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अनदेखी: कैसा रहने वाला है इलेक्ट्रिक कारों का भविष्य?

कुछ समय पहले तक चर्चा थी कि भारत कुछ वर्षों में आईसीई कारों के पंजीयन पर रोक लगा देगा, शायद इस दशक के अंत तक वह ऐसा कर दे।

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सुवीन सिन्हा   
Last Updated- May 01, 2024 | 11:35 PM IST

द इकॉनमिस्ट पत्रिका जो स्वयं को एक समाचार पत्र कहती है, वह एक पुराना और प्रतिष्ठित संस्थान है। कहा जाता है कि उसे सफल लोग पढ़ते हैं जबकि कम सफल लोग, मिसाल के तौर पर आपके इस स्तंभकार जैसे लोग उसे कभी-कभार पढ़ते हैं। एक बार ऐसे ही उसे पढ़ते हुए द इकॉनमिस्ट वेबसाइट की एक खबर का शीर्षक जेहन में अटक गया। 14 अप्रैल, 2023 के अंक में शीर्षक था, ‘भविष्य बिजली से चलने वाले वाहनों का है।’

भारत में कुछ लोगों को द इकॉनमिस्ट का वह लहजा पसंद नहीं आता है जिसमें वह भारत की अर्थव्यवस्था और राजनीति को कवर करता है। खासतौर पर तब जबकि अर्थव्यवस्था और राजनीति, दोनों शब्द एक साथ आते हैं। परंतु पत्रिका ने वाहन क्षेत्र को लेकर जो कहा वह बात भारत में कई लोगों को पसंद आई होगी।

पेट्रोल-डीजल इंजन (आईसीई) से इलेक्ट्रिक व्हीकल को अपनाने की ओर बढ़ना भारत जैसे देश के लिए एक रूमानी संभावना है जिसने लैंडलाइन फोन की कमी की स्थिति से सीधी छलांग लगाई और स्मार्टफोन की प्रचुरता वाली स्थिति में आ गया। इसे अंग्रेजी के चार अक्षरों वाले शब्द से स्पष्ट किया जा सकता है जो ‘एस’ से आरंभ होता है।

यही वह शब्द है जिसका भारतीय गेंदबाजी के लिए इस्तेमाल करने से राहुल द्रविड़ पिछले वर्ष हिचकिचा गए थे। कुछ समय पहले तक चर्चा थी कि भारत कुछ वर्षों में आईसीई कारों के पंजीयन पर रोक लगा देगा, शायद इस दशक के अंत तक वह ऐसा कर दे।

बिजली से चलने वाले दोपहिया वाहन सड़कों पर बड़ी तादाद में नजर आ रहे हैं। इस वर्ष मार्च में 1,38,000 बिजली चालित दोपहिया वाहनों का पंजीयन हुआ। इससे पहले मई 2023 में 1,03,000 इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहन पंजीकृत हुए थे। मार्च में हुआ पंजीयन फरवरी की तुलना में करीब दोगुना था। इस महीने दोपहिया वाहनों में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी नौ फीसदी रही। अकेले स्कूटर के क्षेत्र में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी मार्च में 28 फीसदी तक पहुंच गई।

यह सही है कि अप्रैल का महीना निराशाजनक रहा और ऐसा मुख्य तौर पर सरकारी सब्सिडी में कमी आने की वजह से हुआ परंतु बिजली चालित दोपहिया वाहन का उपयोग मजबूत बना हुआ है। उनकी कीमतों में कमी आ रही है। उन्हें चार्ज करना आसान है। बाजार में ऐसे कई मॉडल आ चुके हैं और कई आने वाले हैं। कम दूरी के आवागमन के लिए ये बहुत अच्छे विकल्प हैं।

उदाहरण के लिए ई-कॉमर्स डिलिवरी वगैरह। कारें अधिक लंबी दूरी का सफर तय करती हैं क्योंकि सड़क नेटवर्क में सुधार के कारण लोगों की सड़क यात्राएं बढ़ी हैं। उन्हें बड़ी बैटरी की आवश्यकता होती है जो महंगी आती है और चार्ज होने में अधिक समय लेती है।

कई चर्चित इलेक्ट्रिक कारों की कीमत अभी भी बहुत अधिक है हालांकि टाटा और एमजी ने कुछ सस्ती इलेक्ट्रिक कारें बनाई हैं। लक्जरी कारों की श्रेणी में इनका प्रदर्शन बेहतर है क्योंकि वहां कीमत कार खरीदने में अहम भूमिका नहीं निभाती। वहां अक्सर लोगों के पास एक से अधिक कारें होती हैं और लंबी दूरी के लिए आईसीई कार होती है।

