इस महीने की शुरुआत में, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने आईआईएफएल फाइनैंस लिमिटेड को गोल्ड लोन मंजूर करने और इसका वितरण तत्काल प्रभाव से रोकने का निर्देश दिया था। हालांकि, आईआईएफएल फाइनैंस अपने मौजूदा गोल्ड लोन पोर्टफोलियो को बनाए रख सकती है और सामान्य संग्रह और वसूली प्रक्रिया पर काम कर सकती है। आखिर बैंकिंग नियामक ने यह कदम क्यों उठाया है?
आरबीआई ने आईआईएफएल फाइनैंस गोल्ड लोन की निगरानी में यह देखा कि ऐसे ऋण की मंजूरी देते समय और ऋण चुकाने में विफल रहने वालों से पैसे वसूलने के लिए सोने की नीलामी करते समय सोने की शुद्धता और शुद्ध वजन का निर्धारण करने के साथ ही और उसकी प्रमाणन प्रक्रिया में गंभीर चूक कर रहा था।
आरबीआई को ऋण-मूल्य (एलटीवी) अनुपात यानी ऋण लेने वालों द्वारा दी गई जमानत (इस मामले में, सोना) के मूल्य के बरअक्स ऋण अनुपात में गड़बड़ी मिली थी। (व्यक्तिगत ऋण के तौर पर गोल्ड लोन के लिए एलटीवी 75 प्रतिशत है। आरबीआई ने इसे 2020 में ही महामारी फैलने के बाद मार्च 2021 तक की अवधि के लिए बढ़ाकर 90 प्रतिशत कर दिया था। कृषि के लिए दिए जाने वाले गोल्ड लोन में हमेशा 90 प्रतिशत एलटीवी होता है।) इसमें अन्य नियामकीय उल्लंघन भी होता रहा है जिससे ऋण लेने वाले के हित पर असर पड़ने के साथ ही गोल्ड लोन बाजार की वृद्धि पर भी असर पड़ता है।
सोने के बदले ऋण देने का कारोबार अब लगभग हर बैंक के पोर्टफोलियो में लोकप्रिय है जबकि पहले यह दक्षिण भारत की कुछ गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) जैसे मुथूट फाइनैंस लिमिटेड, मणप्पुरम और मुथूट फिन कॉर्प लिमिटेड तक सीमित था। इसके ग्राहकों में सबसे गरीब तबके के लोग शामिल हैं जो विभिन्न वित्तीय मध्यस्थों के पास सोना गिरवी रखकर ऋण लेने के लिए तैयार हैं जो कोविड से पहले के समय में वर्जित था। तेजी से बढ़ रहे गोल्ड लोन बाजार की निगरानी करने में बैंकिंग नियामक अकेले नहीं है।
वित्त मंत्रालय भी इस पर कड़ी निगरानी रख रहा है। दरअसल आरबीआई द्वारा गोल्ड लोन देने वाले एनबीएफसी के खिलाफ कार्रवाई करने से एक हफ्ते पहले, वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को जनवरी 2022 से खोले गए गोल्ड लोन खाते की व्यापक समीक्षा करने के लिए लिखा था।
इसको लेकर कई तरह की चिंताएं हैं जिनमें गिरवी रखी गई चीजों की गुणवत्ता, बैंकों की ब्याज लागत और प्रसंस्करण शुल्क और ऐसे कई ऋणों का जल्दी बंद होना शामिल है। यह वास्तव में यह भी जानना चाहता है कि क्या बैंक मौजूदा फंसे ऋण को भुगतान चूक से रोकने के लिए उधारकर्ताओं को नए ऋण भी दे रहे हैं या नहीं।
भारत में सोने की कीमत और गोल्ड लोन में बढ़ोतरी के चलते ही सरकार और आरबीआई दोनों ने सक्रियता दिखाई है। आंकड़ों के अनुसार पिछले एक साल में सोने की कीमतों में 16.6 प्रतिशत और गोल्ड लोन में 17 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई है।
बात सिर्फ इतनी नहीं है, सोने का आयात भी तेजी से बढ़ रहा है। फरवरी में सालाना आधार पर सोने का आयात 134 प्रतिशत बढ़कर 6.2 अरब डॉलर हो गया। मौजूदा वित्त वर्ष के पहले 11 महीने में अंतरराष्ट्रीय सोने की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर हैं और इस दौरान सोने का आयात 39 प्रतिशत बढ़कर 44 अरब डॉलर हो गया है, जबकि पिछले साल यह 31.7 अरब डॉलर था।
यह रुझान आगे भी जारी रहने की संभावना है। फरवरी की वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि सोना एक रणनीतिक संपत्ति क्यों है। सोने में नकदी की मात्रा अधिक होती है और इसमें कोई ऋण जोखिम नहीं होता है और यह दुर्लभ भी है जिसके चलते यह ऐतिहासिक रूप से समय के साथ इसके मूल्य को बनाए रखता है।
