प्रतीकात्मक तस्वीर
इंडसइंड बैंक ने 7 मार्च को स्टॉक एक्सचेंजों को बताया कि भारतीय रिजर्व बैंक ने उनके प्रबंध निदेशक (एमडी) और मुख्य कार्य अधिकारी (सीईओ) सुमंत कठपालिया का कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ा दिया है, जो 23 मार्च, 2026 तक रहेगा। लेकिन इसके फौरन बात हैरान करने वाले वाकये होने लगे।
बैंक ने 10 मार्च को बाजार में कारोबार बंद होने के बाद एक्सचेंजों को बताया कि डेरिवेटिव्स की अकाउंटिंग में उसे कुछ गड़बड़ी मिली हैं। बैंक ने ‘विस्तृत आंतरिक समीक्षा’ की, जिसमें दिसंबर 2024 की उसकी नेट वर्थ में करीब 2.35 फीसदी चोट पड़ने का अनुमान लगाया गया। इसका मतलब है कि बैंक को 1,600 करोड़ रुपये की प्रोविजनिंग करनी पड़ी। इंडसइंड बैंक ने स्वतंत्र समीक्षा करने और आंतरिक जांच को परखने के लिए एक प्रतिष्ठित बाहरी एजेंसी नियुक्त की है। उसकी रिपोर्ट आने पर पता चलेगा कि बैलेंस शीट पर कितनी चोट पड़ी है।
इस पर चर्चा के लिए दोपहर बाद 4.12 पर बोर्ड बैठक शुरू हुई और शाम 6.25 तक चली, जिसके बाद स्टॉक एक्सचेंजों को सूचित किया गया। इंडसइंड बैंक का शेयर उस दिन 3.86 फीसदी गिरा था मगर अगले दिन औंधे मुंह गिरकर 27.6 फीसदी नीचे चला गया। इतनी बड़ी गिरावट बैंक के शेयर में कभी नहीं आई थी और उसका बाजार पूंजीकरण उस दिन 18,000 करोड़ रुपये घट गया।
रिजर्व बैंक ने 15 मार्च को बयान दिया कि बैंक के पास पूंजी की कमी नहीं है और इसकी वित्तीय स्थिति संतोषजनक है। उसने बैंक के बोर्ड और प्रबंधन को सुधार की कार्रवाई चालू तिमाही में ही पूरी करने का निर्देश दिया है और जमाकर्ताओं को इस समय अटकलों पर ध्यान नहीं देना है। बैंक की वित्तीय स्थिति स्थिर है और रिजर्व बैंक उस पर करीबी नजर रख रहा है।
बैंक ने पिछले साल सितंबर में बोर्ड की सिफारिश पर कठपालिया का कार्यकाल तीन साल के लिए बढ़ाने की मांग की थी मगर केवल एक साल की इजाजत मिली। इससे पहले भी रिजर्व बैंक ने तीन के बजाय दो साल के लिए ही कार्यकाल बढ़ाया था।
किसी निजी बैंक के प्रमुख का कार्यकाल तीन साल बढ़ाने की बोर्ड की सिफारिश नकारना रिजर्व बैंक के लिए नई बात नहीं है। लेकिन ऐसा शायद पहली बार हुआ है कि किसी एक ही प्रमुख को पहले तीन के बजाय दो और फिर घटाकर केवल एक साल के लिए विस्तार दिया गया हो। इसका उलटा जरूर हुआ है। फेडरल बैंक लिमिटेड के एमडी और सीईओ श्याम श्रीनिवासन को तीन के बजाय दो साल का कार्यकाल दिया गया मगर उसके बाद रिजर्व बैंक ने उन्हें तीन साल का विस्तार दे दिया।
दोनों मामले एकदम अलग हैं फिर भी देखते हैं कि रिजर्व बैंक ने ऐसा क्यों किया। हम मान सकते हैं कि जब नियामक ने फेडरल बैंक में केवल दो साल का कार्यकाल मंजूर किया था तब वह कुछ बातों से नाखुश था। मगर बाद में स्थिति सुधर गई और बौर्ड की सिफारिश पर श्रीनिवासन को तीन साल का सेवा विस्तार मिल गया।
