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अमेरिका के शीर्ष व्यापार अधिकारी ने भारत और यूरोपीय संघ (EU) की नीतियों पर कड़ी टिप्पणी की है। इससे साफ संकेत मिलते हैं कि इन दोनों के साथ चल रही व्यापार वार्ताएं 2026 तक भी पूरी नहीं हो सकती हैं।
अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि जेमीसन ग्रीर (Jamieson Greer) ने कहा कि उन्होंने EU के साथ अमेरिकी टेक कंपनियों पर लगाए जा रहे नियमों को लेकर चिंता जताई है। उनका कहना है कि EU की नीतियां अमेरिकी कंपनियों के खिलाफ भेदभावपूर्ण हैं।
ग्रीर ने यह भी कहा कि भारत के साथ इस साल शुरू हुई व्यापार बातचीत अब तक किसी समझौते तक नहीं पहुंच सकी है। उन्होंने बताया कि इसी दौरान अमेरिका ने मलेशिया, स्विट्जरलैंड समेत कई अन्य देशों के साथ व्यापार समझौते कर लिए हैं।
ब्लूमबर्ग टीवी को दिए इंटरव्यू में ग्रीर ने कहा कि उन्हें पहले से अंदाजा था कि EU और भारत के साथ बातचीत ज्यादा मुश्किल होगी। EU के मामले में उन्होंने गैर-टैरिफ बाधाओं का जिक्र किया, जो अमेरिकी कृषि और औद्योगिक उत्पादों के लिए मुश्किलें पैदा करती हैं।
अमेरिकी व्यापार कार्यालय ने हाल ही में सोशल मीडिया पर संकेत दिया कि अगर EU अमेरिकी टेक कंपनियों पर टैक्स लगाने की कोशिश करता है, तो जवाबी कार्रवाई हो सकती है। इसके तहत कुछ यूरोपीय कंपनियों पर नए शुल्क या प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
विवाद का मुख्य कारण EU की डिजिटल नीतियां हैं, जिनके तहत गूगल, मेटा और Amazon जैसी बड़ी अमेरिकी टेक कंपनियों को नियंत्रित किया जा रहा है। अमेरिका का आरोप है कि ये नियम नवाचार को धीमा करते हैं और खास तौर पर अमेरिकी कंपनियों को निशाना बनाते हैं।
EU ने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा है कि वह अपनी तकनीकी संप्रभुता की रक्षा कर रहा है और नियम सभी पर समान रूप से लागू होते हैं।
भारत के संदर्भ में, ग्रीर की टिप्पणी ऐसे समय आई है जब हाल ही में राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच बातचीत हुई थी। अगस्त में अमेरिका द्वारा भारतीय सामान पर 50% तक टैरिफ लगाए जाने के बाद दोनों देशों के बीच यह चौथी बातचीत थी।
हालांकि दोनों देश रिश्ते सुधारने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन महीनों की बातचीत के बावजूद व्यापार समझौते पर कोई ठोस प्रगति नहीं हो पाई है। इस हफ्ते नई दिल्ली में हुई वार्ता भी बिना नतीजे के खत्म हुई।