इसे विविध स्रोतों के मांग का फायदा भी निवेश के रूप में, एक आरक्षित संपत्ति के रूप में, सोने के आभूषण के रूप में और एक तकनीकी घटक के रूप में (यह बिजली का एक सुपर कंडक्टर है) मिलता है। एक निवेशक के लिए, इन सभी विशेषताओं का मतलब यह है कि सोना तीन प्रमुख तरीकों से किसी पोर्टफोलियो को बढ़ा सकता है जिसमें दीर्घकालिक प्रतिफल की पेशकश करना, विविधीकरण और नकदी शामिल है। चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सोना आयातक भारत है और यहां दुनिया के सोने का 14 प्रतिशत भंडार है जो लगभग 27,000 टन है।
इसके करीब 20 फीसदी या 5,300 टन सोने के बदले ऋण लेने के लिए गिरवी रखा गया है। हालांकि, इस बाजार का 65 प्रतिशत औपचारिक वित्तीय प्रणाली के बाहर है। आईआईएफएल फाइनैंस का दिसंबर में गोल्ड लोन पोर्टफोलियो 24,692 करोड़ रुपये था। मुथूट फाइनैंस 66,000 करोड़ रुपये के पोर्टफोलियो के साथ, एनबीएफसी के गोल्ड लोन श्रेणी में सबसे बड़ा है।
मणप्पुरम फाइनैंस का पोर्टफोलियो 20,809 करोड़ रुपये है। दिसंबर 2023 तक देश के सबसे बड़े बैंक, भारतीय स्टेट बैंक का गोल्ड लोन पोर्टफोलियो 30,881 करोड़ रुपये था। यह निजी ऋण के रूप में दिए गए गोल्ड लोन की मात्रा है। सोने को गिरवी पर रखकर आमतौर पर दिए गए कृषि ऋण का पोर्टफोलियो 1 लाख करोड़ रुपये है।
बैंक ऑफ बड़ौदा, पंजाब नैशनल बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक, एचडीएफसी बैंक लिमिटेड, फेडरल बैंक लिमिटेड और साउथ इंडियन बैंक लिमिटेड अन्य बैंक के पास भी अपेक्षाकृत बड़े गोल्ड लोन पोर्टफोलियो हैं। एनबीएफसी और वाणिज्यिक बैंकों के अलावा, सहकारी बैंक, निधियां (एनबीएफसी का एक रूप) और वित्तीय प्रौद्योगिकी (फिनटेक) कंपनियां भी इस क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रही हैं। मोटे तौर पर, बैंकों की बाजार हिस्सेदारी 40 प्रतिशत और एनबीएफसी की 60 प्रतिशत है।
बजाज फिनसर्व लिमिटेड, एक बड़ा और विविधता से भरा एनबीएफसी है और अनुमान है कि भारत का गोल्ड लोन बाजार जो 2022 में 55.52 अरब डॉलर तक के दायरे में था वह 2029 तक 12.22 फीसदी की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर के साथ 124.45 डॉलर के स्तर को छू लेगी।
अब बैंकों की चुनौतियों पर विचार करते हैं। जब कोई व्यक्ति गोल्ड लोन लेने का फैसला करता है तब पहले बैंक, उस सोने की शुद्धता की जांच करते हैं जिसे गिरवी के तौर पर रखा जा रहा होता है। वे 18 से 24 कैरट सोना के बदले ऋण लेने के इच्छुक होते हैं। सोने की शुद्धता की जांच, काले पत्थर पर रगड़कर की जाती है और या इसे खुरच कर इसमें नाइट्रिक एसिड का इस्तेमाल कर शुद्धता जांच की जाती है।
लेकिन इसमें भी कुछ खामियां रह जाती हैं क्योंकि सोने की मोटी परत के चलते कई दूसरी धातुएं छिप सकती हैं। आमतौर पर गोल्ड लोन कुछ महीने के लिए दिए जाते हैं या फिर एक साल के लिए दिए जाते हैं। भुगतान में चूक की स्थिति में बैंक, ऋण लेने वालों को नोटिस देने के साथ ही अखबार में विज्ञापन देने के बाद सोने की नीलामी करता है।
इन चुनौतियों के बावजूद बैंकों में गोल्ड लोन के लिए उत्साह है क्योंकि ये पूरी तरह सुरक्षित है और सोना गिरवी रखे जाने के चलते बैंक को इस तरह के ऋण का समर्थन करने के लिए किसी पूंजी की जरूरत नहीं है। नवबंर 1962 से ही जब पहला गोल्ड बॉन्ड जारी किया गया था तब से ही कई बार सोने को भुनाने की कोशिशें हुईं। अब सोने के बदले ऋण लेने की रफ्तार में तेजी आ रही है और इसका मकसद टिकाऊ वृद्धि है।