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Editorial: परिवार आय सर्वेक्षण से खुलेगी असमानता की तस्वीर, विश्वसनीय डेटा जुटाना सबसे बड़ी चुनौती

सर्वेक्षण से गरीबी, आय असमानता और शहरी-ग्रामीण अंतर जैसे संकेतकों की बेहतर समझ बनेगी, लेकिन उच्च आय वर्ग से सटीक जानकारी जुटाना चुनौतीपूर्ण होगा।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- June 27, 2025 | 11:15 PM IST

सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने व्यापक परिवार आय सर्वेक्षण कराने की घोषणा की है जो संभवत: अगले वर्ष आरंभ हो सकती है। अखिल भारतीय आय वितरण सर्वेक्षण के निष्कर्ष अर्थव्यवस्था के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में व्यय की क्षमताओं में अहम संरचनात्मक बदलाव को सामने ला सकते हैं। इससे गरीबी की स्थिति, आय की असमानता का स्तर तथा शहरी और ग्रामीण परिवारों की आम बेहतरी जैसे अहम संकेतकों को समझने में मदद मिलेगी।

इस विषय पर अक्सर तीक्ष्ण और प्राय: विवादास्पद चर्चाएं होती रही हैं कि क्या आर्थिक विकास से सभी वर्गों को लाभ मिल रहा है या क्या तथाकथित ट्रिकल डाउन प्रभाव (यानी समृद्धि का ऊपर से नीचे तक पहुंचना) स्पष्ट दिखता है, परंतु ये शायद ही कभी भरोसेमंद आंकड़ों पर आधारित होती हैं। इसके बजाय परिवार खपत व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस) के आंकड़े या कर रिटर्न फाइलिंग के आंकड़ों पर भरोसा किया जाता है।

वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब जो राष्ट्रीय आय तथा अन्य सर्वेक्षणों के साथ कर रिटर्न का इस्तेमाल करती है उसका अनुमान है कि 1947 से 1980 के दशक के आरंभिक वर्षों के दरमियान देश में असमानता में कमी आई लेकिन उसके बाद हालात उलट गए और विगत 25 सालों में इसमें भारी इजाफा हुआ। लैब के शोधकर्ताओं के मुताबिक वर्ष 2022-23 तक देश के शीर्ष10 फीसदी कमाई वाले लाेग राष्ट्रीय आय में करीब 60 फीसदी के हिस्सेदार थे जबकि निचले 50 फीसदी लोगों के पास राष्ट्रीय आय का केवल 15 फीसदी था। हालांकि, उन्होंने उल्लेख किया कि डेटा की गुणवत्ता खराब थी या कहीं बिल्कुल नहीं थी। मिसाल के तौर पर 2017-18 के एचसीईएस के परिणामों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था।

यकीनन आय सर्वेक्षण को लेकर यह पहला प्रयास नहीं है। 1955 से ही ऐसे चुनिंदा प्रयास किए जाते रहे हैं जो गति नहीं पकड़ सके। 1964 और 1970 के बीच दो परिवार सर्वेक्षणों में प्राप्तियों और वितरण के आंकड़े जुटाए गए लेकिन बाद में इसे खारिज कर दिया गया। कारण यह था कि इससे ऐसे आय अनुमान सामने आए जो घरों के संयुक्त उपभोग और बचत अनुमानों से कम थे। वह चुनौती आज भी बरकरार है।

लोग अपने वास्तविक आय के ब्योरे साझा करने को लेकर सहज नहीं हैं। अधिकांश उच्च आय वाले लोग अपनी आय कम करके बताते हैं। वे अपने करीबियों से भी इसका खुलासा नहीं करते। इस अनिच्छा को दूर करना, सर्वेक्षण की विश्वसनीयता के लिए बुनियादी बात होगी और इसलिए राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) को सबसे पहले इस पर ध्यान देना चाहिए।

दक्षिण अफ्रीका में आय और व्यय के संयुक्त सर्वेक्षण किए जाते हैं। वहां जीवन स्तर (जिनमें आय शामिल है) के बारे में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर की दर, व्यय के पैटर्न पर पूछे गए प्रश्नों की तुलना में कम है जबकि नमूने में शामिल परिवारों के लिए इसमें भागीदारी करना कानूनी बाध्यता है। भारत के सर्वेक्षकों को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि नमूने का आकार और चुने गए परिवार देश की 1.4 अरब की आबादी का प्रतिनिधित्व करते हों और इसमें विविध आय स्रोत वाले लोग हों, जिनमें कभी-कभार होने वाली आय या वस्तुओं के रूप में भुगतान भी शामिल हों।

खासतौर पर ग्रामीण भारत में इसका सटीक आकलन कर पाना मुश्किल है। उभरता शहरी परिदृश्य भी गंभीर बाधा पैदा करता है। गेट वाली कॉलोनियों आदि में अक्सर सर्वेक्षण करने वालों को घुसने नहीं दिया जाता या लोग ऐसे सर्वेक्षणों पर प्रतिक्रिया देने से मना करते हैं। ऐसे में सर्वेक्षण करने वालों को उनकी जगह अन्य परिवारों को चुनना पड़ता है। इससे नमूने का घटक बदल जाता है और नतीजों पर भी असर पड़ता है। इस गतिरोध से निपटना बहुत जरूरी है। आय के स्तर के अलावा मंत्रालय को उम्मीद है कि परिवारों की आय पर तकनीक को अपनाने के असर का भी आकलन किया जाए।

First Published : June 27, 2025 | 10:58 PM IST