भारत स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में तेजी से कदम बढ़ा रहा है। देश में कुल स्थापित बिजली क्षमता का 50 फीसदी से अधिक हिस्सा अब गैर-जीवाश्म स्रोतों पर आधारित है। देश ने यह लक्ष्य समय से पांच वर्ष पहले ही हासिल कर लिया है। मजबूत नीतिगत समर्थन के दम पर घरेलू मॉड्यूल विनिर्माण में विस्तार के साथ स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में हुई प्रगति में सौर ऊर्जा का अहम योगदान रहा है। मगर ऊर्जा पर संसद की स्थायी समिति की एक नई रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि केवल सौर क्षमता बढ़ाने से बात बनने वाली नहीं है।
दक्षता और तैयारी अपर्याप्त रहने से दीर्घ अवधि में देश के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को हासिल करना मुश्किल हो सकता है। इस रिपोर्ट में एक अन्य महत्त्वपूर्ण बात का भी जिक्र है। इसमें कहा गया है कि प्रदर्शन की निगरानी के स्तर पर सबसे अधिक खामियां दिख रही हैं। भारत में 129 गीगावॉट की स्थापित सौर क्षमता के बावजूद फोटोवोल्टिक (पीवी) संयंत्र के प्रदर्शन के आकलन के लिए एक राष्ट्रीय ढांचे का अभाव है। मॉड्यूल की गुणवत्ता एवं क्षमता में कमी, संचालन और रखरखाव की गुणवत्ता का आकलन करने या विकिरण-समायोजित उत्पादन की गणना करने के लिए कोई मानकीकृत तरीका फिलहाल मौजूद नहीं है।
ऐसे मानक के अभाव में शुल्कों से जुड़ी बोलियां दीर्घकालिक प्रदर्शन से जुड़े जोखिम के साथ तालमेल नहीं बैठा पाती हैं। खराब प्रदर्शन करने वाली परियोजनाएं नजरों के सामने नहीं आ पाती हैं और विनिर्माताओं (डेवलपर) पर गुणवत्ता बरकरार रखने के लिए अधिक दबाव नहीं पड़ता है। प्रतिस्पर्द्धी बोली और कमजोर मार्जिन पर निर्भर इस क्षेत्र के लिए ऐसी जानकारियों का अभाव केवल अक्षमता और वित्तीय दबाव का कारण बन सकता है।
ग्रिड स्तर पर पेश आने वाली बाधाएं समस्या और जटिल बना देती हैं। सौर ऊर्जा उत्पादन खास भौगोलिक क्षेत्रों में केंद्रित है जबकि पारेषण क्षमता और ऊर्जा भंडारण अपर्याप्त हैं जो एक गंभीर बात है। वर्ष 2030 तक 60 गीगावॉट की अनुमानित आवश्यकता की तुलना में फिलहाल केवल लगभग 5 गीगावॉट भंडारण क्षमता उपलब्ध है। हरित ऊर्जा गलियारा बेहतर बनाने और अंतर-राज्यीय पारेषण तंत्र मजबूत बनाने से संबंधित समिति की सिफारिशें तत्काल लागू की जाना चाहिए।
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण ने भी यह सलाह दी है कि भविष्य में नवीकरणीय ऊर्जा के लिए लगने वाली बोलियों में कम से कम 10 फीसदी में भंडारण का घटक शामिल हो। प्राधिकरण का सुझाव स्वागत योग्य है। ये उपाय नहीं किए गए तो सौर ऊर्जा क्षमता में बढ़ोतरी ग्रिड की वहन क्षमता से अधिक हो जाएगी जिससे कटौती और वित्तीय नुकसान की नौबत उत्पन्न हो जाएगी। छतों पर सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने की योजना (रूफटॉप सोलर एनर्जी सेगमेंट) में भी सुधार की आवश्यकता है।
पीएम सूर्य घर योजना के तहत भी इसे अपनाने की रफ्तार बेहद कम है। इस संदर्भ में केरल का हाल का अनुभव हमें आगाह करता है। दिन के समय अधिशेष और रात के समय कम बिजली की उपलब्धता ने वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) के लिए हालात मुश्किल बना दिए हैं। इससे आजिज होकर केरल राज्य विद्युत नियामक आयोग को नेट-मीटरिंग नियमों पर पुनर्विचार करने और यहां तक कि बैटरी की जरूरतों पर सोचने के लिए विवश कर दिया। ऐसी समस्याओं का समाधान निकालने के तरीके निश्चित तौर पर खोजने होंगे।
भूमि अधिग्रहण भी एक बाधा साबित हो रही है। पूरी क्षमता का लाभ उठाने के लिए प्रति मेगावाॅट 4 से 7 एकड़ यानी लगभग 14 से 20 लाख हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता होती है। कृषि उत्पादक या पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों के साथ हितों के टकराव, जमीन हासिल करने और संपर्क व्यवस्था से जुड़ी मंजूरी प्राप्त करने में देरी परियोजना विकास की रफ्तार धीमी कर देती है। इन झमेलों से निपटने के लिए एकल मंजूरी व्यवस्था चीजें दुरुस्त कर सकती है और टकराव कम करने में मददगार साबित हो सकती है। शुरुआती दौर में बाधाओं की पहचान करने और नुकसान रोकने के लिए राज्यों और परियोजना विकासकर्ताओं के साथ बेहतर समन्वय आवश्यक है।
इसके अलावा भारत की विनिर्माण रणनीति केवल मॉड्यूल तक ही सिमट कर नहीं रहनी चाहिए। समिति ने सरकार को पॉलीसिलिकॉन, इंगट एवं वेफर और सौर ग्लास के लिए समर्थन बढ़ाने का सुझाव दिया है। ये सभी घटक आयात किए जाते हैं और दीर्घकालिक आपूर्ति तंत्र में निरंतरता एवं मजबूती बहाल करने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। स्पष्ट है कि सौर ऊर्जा की तरफ बढ़ रहे कदम का अगला चरण इस बात से नहीं परिभाषित होना चाहिए कि कितनी क्षमता तैयार हो रही है बल्कि अहम बात यह है कि यह कितनी कुशलता से काम कर रहा है।