मारुति सुजूकी (Maruti Suzuki) ने मई 2005 में स्विफ्ट (Swift) पेश की थी और अब तक वह 30 लाख स्विफ्ट कार बेच चुकी है। इस हैचबैक कार के लिए यह बहुत बड़ी कामयाबी है। इसका नया नवेला मॉडल पिछले साल मई में पेश किया गया और स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल (SUV) के दीवाने हमारे देश में वह बहुत जल्द बिक्री में अव्वल बन गई। यह बात इसलिए मायने रखती है कि मई में यह कार बाजार में थी ही नहीं।
देश में दो और कार मॉडल भी 30 लाख की बिक्री का आंकड़ा पार कर चुके हैं। मारुति की छोटी कार ऑल्टो (Maruti Alto) के बंद होने से पहले उसकी 45 लाख यूनिट बिक चुकी थीं। जो कारें अब तक बिक रही हैं, उनमें वैगन आर (Wagon R) की 32 लाख से अधिक यूनिट बिक चुकी हैं और नए संस्करण के साथ इसकी बिक्री जारी है। इनके अलावा कोई नाम दिमाग में नहीं आता है।
जहां तक वैगन आर की बात है तो मैं एक सेवानिवृत्त अफसरशाह को जानता हूं जिनकी पहली कार मारुति 800 थी। उन्होंने उसके बाद वैगन आर खरीदी और फिर वही कार चलाते रहे। अब वह अपनी तीसरी वैगन आर चला रहे हैं। मैं जिनकी बात कर रहा हूं वह एक ईमानदार, नैतिक और तेज तर्रार व्यक्ति हैं। वह सुरक्षित रहते हैं और अपनी आस्तीन वाली सफेद कमीज के बटन लगाना नहीं भूलते हैं। उनकी वैगन आर की रफ्तार का कांटा शायद ही कभी 70 किलोमीटर प्रति घंटे से आगे जाता हो। ऐसा कभी हुआ भी है तो एक्सप्रेसवे पर हुआ होगा।
स्विफ्ट (Swift) एक अलग किस्म की कार है। उसका मिजाज और उसके बारे में धारणा दोनों अलग हैं। इस कार ने ‘प्रीमियम हैचबैक’ का एक अलग बाजार खड़ा किया जहां कीमतें सस्ती आरंभिक कारों से अधिक होती हैं। यह वह श्रेणी है जहां फीचर कार के चलने से कहीं अधिक मायने रखते हैं और ग्राहक भी ईंधन बचाने या सफेद रंग की गाड़ी रखने की ज्यादा फिक्र नहीं करते।
पहली बार लॉन्च होते समय स्विफ्ट में सफेद रंग नहीं दिया गया था, हालांकि भारत की कारों में यह रंग खूब देखने को मिलता था। मारुति के डिजाइनर मानते थे कि रोमांचक हैचबैक श्रेणी में सफेद रंग फबेगा नहीं। इस कार का प्रमुख रंग लाल था। स्विफ्ट (Swift) की बिक्री उसके स्टाइल और उसके दमदार प्रदर्शन के लिए होती थी।
उदाहरण के लिए कार के डैशबोर्ड पर मौजूद टैकोमीटर, जो इंजन का रोटेशन बताता है, में शून्य अक्सर बाईं ओर होता है, जहां घड़ी में आठ का अंक लिखा होता है। मगर स्विफ्ट के टैकोमीटर में यह शून्य एकदम नीचे होता है, जहां घड़ी में छह बजा होता है। यह बढ़िया और महंगी कारों का अंदाज है ताकि चालक उस पर आसानी से नजर रख सके।
भारत में कारों के खरीदारों के लिए कम ईंधन खाने वाली कारें यानी माइलेज बहुत मायने रखता है। मारुति ने टेलीविजन के लिए जो विज्ञापन तैयार किए उनमें उसने ‘पेट्रोल खत्म ही नहीं होता’ और ‘कितना देती है’ जैसी पंक्तियों पर जोर दिया। परंतु कंपनी ने स्विफ्ट के प्रचार में माइलेज या ईंधन की कम खपत का सहारा नहीं लिया।
