्तमान में टी+6 दिनों (टी निर्गम बंद होने की तिथि है) से घटाकर टी+3 कार्य दिवसों तक कर दी जाए तो यह निर्गम जारी करने वाली इकाइयों एवं निवेशकों दोनों के लिए फायदे की बात होगी।
पत्र में कहा गया है कि सूचीबद्ध होने में लगने वाला समय कम करने के प्रस्ताव के संबंध में स्टॉक एक्सचेंज, स्व-अभिप्रमाणित सिंडिकेट बैंक (एससीएसीबी), प्रायोजक बैंक, भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीएल), डिपॉजिटरीज, पंजीयक सहित सभी संबंधित पक्षों से मशविरा किया गया है। यह प्रस्ताव करने से जुड़े सभी आवश्यक परीक्षण भी पूरे किए गए हैं।
हालांकि, सूचीबद्धता प्रक्रिया जुड़े संबंधित पक्षों को लगता है कि नई समयसीमा सभी मध्यस्थों एवं सेवा प्रदाताओं जैसे निवेश बैंकर, ब्रोकरेज कंपनियों, पंजीयकों एवं स्टॉक एक्सचेंजों पर दबाव डाल सकती है।
निर्गम सूचीबद्ध होने में लगने वाला समय कम होने से संबंधित शेयरों में कारोबार जल्द शुरू होने जैसे कई अन्य लाभ मिलेंगे, मगर अपेक्षाकृत कम समय में नियम-शर्तों का अनुपालन करने में खर्च अधिक आएगा।
पत्र में सार्वजनिक निर्गम में आवेदन से लेकर सूचीबद्धता तक होने वाली प्रक्रियाओं का जिक्र किया गया है और इनमें अधिकांश के लिए कड़ी समयसीमा का प्रस्ताव दिया गया है। इससे सेवा प्रदाताओं के हरेक खंड में इकाइयों को निर्धारित अवधि में आवश्यक शर्तें पूरी करने के लिए अपनी आंतरिक प्रक्रियाएं तेजी से निपटानी होंगी।
नए निर्गम के सूचीबद्ध होने और कारोबार शुरू होने से पहले विभिन्न चरणों से गुजरना पड़ता है। इन चरणों का जिक्र विस्तार से किया गया है और नियामक ने सूचीबद्धता प्रक्रिया में लगने वाला समय तीन कार्य दिवस कम करने के लिए नई समयसीमा का प्रस्ताव दिया है। विमर्श पत्र में इंटरनेट बैंडविड्थ एवं सर्वर क्षमता बढ़ाने सहित भारत इंटरफेस फॉर मनी (भीम) प्रणाली में आवश्यक क्षमता सुधारों का जिक्र है।
आवेदन सौंपे जाने और बोलियों में निवेशकों द्वारा संभावित संशोधनों के बाद निर्गम बंद होने से पहले इन्हें एससीएसबी एवं मध्यस्थों द्वारा निपटाया जाना अनिवार्य होता है। इसके बाद तीसरे पक्ष से जुड़े आवेदनों की जांच होती है और उसके बाद एससीएसबी और प्रायोजक बैंक ऐप्लिकेशन सपोर्टेड बाई ब्लॉक्ड अमाउंट (अस्बा) के तहत सौंपे गए आवेदनों से रकम आरक्षित (ब्लॉक) करने की पुष्टि करते हैं।
इसके बाद निर्गम पूर्व पूंजी (प्री-इश्यू कैपिटल) और शेयर आवंटन को अंतिम रूप दिया जाता और इसे मंजूरी मिल जाती है। ये चरण पूरे होने के बाद रकम अंतरित करने एवं अस्बा आवेदनों के तहत सुरक्षित रकम पर रोक हटाने की प्रक्रिया पूरी की जाती है। इसके बाद जिन्हें शेयरों का आवंटन होना है उनके खाते में ये शेयर भेजे जाते हैं। इसके बाद शेयरों की सूचीबद्धता होती है एवं कारोबार शुरू करने से संबंधित मंजूरी मिल जाती है। कारोबार शुरू होने से पहले आवंटन से जुड़ा विज्ञापन प्रकाशित किया जाता है।
‘कागजी कार्रवाई’ इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से निपटाई जाती है मगर इसमें कई प्रक्रियाएं होती हैं। एक संबंधित पक्षों के समूह से दूसरे संबंधित पक्षों के समूह तक प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाती है और इस तरह प्रत्येक चरण पूरा होता है। यद्यपि, डिजिटलीकरण से ये सारी प्रक्रियाएं सरलता से पूरी की जा सकती हैं मगर विभिन्न संबंधित पक्षों के बीच काफी संयोजन की आवश्यकता है।
उदाहरण के लिए एससीएसबी एवं मध्यस्थों को प्रायोजक बैंकों को सभी सूचनाएं देनी पड़ती हैं उसके बाद ये पंजीयक के पास भेजी जाती हैं। अंत में एक्सचेंज इनमें शामिल होते हैं। सैद्धांतिक रूप से यह प्रस्ताव अच्छा है जिससे निर्गमकर्ता एवं निवेशकों दोनों को लाभ होगा। मगर इस प्रक्रिया में कुछ रुकावट है। यह संभव है कि नियामक सूचीबद्धता में लगने वाला समय धीरे-धीरे (पहले पांच दिन और फिर घटाकर चार दिन) घटाए। यह भी संभव है नई सूचीबद्धता समयावधि पहले छोटे निर्गमों पर लागू किए जाए और बाद में बड़े निर्गमों में इसे शुरू किया जाए।