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अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत के तेजी से बढ़ रहे कदम

ऊर्जा से भरी स्टार्टअप इकाइयां और विशिष्ट नीतियां दो अंतरिक्ष यानों को आपस में जोड़ने से लेकर अत्याधुनिक नवाचार तक अंतरिक्ष में भारत की महत्त्वाकांक्षाओं को पंख दे रही हैं।

Published by
Ajay Kumar   
Last Updated- February 26, 2025 | 10:10 PM IST

भारत ने पिछले कुछ समय में अंतरिक्ष क्षेत्र में कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने श्रीहरिकोटा से अपना 100वां रॉकेट छोड़कर ऐतिहासिक कारनामा कर दिया। इससे पहले इसरो ने स्पेडेक्स मिशन के तहत स्पेस डॉकिंग कर दिखाई थी, जो उससे पहले केवल अमेरिका, रूस और चीन ही कर पाए थे। अंतरिक्ष में तेजी से चल रहे दो अंतरिक्ष यानों को एक ही कक्षा में लाकर आपस में जोड़ने की प्रक्रिया स्पेस डॉकिंग कहलाती है। इन चमत्कारिक सफलताओं का जश्न तो मनाया जा रहा है मगर अभी हमें लंबा सफर तय करना है। रूस ने 1967 में स्पेस डॉकिंग कर धमाका कर दिया था और अमेरिका ने 1975 तथा चीन न 2011 में यह कारनामा कर दिया था। तब से ये देश औऱ भी उन्नत क्षमताएं दिखा चुके हैं जैसे स्पेस स्टेशन, रीयूजेबल स्पेसक्राफ्ट, अंतरिक्ष पर्यटन और पृथ्वी की निचली कक्षा यानी लो अर्थ ऑर्बिट (लियो) में उपग्रह स्थापित करना।

अंतरिक्ष मानव की खोज, नवाचार और महत्त्वाकांक्षा का नया ठिकाना बन गया है, जिससे शीर्ष देशों के बीच अंतरिक्ष की दौड़ शुरू हो गई है। वहां होड़ भी शुरू हो गई है और तमाम देश पृथ्वी के अनदेखे, अनजाने हिस्सों में जाकर अपना दबदबा कायम करना चाहते हैं। इतना ही नहीं अब वे पृथ्वी की कक्षा में बची जगह पर अपने उपग्रह तैनात करने और दूसरे ग्रहों पर नियंत्रण करने में भी जुट गए हैं। ईलॉन मस्क ने मंगल पर ही ‘आखिरी सांस लेने’ की बात कह कर भविष्य को और दिलचस्प बना दिया है यानी अगले कुछ दशकों में अंतरिक्ष का क्षेत्र बहुत आगे जा सकता है।

इसरो तेजी से कदम आगे बढ़ा रहा है और भारत की अंतरिक्ष यात्रा की प्रगति दिलचस्प होती जा रही है। अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी कंपनियों को उतरने की 2020 की सरकारी इजाजत क्रांतिकारी साबित हुई है। इस अहम फैसले के बाद लगभग 200 स्टार्टअप इकाइयां इस क्षेत्र में उतर पड़ी हैं। उपग्रह प्रक्षेपण यान ‘पोइम’ इस प्रगति का जीता-जागता सबूत है, जिसके जरिये अंतरिक्ष में प्रयोग के लिए उपकरण एवं अन्य सामग्री (पेलोड) भेजी जाती है।

