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श्रम सुधार कानून की दिशा सही लेकिन राह अब भी लंबी

सुधारों ने उलझी हुई कानूनी व्यवस्था को आधुनिक बनाया है और नए अवसर खोले हैं, लेकिन ओवरटाइम नियम, आकार संबंधी नियंत्रण अब भी श्रमिकों की वास्तविक पसंद को सीमित करते हैं

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भुवना आनंद   
Last Updated- December 10, 2025 | 9:46 PM IST

बात 1970 और 80 के दशक की है जब मुंबई में चेतावनी की इबारत कालिख से लिखी गई थी। जिन मिलों और कारखानों ने कभी शहर को ताकत दी थी, वे या तो बंद थे या उन्हें बीमार घोषित कर दिया गया था। भारत की औद्योगिक लाइसेंसिंग व्यवस्था ने ऐसे हालात पैदा कर दिए कि उन फर्मों के अस्तित्व के लिए संकट खड़ा हो गया। वहीं भारत के श्रम कानूनों ने उन्हें खत्म होने भी नहीं दिया। श्रम निरीक्षकों से कारखानों को बंद करने की अनुमति का इंतजार करते-करते, रोजगार के मौके ही ठप पड़ गए। जो नियम श्रमिकों की रक्षा करने का दावा करते थे, वास्तव में उन्होंने नौकरियों को खत्म किया और पूंजी फंसा दी।

औद्योगिक विवादों के इस इतिहास ने श्रम सुधार पर होने वाली हर बहस पर एक लंबी छाया डाली है। भारत ने एक सराहनीय कदम उठाते हुए 21 नवंबर को पिछले 29 कानूनों की जगह चार नए श्रम कानून लागू किए। ये नए कानून एक अधिक सुसंगत व्यवस्था का वादा करते हैं। लेकिन सवाल यह है कि ये कानून श्रमिकों के लिए आर्थिक स्वतंत्रता को कितना बढ़ाते हैं? इस दृष्टिकोण से देखने पर लगता है कि नई व्यवस्था ने अतीत की तुलना में अलग बदलाव किए हैं लेकिन कुछ चुनौतियां अब भी बरकरार हैं।

श्रमिकों के लिए नई स्वतंत्रता

सबसे अहम परिवर्तन यह है कि कानून ने महिलाओं को निर्णय लेने और काम करने की क्षमता वाले व्यक्तियों के रूप में मान्यता दी है। महिलाओं को पूरे व्यवसायों से बाहर रखा जाता था या सूर्यास्त के बाद कार्यस्थल पर काम करने की इजाजत नहीं थी। हालांकि व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य स्थिति संहिता, 2020 ने इस धारणा को पलट दिया। महिलाएं अब सभी प्रतिष्ठानों में सभी तरह के काम कर सकती हैं और यहां तक कि रात में भी काम कर सकती हैं। हालांकि इसके लिए उनकी सहमति और सुरक्षा शर्तें लागू होंगी।

ये कानून बढ़ती कंपनियों में श्रमिकों के लिए औपचारिक नौकरियां ढूंढ़ना भी आसान बनाते हैं। दशकों तक, भारतीय कानून 100 से अधिक श्रमिकों के बढ़ने को एक तरह का पाप मानता था। 100 या उससे अधिक कामगारों वाले कारखानों को छंटनी करने या इकाइयों को बंद करने के लिए सरकार की अनुमति लेनी पड़ती थी। कई कंपनियां दस्तावेजों में 100 से कम कर्मचारियों के स्तर पर ही बनी रहीं।

औद्योगिक संबंध संहिता ने अब मुख्य सीमा 300 श्रमिकों तक बढ़ा दी है। इस संख्या से कम होने पर, मूल सुरक्षा और मुआवजा नियम अब भी लागू होते हैं लेकिन विफल हो रही कंपनियों और कारोबार से ईमानदारी से निकलने वालों के बीच अब सरकार कहीं नहीं है। जब कंपनियों को पता होता है कि जरूरत पड़ने पर वे काम को बंद कर सकते हैं, तो वे काम पर रखने के लिए अधिक इच्छुक होते हैं। ऐसे में जब चुनने के लिए अधिक कंपनियां होती हैं तो श्रमिकों को लाभ होता है।

इसके अलावा भी अन्य लाभ हैं। निश्चित अवधि की नौकरी अब पूरी तरह से कानूनी है, जिससे कर्मचारियों के लिए काम करने के तरीकों के विकल्प बढ़ गए हैं। निश्चित अवधि के अनुबंध पर काम करने वाले कामगारों को उनके अनुबंध की अवधि के लिए स्थायी कर्मचारियों के समान ही वेतन और वैधानिक लाभ मिलने चाहिए।