इंडसइंड बैंक में भी पहले कार्यकाल विस्तार तीन के बजाय दो साल करना एक तरह से सीईओ के लिए चेतावनी थी। मगर सुधार नहीं हुआ तो अगला कार्यकाल और भी घटाकर एक साल का कर दिया गया। सवाल यह है कि रिजर्व बैंक को अगर बैंक में हो रही गड़बड़ी का पता था तो उसने कठपालिया को अलविदा क्यों नहीं कहा? क्या उससे बाजार में उथलपुथल मच जाती? तब बैंकिंग नियामक इंडसइंड बैंक के बोर्ड को कठपालिया के लिए सेवा विस्तार नहीं मांगने को राजी कर सकता था। लेकिन केवल एक साल का विस्तार देने और उसके बाद के घटनाक्रम से तो बाजार में और भी ज्यादा उठापटक हो गई।
अगर बोर्ड ने कठपालिया का कार्यकाल बढ़ाने की मांग नहीं की होती और उत्तराधिकारी तलाशा होता तो हालात अलग होते। 10 मार्च की बोर्ड बैठक के फौरन बाद विश्लेषकों के साथ कॉन्फ्रेंस कॉल में कठपालिया ने कहा कि बैंकिंग नियामक को शायद बैंक चलाने की उनकी क्षमता पर संदेह है, इसलिए उन्हें तीन साल का कार्यकाल नहीं दिया गया। बैंक के मुख्य वित्तीय अधिकारी गोविंद जैन ‘पेशेवर मौके तलाशने के लिए’ 17 जनवरी को ही इस्तीफा दे गए थे।
पिछले कुछ समय में बैंकों के सीईओ की नियुक्ति और सेवा विस्तार को देखते हैं। रिजर्व बैंक ने 2021 में आरबीएल बैंक लिमिटेड के मुखिया विश्ववीर आहूजा का कार्यकाल एक साल बढ़ाया, जबकि बैंक के बोर्ड ने तीन साल की सिफारिश की थी। उससे पहले अगस्त 2018 में येस बैंक लिमिटेड को अगली सूचना तक राणा कपूर के सेवा विस्तार की इजाजत मिली, जबकि बोर्ड और शेयरधारक तीन साल का विस्तार मंजूर कर चुके थे।
ऐक्सिस बैंक लिमिटेड की पूर्व एमडी और सीईओ शिखा शर्मा का कार्यकाल केंद्रीय बैंक ने नहीं बढ़ाया। आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड की चंदा कोछड़ की कहानी अलग ही है। वह 19 जून 2018 को छुट्टी पर गईं और संदीप बख्शी बैंक के मुख्य परिचालन अधिकारी बन गए। करीब साढ़े तीन महीने बाद अक्टूबर में कोछड़ ने इस्तीफा दे दिया और बख्शी ने पूरी तरह कमान संभाल ली।
भारत में बैंकिंग नियमन अधिनियम के मुताबिक रिजर्व बैंक की बैंक सीईओ की नियुक्ति और सेवा विस्तार मंजूर करता है। मगर विकसित देशों में नियामक आम तौर पर सीईओ की नियुक्ति ही मंजूर करता है, कार्यकाल विस्तार बैंक का बोर्ड देखता है। अमेरिका में जेपी मॉर्गन चेस ऐंड कंपनी पर लापरवाही के कारण जुर्माना लगा मगर बैंकिंग नियामक ने उसके सीईओ जैमी डिमॉन को नहीं हटाया। वेल्स फार्गो के सीईओ जॉन स्टंफ को बिक्री कोटा पूरा करने के फेर में 20 लाख से अधिक अवैध खाते खोलने पर आलोचना झेलनी पड़ी थी।
रिजर्व बैंक को अब बैंक सीईओ की नियुक्ति और सेवा विस्तार की प्रक्रिया पर पुनर्विचार करना चाहिए। बैंक चलाने में बोर्ड की अहम भूमिका होती है मगर कमान एमडी और सीईओ के ही हाथ में होती है। ऐसे मौके भी आए हैं, जब बैंक बोर्ड से शीर्ष पद के लिए अनुमोदित नाम को रिजर्व बैंक ने मंजूरी ही नहीं दी। ऐसे में बैंक बोर्ड की छवि पर भी सवाल खड़े होते हैं। मगर इस पर कभी और बात करेंगे।