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Editorial: सरकार ने जीएसटी सुधार और रणनीतिक विनिवेश को दिया नया जोर

जीएसटी ढांचे को सरल बनाना ही सरकार का इकलौता सुधार एजेंडा नहीं है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक साक्षात्कार में सुधार संबंधी कुछ क्षेत्रों के बारे में बात की

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- September 08, 2025 | 10:14 PM IST

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) परिषद ने गत सप्ताह अप्रत्यक्ष कर ढांचे में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए। परिषद ने सैद्धांतिक रूप से 5 और 18 फीसदी की दो दरों को अपनाने की घोषणा की जबकि नुकसानदेह और विलासितापूर्ण वस्तुओं के लिए 40 फीसदी की ऊंची कर दर रखी गई है। परिषद ने क्षतिपूर्ति उपकर के मुद्दे पर भी विचार किया। उपकर केवल कुछ नुकसानदेह वस्तुओं से वसूल किया जाएगा, वह भी तब तक जब तक कि महामारी के समय राज्यों की राजस्व कमी की भरपाई की खातिर लिए गए कर्ज को चुकता नहीं कर लिया जाता।

माना जा रहा है कि यह कर्ज अगले कुछ महीनों में चुकता हो जाएगा। दोनों बातों को एक साथ देखा जाए तो ये उपाय जीएसटी व्यवस्था को विगत आठ वर्षों की तुलना में कहीं अधिक सरल बनाएंगे। दरों में बदलाव आगामी 22 सितंबर से लागू होगा।

बहरहाल, जीएसटी ढांचे को सरल बनाना ही सरकार का इकलौता सुधार एजेंडा नहीं है। इस समाचार पत्र में सोमवार को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का साक्षात्कार प्रकाशित हुआ जिसमें उन्होंने सुधार संबंधी कुछ क्षेत्रों के बारे में बात की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में अगली पीढ़ी के सुधारों का जिक्र किया। सरकार ने ऐसे सुधारों के लिए एक नई समिति की घोषणा की है। जैसा कि सीतारमण ने कहा, अगर हर माह रिपोर्ट के जरिये कदम उठाए जाने लायक बिंदु सामने रखे जाएं तो सरकार उनका क्रियान्वयन करेगी।

उन्होंने कहा कि वित्त मंत्रालय के भीतर अन्य बातों के अलावा विनिवेश पर भी जोर देने की आवश्यकता है। यह कोई नया नहीं बल्कि पुराना एजेंडा है जिसमें कई कारणों से ढिलाई बरती जाने लगी थी। विनिवेश पर नए सिरे से जोर देना स्वागतयोग्य है। यह बात ध्यान देने लायक है कि सरकार ने कोविड-19 महामारी के दौरान एक नई रणनीतिक विनिवेश नीति की घोषणा की थी। उसे 2021-22 के आम बजट में प्रस्तुत किया गया था।

इस नीति के मुताबिक सरकार केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों यानी सीपीएसई में अपनी मौजूदगी न्यूनतम करेगी। इस बारे में कुछ रणनीतिक क्षेत्रों की पहचान की गई- जैसे परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष और रक्षा, परिवहन और दूरसंचार, बिजली, पेट्रोलियम, कोयला और अन्य खनिज तथा बैंकिंग, बीमा एवं वित्तीय सेवा आदि। गैर रणनीतिक क्षेत्रों के सीपीएसई का निजीकरण किया जाना है या उन्हें बंद किया जाना है। बहरहाल, इस मोर्चे पर ज्यादा कुछ नहीं हुआ। अगर इस नीति को सही ढंग से लागू किया गया तो सरकार और अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर होगा।

अब सरकार ने बजट में सालाना विनिवेश लक्ष्य देना बंद कर दिया है जो एक तरह से अच्छा निर्णय है। सालाना लक्ष्य से विनिवेश की प्रक्रिया केवल राजस्व बढ़ाने की कवायद में बदलकर रह जाती है। इसका लक्ष्य राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल करना रह जाता है। ऐसा नहीं होना चाहिए। राजस्व तो इस कवायद का केवल एक पहलू है। इसके साथ निजी क्षेत्र के लिए जगह बनाने और व्यवस्था को बेहतर बनाने का व्यापक लक्ष्य जुड़ा होना चाहिए। इससे राज्य की क्षमता में भी सुधार होगा। हालांकि इसका यह अर्थ नहीं है कि प्राप्तियां महत्त्वपूर्ण नहीं हैं।

रणनीतिक विनिवेश से काफी मूल्य निकल कर सामने आ सकता है और प्राप्तियों का इस्तेमाल आने वाले वर्षों में सरकार के पूंजीगत व्यय कार्यक्रम की भरपाई के लिए किया जा सकता है। इससे मध्यम अवधि में वृद्धि को गति देने में मदद मिलेगी। प्राप्त राशि का एक हिस्सा सार्वजनिक ऋण की अदायगी में भी उपयोग किया जा सकता है, जिससे ब्याज भुगतान का बोझ कम होगा और राजकोषीय गुंजाइश बढ़ेगी। लेकिन वार्षिक प्रवाह समान नहीं होते और यह इस बात पर निर्भर करता है कि किस प्रकार की और कितनी कंपनियों का विनिवेश किया जा रहा है।

सरकार को चाहिए कि वह राजकोषीय घाटे का आंकड़ा विनिवेश सहित और उसके बिना दोनों रूपों में प्रस्तुत करे, ताकि वित्तीय स्थिति की अधिक स्पष्ट और तुलनात्मक तस्वीर सामने आ सके। कुल मिलाकर, विनिवेश की घोषित नीति को लागू करने के पक्ष में पर्याप्त तर्क मौजूद हैं, लेकिन इसे राजनीतिक रूप से संभालना हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है। उम्मीद है कि इस बार सरकार इन बाधाओं को सफलतापूर्वक पार कर पाएगी।

First Published : September 8, 2025 | 9:49 PM IST