Editorial: स्वायत्तता पर असर

विधेयक के मुताबिक भारत के राष्ट्रपति ही इस कानून के दायरे में आने वाले संस्थानों के विजिटर होंगे। इसके अलावा खोज-सह-चयन समिति में विजिटर द्वारा नामित एक सदस्य भी होगा।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- October 27, 2023 | 8:31 PM IST

गत सप्ताह लोकसभा ने भारतीय प्रबंध संस्थान (संशोधन) विधेयक 2023 को पारित कर दिया। इस विधेयक में कई महत्त्वपूर्ण बदलावों का प्रस्ताव रखा गया है जो भारतीय प्रबंध संस्थानों (आईआईएम) की स्वायत्तता को सीमित करेंगे और इस दिशा में सरकार की नीति को पलटेंगे।

मौजूदा कानून के मुताबिक संचालन मंडल आईआईएम के निदेशक का चयन करता है। यह चयन एक खोज-सह-चयन समिति की अनुशंसा के आधार पर किया जाता है। परंतु कानून में बदलाव के बाद संचालन मंडल को ‘विजिटर’ की मंजूरी लेनी होगी।

विधेयक के मुताबिक भारत के राष्ट्रपति ही इस कानून के दायरे में आने वाले संस्थानों के विजिटर होंगे। इसके अलावा खोज-सह-चयन समिति में विजिटर द्वारा नामित एक सदस्य भी होगा। प्रभावी तौर पर देखें तो भारत के राष्ट्रपति या दूसरे शब्दों में कहें तो केंद्र सरकार अब आईआईएम के निदेशकों की नियुक्ति पर नियंत्रण रख सकेगी। चूंकि कानून निदेशक को संस्थान का मुख्य कार्यपालक अधिकारी मानता है और उससे उम्मीद है कि वह नेतृत्व प्रदान करेगा तो ऐसे में नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव सरकार को इन संस्थानों के संचालन में अहम हैसियत प्रदान करेगा।

नई व्यवस्था के मुताबिक विजिटर की शक्तियां केवल निदेशक की नियुक्ति तक सीमित नहीं होंगी। मौजूदा कानून के मुताबिक बोर्ड का चेयरपर्सन बोर्ड द्वारा चुना जाता है। प्रस्तावित बदलाव के मुताबिक अब उसे राष्ट्रपति द्वारा नामित किया जाएगा।

विजिटर आईआईएम में जांच शुरू करा सकने का अधिकार भी रखेगा। उसके नतीजों के आधार पर वह निर्देश जारी कर सकता है जो आईआईएम प्रबंधन के लिए बाध्यकारी होंगे। सरकार आईआईएम के बोर्ड को निलंबित करने या भंग करने की शर्तें भी तय कर सकेगी। इन बातों को साथ रखकर देखें तो कानून में बदलाव सरकार को असीमित अधिकार देगा। वह उसे आईआईएम के संचालन को प्रभावित करने में सक्षम बनाएगा।

आश्चर्य नहीं कि सरकार के रुख में बदलाव ने चिंता पैदा की है। हालांकि सरकार ने आश्वस्त किया है कि उसका इरादा हस्तक्षेप करने का नहीं है लेकिन चीजें कभी भी बदल सकती हैं। निश्चित तौर पर ऐसे महत्त्वपूर्ण संस्थानों में स्वायत्तता की आवश्यकता है। परिचालन के मामले में सरकार से स्वायत्तता संस्थानों को बदलते माहौल को अपनाने के योग्य बनाती है ताकि वे अपने व्यापक लक्ष्यों को हासिल कर सकें। हकीकत में 2017 के कानून के पीछे भी यही सोच थी जिसने आईआईएम को अधिक स्वायत्तता प्रदान की।

बहरहाल, इस बात पर जोर देना भी अहम है कि स्वायत्तता किसी भी तरह जवाबदेही को कम नहीं करती। उदाहरण के लिए यह कानून बोर्ड को स्वतंत्र एजेंसी या विशेषज्ञों का समूह नियुक्त करने का अधिकार देता है ताकि तीन वर्ष में कम से कम एक बार संस्थानों के प्रदर्शन का आकलन और उनकी समीक्षा की जा सके। अधिकांश आईआईएम इसका अनुसरण नहीं करते।

संस्थानों की नियमित और स्वतंत्र समीक्षा समय के साथ उनकी गुणवत्ता सुधारने में मदद करती। विभिन्न आईआईएम की तुलना होती तो उनके बीच प्रतिस्पर्धा भी बढ़ती। निदेशकों की नियुक्ति और उनके कामकाज को लेकर भी दिक्कतें रही हैं और इस विषय से ठीक तरह से नहीं निपटा गया। ऐसे में आलोचक कह सकते हैं कि कानून के तहत दी गई स्वायत्तता का आईआईएम ने सही ढंग से इस्तेमाल नहीं किया।

ऐसे कुछ मसलों के बावजूद आईआईएम जैसे संस्थानों में स्वायत्तता जरूरी है। अब जबकि सरकार ने इन संस्थानों के साथ अपनी संबद्धता का स्तर और उसकी प्रकृति बदलने का निर्णय लिया है तो उसे यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि नई व्यवस्था किसी भी तरह से प्रबंध शिक्षा और शोध के क्षेत्र में उनकी उत्कृष्टता की तलाश को प्रभावित नहीं करे।

First Published : August 7, 2023 | 10:59 PM IST