परंतु जब इलेक्ट्रिक कारों की बात आती है तो हमें इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि इलेक्ट्रिक कारों पर 5 फीसदी वस्तु एवं सेवा कर लगता है और कुल कारों में इनकी हिस्सेदारी दो फीसदी के करीब है। तुलनात्मक रूप से देखें तो हाइब्रिड कारों पर 28 फीसदी वस्तु एवं सेवा कर लगता है लेकिन उपकर सहित इस पर लगने वाला कर बढ़कर 43 फीसदी हो जाता है।

केवल छोटी कारों पर इससे कम कर दर लगती है। आईसीई कारों पर भी वस्तु एवं सेवा कर लगता है लेकिन उपकर सहित इन पर कुल कर 50 फीसदी हो जाता है। कार के आकार और इंजन क्षमता के अनुसार इनमें अंतर होता है।

अभी भी कुछ अनुमान हैं जो कहते हैं कि देश में वित्त वर्ष 2023 से 2030 के बीच 4.2 करोड़ यात्री वाहन बिकेंगे जिनमें इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी करीब 60 लाख होगी। यानी बहुत बड़ी तादाद में दूसरी किस्म की कारें बिकेंगी। याद रखना होगा कि अनुमान लगाया गया था कि 2030 तक देश में आईसीई कारों का पंजीयन बंद हो जाएगा।

दूसरी किस्म की कारों में हाइब्रिड कारें शामिल होंगी जिनमें आईसीई के अलावा बैटरी भी होती हैं। ये कारें इलेक्ट्रिक कारों की तुलना में सस्ती होती हैं। इनके साथ ये चिंता भी नहीं जुड़ी होती है कि ये कितनी दूरी तय कर पाएंगी और ये बात इन्हें बहुत अधिक उपयोगी बनाती है। भारत में ऐसी कारों की तादाद बढ़ी है। टोयोटा ने भारत में अपनी हाइब्रिड तकनीक पेश की। यह तब चर्चा में आई थी जब हॉलीवुड के सितारों ने इस सदी के आरंभ में प्रियस कार चलानी शुरू की थी। कंपनी ने देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुजूकी के साथ साझेदारी में भी कई कारें बेचना आरंभ किया है।

दिलचस्प है कि एचएसबीसी रिसर्च ने जनवरी में एक रिपोर्ट पेश करते हुए कहा, ‘हाइब्रिड कारें ईवी की तुलना में काफी कम प्रदूषण उत्पन्न करती हैं।’ रिपोर्ट में कहा गया है कि ढेर सारे आंकड़ों, प्रतिशत, उत्सर्जन इकाइयों और भारत में गैर जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली उत्पादन की हिस्सेदारी के साथ इलेक्ट्रिक वाहनों और हाइब्रिड उत्सर्जन को एक स्तर पर आने में सात से 10 वर्ष का समय लगेगा।

इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर उत्साहित कंपनियों के अंदरूनी सूत्र रिपोर्ट को खारिज करते हैं। उनका कहना है कि हाइब्रिड एक पुरानी तकनीक है जिस पर भारत में जोर दिया जा रहा है। परंतु यह बात तो किसी भी कार तकनीक के बारे में कहा जा सकता है।

हाइब्रिड को लेकर अन्य जगहों पर भी चर्चा हो रही है। द न्यूयॉर्क टाइम्स ने जनवरी में अमेरिका में हाइब्रिड के दोबारा उभार के बारे में लिखा कि इसकी बिक्री मजबूत है। रिपोर्ट में कहा गया कि कई अमेरिकी विद्युतीकरण को लेकर खुला रुख रखते हैं लेकिन वे पूरी तरह इलेक्ट्रिक कार को अपनाने के लिए तैयार नहीं हैं।

रॉयटर्स में डेट्रॉइट से प्रकाशित एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि वाहन निर्माता कंपनियां और आपूर्तिकर्ता उपभोक्ता मांग पर दांव लगा रहे हैं। इस बीच आईसीई और इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर एक समझौता टिकाऊ रुझान वाला है। फरवरी में अमेरिका में हाइब्रिड कारें इलेक्ट्रिक कारों की तुलना में पांच गुना तेजी से बढ़ीं।

यह सही है कि विश्व स्तर पर टोयोटा की स्थिति बेहतर हुई जबकि इलेक्ट्रिक कारों के लिए प्रसिद्ध टेस्ला को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

First Published : May 1, 2024 | 11:35 PM IST