स्वतंत्रता अब भी कम

काम के घंटे इसका सबसे अहम उदाहरण हैं। नए कानून में रोजाना आठ घंटे और साप्ताहिक आधार पर 48 घंटे की सीमा निर्धारित की गई है और इसमें सामान्य वेतन का दोगुना ओवरटाइम देने का प्रावधान है। दस्तावेजों पर, यह एक मजबूत सुरक्षा लगती है लेकिन व्यवहारिक स्तर पर अधिक ओवरटाइम प्रीमियम और रोजाना की सख्त सीमाएं, औपचारिक तंत्र में अतिरिक्त घंटे की गुंजाइश पाना मुश्किल बना देती है। जो कर्मचारी लंबी शिफ्ट और महीने में अधिक पैसे चाहते हैं, उन्हें यह कानूनी और पारदर्शी तरीके से नहीं मिल सकता है। आर्थिक स्वतंत्रता से कामगारों को एक स्पष्ट साप्ताहिक सीमा के भीतर सही प्रीमियम पर काम के घंटों पर बातचीत करने की ज़्यादा गुंजाइश मिलेगी।

नए कानूनों में यह बात भी नहीं समझी गई है कि बड़े पैमाने पर उत्पादन, रोजगार के मौके बनाने और कर्मचारियों के भविष्य के लिए अच्छा होता है। 300 या उससे अधिक कर्मचारियों वाली कंपनियों पर ज्यादा नियंत्रण रखकर, कानून अब भी बड़ी कंपनियों को अवसर देने का अहम कारक मानने के बजाय एक समस्या मानता है जिसे काबू में रखना जरूरी है। नतीजतन, कामगार छोटी फर्मों के बीच फंस जाते हैं, जहां आंतरिक गतिशीलता, प्रशिक्षण क्रम और अधिक औपचारिक मोलभाव की ताकत देने वाले बड़े नियोक्ता कम होते हैं। एक ऐसा ढांचा जो आकार और पैमाने को प्रोत्साहित करता, वह कर्मचारियों को कंपनियों के बीच अधिक विकल्प देता और उन्हें कामकाजी जीवन में ऊपर बढ़ने का बेहतर मौका भी देता है।

कानून यह भी दिखाता है कि एक अच्छी नौकरी कैसी होनी चाहिए, इसके बारे में एक पितृसत्तात्मक तस्वीर अभी भी बनी हुई है। वे अपेक्षाकृत छोटे प्रतिष्ठानों में भी कैंटीन, कर्मचारियों के कल्याण योजनाओं से जुड़े अधिकारी और समितियों जैसे लाभ अनिवार्य करते हैं। कई कर्मचारी इस तरह की सुविधाओं की तुलना में हाथ में अधिक नकद लेना और फिर अपने हिसाब से खाने-पीने, बच्चों की देखभाल या बचत को लेकर फैसले करना पसंद करेंगे। वास्तविक स्वतंत्रता श्रमिकों को अपने हिसाब से उस वेतन और लाभों के मिश्रण के लिए मोलभाव करने देने का अधिकार देने में ही निहित है जो उनके लिए उपयुक्त है।

अधूरे काम

संसद ने एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है। इसने कानूनों के एक जाल को अधिक सुसंगत ढांचे से बदल दिया है, कुछ सीमाएं बढ़ाईं हैं और महत्त्वपूर्ण स्वतंत्रता का विस्तार किया है, खासतौर पर महिलाओं के लिए। लेकिन अगर कसौटी, श्रमिकों के लिए आर्थिक स्वतंत्रता से जुड़ी है तो काम अभी पूरा नहीं हुआ है।
सुधार के अगले चरण में श्रमिकों के लिए अधिक आर्थिक और कमाई से जुड़ी स्वतंत्रता दी जानी चाहिए। हमारे ओवरटाइम नियमों में बदलाव करने की जरूरत है ताकि जो श्रमिक थोड़ा और काम करके अधिक कमाना चाहते हैं, वे गलत तरीके अपनाने के बजाय कानूनी और अनुमानित तरीके से ऐसा कर सकें।

हस्तक्षेप करने वाले नियंत्रण और कल्याणकारी आदेश अधिक सीमा वाली कंपनियों पर ही लागू होने चाहिए ताकि अधिक फर्म उस आकार तक बढ़ सकें जहां वे अपने कर्मचारियों को प्रशिक्षण, पदोन्नति पाने और वास्तविक मोलभाव की ताकत दे सकें। निरीक्षकों को अपना समय गंभीर तरह के उल्लंघनों पर लगाना चाहिए ताकि कानून उन जगहों पर श्रमिकों की रक्षा करे जहां जोखिम सबसे अधिक हैं और अन्य जगहों पर मुक्त समझौतों के लिए अधिक गुंजाइश रखे।

श्रम कानून केवल नियोक्ताओं और कारखानों से जुड़ा नहीं है। यह इससे भी जुड़ा है कि राज्य सामान्य लोगों और काम के बारे में उनके फैसलों पर कितना नियंत्रण रखता है। नए कानून श्रमिकों के लिए आर्थिक स्वतंत्रता जरूर बढ़ाते हैं लेकिन यह वादा पूरा होता है या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि संसद आगे क्या कदम उठाती है और राज्य अपने विवेक का इस्तेमाल कैसे करते हैं।


(लेखिका दिल्ली के एक आर्थिक थिंक टैंक प्रॉस्पेरिटी की सह-संस्थापक और सीईओ हैं)

First Published : December 10, 2025 | 9:36 PM IST