पोइम-1 जून 2022 में छह पेलोड लेकर गया, जिनमें दो स्टार्टअप इकाइयों के भी थे। पोइम-2 से अप्रैल 2023 में सात पेलोड भेजे गए, जिनमें 3 स्टार्टअप इकाइयों के थे। इसके बाद जनवरी 2024 में कुल 10 पेलोड लेकर पोइम-3 अंतरिक्ष पहुंचा। इनमें से 5 पेलोड स्टार्टअप इकाइयों के थे। पिछले साल दिसंबर में पोइम-4 भी 25 पेलोड लेकर अंतरिक्ष रवाना हुआ था। इनमें से 6 पेलोड स्टार्टअप कंपनियों से ताल्लुक रखते थे।
पेलोड की संख्या ही नहीं बढ़ रही, पेचीदगी भी बढ़ती जा रही है। उदाहरण के लिए ध्रुव स्पेस ने पोइम-1 में 1यू क्यूबसैट भेजा था। पोइम -2 में उसने 3यू और 6यू क्यूबसैट रखे और पोइम-3 में पी 30 नैनो सैटेलाइट तकनीक का इस्तेमाल किया। बेलाट्रिक्स ने पोइम-3 में मोनोप्रोपेलेंट थ्रस्टर (अंतरिक्ष यान में इस्तेमाल होने वाला प्रणोदक) का प्रयोग किया और पोइम-4 में उच्च क्षमता वाला थ्रस्टर लगाया। स्टार्टअप अंतरिक्ष में अनुसंधान की ऐसी होड़ कर रही हैं कि वे इसरो के पोइम को ही नहीं विदेशी प्रक्षेपण यानों का भी इस्तेमाल कर रही हैं।

भारत में अंतरिक्ष स्टार्टअप तंत्र को आगे बढ़ाने में सरकारी नीतियों की अहम भूमिका रही है। इसको सबसे तगड़ा बढ़ावा 2022 में रक्षा प्रदर्शनी डेफएक्सपो के दौरान मिला, जब अंतरिक्ष से जुड़ी 75 चुनौतियां शुरू की गईं। अंतरिक्ष में निजी क्षेत्र की भागीदारी पर नजर रखने के लिए नए नियामक इन-स्पेस का गठन हुआ और इसरो ने अपनी प्रक्षेपण सुविधाएं, ग्राउंड स्टेशन तथा परीक्षण सुविधाएं निजी क्षेत्र के लिए खोल दीं, जिससे रफ्तार बहुत बढ़ गई। सरकार ने अपने वादे पर आगे बढ़ते हुए 1,000 करोड़ रुपये का वेंचर कैपिटल फंड भी शुरू किया है और 52 में से 31 एसबीएस-3 प्रोग्राम सैटेलाइट स्टार्टअप इकाइयों के लिए आवंटित किए हैं। इससे अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रगति को और धार मिल रही है।
इसरो ने अंतरिक्ष में किफायती नवाचार शुरू किया था और स्टार्टअप इकाइयां पूरी कुशलता के साथ इसे नई ऊंचाई पर ले जा रही हैं। ये इकाइयां छोटे और खास मकसद के लिए इस्तेमाल होने वाले लियो सैटेलाइट पर ध्यान लगा रही हैं। इस तरह ये मॉड्यूलर डिजाइन, व्यावसायिक आपूर्ति श्रृंखला और पहले से मौजूद पुर्जों का इस्तेमाल कर अधिक तेजी से तथा कम खर्च में उपग्रह बना रही हैं। इसके अलावा राइड-शेयर लॉन्च (एक ही रॉकेट से कई उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजना) विकल्प का इस्तेमाल कर ये खर्च भी बहुत नीचे ले आई हैं।

भारत की अंतरक्षि स्टार्टअप इकाइयां विश्व-स्तरीय नवाचार कर रही हैं। गैलेक्सआई ने हाल ही में कक्षा के भीतर ऑप्टिकल इमेजरी को सिंथेटिक अपरचर रेडार से जोड़ दिया था। इससे एनालॉग डेटा के भारी पुलिंदे को 10 मिनट से भी कम समय में प्रोसेस और कंप्रेस कर डिजिटल रूप दिया जा सकता है। यह कारनामा करने वाली वह दुनिया की पहली कंपनी है। पिक्सल का फायरफ्लाई कॉन्सटेलेशन दुनिया का सबसे आधुनिक हाइपरस्पेक्ट्रल सैटेलाइट नेटवर्क बनने जा रहा है। आईआईटी बंबई की स्टार्टअप इकाई इनस्पेसिटी उपग्रह का जीवन बढ़ाने वाली सेवाएं तैयार कर रही है। इनमें कक्षा के भीतर ही उन्हें दूसरे उपग्रह से जोड़कर मरम्मत की जाएगी और ईंधन भरा जाएगा। इऑन लैब्स कई लेंस की जगह एक लेंस का इस्तेमाल कर स्पेस इमेजिंग (अंतरिक्ष के भीतर तस्वीर लेना) तकनीक में क्रांतिकारी बदलाव ला रही है। कई लेंस लगे होने पर समस्या यह होती है कि रॉकेट के प्रक्षेपण के बाद झटके के कारण वे एक सीध में नहीं रह जाते। एक लेंस होने पर यह समस्या नहीं होगी। स्काईरूट, अग्निकुल, ध्रुव, दिगंतरा, बेलाट्रिक्स, एक्सडीलिंक्स, अनंत और टेकमी2स्पेस भी बहुत आगे निकल रही हैं।