मारुति (Maruti) में दो दशक बिता चुके एक व्यक्ति के मुताबिक इसके लिए स्विफ्ट एनर्जाइजर नामक एक नया कार्यक्रम शुरू किया गया, जिसमें डीलरों के उन कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया गया, जो स्विफ्ट के अलावा कुछ नहीं बेचेंगे। उन्हें सिखाया गया कि अगर कोई ग्राहक स्विफ्ट की माइलेज पूछता है, तो उसे सलाह दें, ‘आप प्लीज वैगन आर देख लीजिए।’ (इसकी वजह से दिल्ली में लोग कहने लगे कि स्विफ्ट का माइलेज इतना खराब है कि कंपनी उसके बारे में बात ही नहीं करना चाहती। यह सुनकर मारुति ने अपना रुख बदला।)
मारुति ने उस समय तक मारुति 800, ओमनी, ऑल्टो, एस्टीम और वैगन आर को जिस तरह से डिजाइन किया था, स्विफ्ट का डिजाइन इनसे एकदम अलग था। इसके पहले जेन में भी किनारे घुमावदार या कर्व वाले थे मगर स्विफ्ट मारुति की बाकी कारों से एकदम अलग थी। यह कार सुजुकी की मशहूर स्पोर्ट्स बाइक हायाबुसा की तरह पूरी दुनिया के लिए बनाई गई थी और यह यूरोप में बिकती भी रही।
यह कार कई देशों में बनी मगर अंदर और बाहर से इसका डिजाइन एक ही रखा गया। स्विफ्ट (Swift) का डिजाइन एक ही था मगर भारत में इसे बदल दिया गया। इसे गड्ढों भरी सड़क, धूल और गर्मी से जूझने के लिए बदला गया। इसकी भी एक कहानी है।
सन 1984 से मारुति से जुड़े और कंपनी की इंजीनियरिंग के पर्याय बन चुके सी वी रमन ने बताया, ‘हमने 30 इंजीनियर जापान भेजे। यह पहला मौका था जब हम सुजूकी के साथ काम कर रहे थे। हमने सस्पेंशन, इंजन, सीट खासकर पिछली सीट को आरामदेह बनाने पर काम किया। हमारे इंजीनियरों ने सुजूकी के साथ हर उस चीज पर काम किया जो भारत के लिए जरूरी थी।’
प्रचार के दौरान मारुति ने कई जगहों पर होर्डिंग पर स्विफ्ट की फाइबर ग्लास बॉडी टांगी। इनमें इंजन नहीं था लेकिन ये एकदम असली कार की तरह नजर आती थीं। लोग इन्हें देखकर हैरत भी जताते थे। परंतु सवाल अब भी बाकी था, ‘क्या लोग छोटी कार के लिए ज्यादा पैसे खर्च करेंगे?’
इसका जवाब बिक्री के आंकड़ों ने दे दिया। यह सही है कि ऑल्टो और वैगन आर की बिक्री ज्यादा रही मगर स्विफ्ट मारुति के ताज में जड़े नगीने की तरह थी। कंपनी ने अपने मानेसर कारखाने में इस कार का उत्पादन बढ़ा दिया। कंपनी ने अखबारों से अपने विज्ञापन वापस ले लिए क्योंकि बुकिंग पहले ही बहुत ज्यादा हो चुकी थी। कंपनी के उस वक्त के प्रबंध निदेशक जगदीश खट्टर ने कहा था कि ग्राहक जुटाने के लिए और पैसे खर्च करने की कोई जरूरत नहीं।
2006 में शुरू हुए द इंडियन कार ऑफ द इयर अवार्ड में स्विफ्ट ने ही पहला कार ऑफ द इयर का खिताब जीता था। रमन ने कहा, ‘इन तमाम बातों ने मारुति और सुजूकी के सोचने का तरीका बदल दिया। पहले हर जगह जापानी मॉडल बेचे जाते थे। 2002 के बाद से मारुति ने सुजूकी के साथ मिलकर काम करना शुरू कर दिया गया।’
कुछ समय बाद मारुति ने एस्टीम कार बंद कर दी। यह अपने दौर की बेहद लोकप्रिय सिडैन थी मगर अब दूसरी कारों के सामने पुरानी लगने लगी थी। मगर सुजूकी के पास हैचबैक और बड़ी सिडैन एसएक्स4 के बीच कोई सिडैन थी ही नहीं।
ऐसे में मारुति के शोध एवं डिजाइन विभाग ने स्विफ्ट से एक सिडैन तैयार करने का फैसला किया। जापान की मदद से टीम ने एकदम शून्य से शुरुआत की और शुरू में गाड़ी के मिट्टी के मॉडल बनाए गए। इसका नतीजा स्विफ्ट डिजायर के रूप में सामने आया। अब तक 25 लाख स्विफ्ट डिजायर बिक चुकी हैं और हो सकता है कि निकट भविष्य में आपको 30 लाख डिजायर बिकने की खबर भी मिले।