2000 के दशक में अंतरिक्ष क्षेत्र को सरकारों से बहुत रकम मिलती थी मगर अब दुनिया भर में सरकारी मदद का आंकड़ा घटकर 25 प्रतिशत से भी कम हो गया है। अब इसमें सरकार के बजाय निजी क्षेत्र की अहम भूमिका हो गई है। भारत में भी अंतरिक्ष स्टार्टअप इसी बदलते चलन की गवाही दे रहा है। शुरुआती स्टार्टअप कंपनियां अमेरिका से निवेश की मोहताज थीं मगर एमजीएफ-कवच शुरू होने के बाद देसी वेंचर कैपिटल इकाइयों की दिलचस्पी इधर हो गई है यानी इस क्षेत्र का तेज विकास अब सरकारी मदद पर ही निर्भर नहीं रह गया है। भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में काम करने वाली इकाइयों ने पिछले तीन वर्षों में वेंचर कैपिटल के तौर पर 2,500 करोड़ रुपये से अधिक जुटाए हैं और इसमें बढ़ोतरी होने की संभावना है।

भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र आर्थिक वृद्धि को रफ्तार देने वाला बड़ा कारक बनने जा रहा है। अनुमान है कि इस क्षेत्र का आकार 2030 तक बढ़कर 100 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है यानी दशक भर के भीतर इसमें 15 गुना बढ़ोतरी हो सकती है। इसे भांपते हुए कई राज्य सरकारों ने स्टार्टअप एवं विनिर्माण इकाइयों को आकर्षित करने वाली अंतरिक्ष नीतियां तैयार की हैं। राज्य सरकारें कृषि, आपदा राहत एवं शहरी नियोजन में भू-अंतरिक्ष तकनीक के इस्तेमाल को भी बढ़ावा दे रही हैं।

कर्नाटक देश में इस बाजार का 50 प्रतिशत हिस्सा पाने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। इसे हासिल करने के लिए वह कई तरह के प्रोत्साहन भी दे रहा है। देश के दूसरे राज्य भी अलग-अलग प्रकार के प्रोत्साहन दे रहे हैं। मगर अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रगति के साथ ही हुनरमंद लोगों की जरूरत भी महसूस की जा रही है। फिलहाल देश में अंतरिक्ष तकनीक में बीटेक केवल एक ही जगह से किया जा सकता है – भारतीय अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी अनुसंधान (आईआईएसटी) तिरुवनंतपुरम। देश में कई और आईआईएसटी स्थापित होने चाहिए और अन्य अग्रणी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) भी अंतरिक्ष से जुड़े पाठ्यक्रम एवं डिग्री तैयार कर सकते हैं।

भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र निस्संदेह ऐतिहासिक बदलाव के द्वार पर खड़ा दिख रहा है। ऊर्जावान स्टार्टअप तंत्र और भविष्य को ध्यान में रखकर तैयार की गई नीतियां इसमंठ अहम भूमिका निभा रही हैं। लगातार नवाचार, निवेश और प्रतिभा विकास के साथ देश अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में अग्रणी बनने की दिशा में तेजी से कदम उठा रहा है ताकि ‘अमृतकाल’ की परिकल्पना पूरी हो सके।

(लेखक पूर्व रक्षा सचिव और आईआईटी कानपुर में अतिथि प्राध्यापक हैं)

First Published : February 26, 2025 | 10:07 PM IST