इलस्ट्रेशन- बिनय सिन्हा
वर्ष 1992 में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) या विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) को भारतीय शेयर बाजार में निवेश करने की अनुमति दी गई थी। यह भारतीय पूंजी बाजार विदेशी निवेश के लिए खोलने की दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम था। एफआईआई ने 1992-93 में 13 करोड़ रुपये के मामूली निवेश के साथ भारतीय शेयर बाजार में निवेश की शुरुआत की थी।
उस समय घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) में पूर्ववर्ती यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया (यूटीआई), छह बैंक-प्रायोजित म्युचुअल फंड और चार वित्तीय संस्थान-प्रायोजित म्युचुअल फंड शामिल थे। ये सभी तब तक पूरी तरह स्थापित हो चुकी थीं। 1993 में निजी क्षेत्र की म्युचुअल फंड कंपनियों को भी बाजार में कदम रखने की अनुमति मिल गई।
इसके पीछे सोच यह थी कि ये म्युचुअल फंड कंपनियां बाजार में एफआईआई के विकल्प के रूप में काम करेंगी। मार्च 1993 के अंत में डीआईआई का शेयरों में संयुक्त निवेश लगभग 45,000 करोड़ रुपये था। हालांकि, अगले कुछ वर्ष डीआईआई के लिए उथल-पुथल वाले रहे जिससे एफआईआई की तुलना में उनका महत्त्व स्पष्ट रूप से कम हो गया।
यूटीआई उस समय एक बड़ी म्युचुअल फंड कंपनी हुआ करती थी मगर वर्ष 1998 में उसकी सुनिश्चित रिटर्न देने वाली योजनाएं समस्याओं से घिर गईं। इससे म्युचुअल फंडों पर निवेशकों का विश्वास हिल गया जिसका नतीजा यह हुआ कि आने वाले वर्षों में उन्हें निवेश जुटाने में मुश्किल पेश आने लगी। डीआईआई का बचा हुआ इक्विटी निवेश मार्च 1998 के अंत में दर्ज 65,300 करोड़ रुपये से मामूली बढ़कर मार्च 2000 के अंत तक 65,800 करोड़ रुपये हो गया।
इसी अवधि के दौरान एफआईआई निवेश दोगुना से अधिक होकर 70,300 करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जिससे यह पहली बार डीआईआई से आगे निकल गया। डीआईआई का इक्विटी निवेश मार्च 2005 के अंत तक घटकर 59,000 करोड़ रुपये रह गया जिसका आंशिक कारण 2003 में पूर्ववर्ती यूटीआई का दो घटकों में विभाजन था।
अगले 14 वर्षों (2000-01 से 2013-14) के दौरान एफआईआई का इक्विटी निवेश कुछ हद तक धीमा पड़ गया। यह मात्र 18 फीसदी की दर से बढ़ा जबकि पहले छह वर्षों (1994-95 से 1999-00) में यह 58 फीसदी की दर से बढ़ा था। हालांकि, इसी अवधि के दौरान, डीआईआई के निवेश में 2 फीसदी की गिरावट आई। नतीजा यह हुआ कि मार्च 2014 के अंत में डीआईआई का बचा निवेश 42,000 करोड़ रुपये रहा जबकि इसके मुकाबले एफआईआई के निवेश का यह आंकड़ा लगभग 6.6 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया।
वर्ष 2014-15 निवेश के लिहाज से डीआईआई के लिए एक महत्त्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। उस वर्ष शेयरों में उनका निवेश 98 फीसदी बढ़ गया और उसके बाद यह सिलसिला मजबूत बना रहा और तब से 42 फीसदी की वार्षिक औसत दर से बढ़ता रहा। डीआईआई के निवेश में 2014-15 से 2019-20 तक 55.4 फीसदी की दर से इजाफा हुआ, जबकि कोविड के बाद की अवधि (2021-22 से 2024-25) में यह दर 37 फीसदी रही थी।
इस प्रकार, सामान्य धारणा के विपरीत खुदरा निवेशक कोविड महामारी से पहले ही शेयर बाजार की ओर आकर्षित होने लगे थे। इसकी पुष्टि पारिवारिक क्षेत्र की सकल वित्तीय बचत में पूंजी बाजार साधनों की हिस्सेदारी से साबित होती है, जो 6 फीसदी से अधिक रही। यह मोटे तौर पर कोविड से पूर्व की अवधि (2014-15 से 2019-20) के बराबर थी। कुल मिलाकर, डीआईआई द्वारा किया गया निवेश मार्च 2025 के अंत में 14 लाख करोड़ रुपये के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया।
पिछले एक दशक में डीआईआई निवेश तेज गति से बढ़ने के बीच एफआईआई निवेश में केवल 4.9 फीसदी की वृद्धि हुई। इसका नतीजा यह हुआ कि मार्च 2025 के अंत में 10 लाख करोड़ रुपये के साथ उनका निवेश डीआईआई की तुलना में लगभग 29 फीसदी कम था। इस तरह, डीआईआई ने 25 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद शेयर बाजार में अपना पुराना रसूख फिर से हासिल कर लिया है।
यह स्थिति उत्साहजनक मानी जा सकती है क्योंकि डीआईआई के पास अब एफआईआई का मुकाबला करने के लिए पर्याप्त क्षमता है जिससे भारत का शेयर बाजार और मजबूत हो गया है। पिछले एक दशक में डीआईआई का बाजार पर दबदबा रहा है। एफआईआई निवेश और शेयर बाजार (बीएसई सेंसेक्स) के बीच सह-संबंध (जो जनवरी 2000 से मार्च 2014 तक 0.37 था) वह अप्रैल 2014 से जून 2025 तक लगभग नगण्य (-) 0.03 हो गया। इसका मतलब यह है कि पिछले एक दशक में एफआईआई का शेयर बाजार पर वस्तुतः कोई प्रभाव नहीं रहा है।
इसके विपरीत, डीआईआई निवेश और शेयर बाजार के बीच सह-संबंध, जो जनवरी 2000 से मार्च 2014 तक (-) 0.20 था, अप्रैल 2014 से जून 2025 के दौरान तेजी से बढ़कर 0.59 हो गया। इससे पता चलता है कि पिछले एक दशक में डीआईआई ने मुख्य रूप से शेयर बाजार को प्रभावित किया है।
देश में विशेष रूप से मझोले और छोटे शहरों में शेयर बाजार की पहुंच बढ़ाने में डीआईआई ने अहम किरदार निभाया है मगर अब भी उन्हें एक लंबा सफर तय करना है। हालांकि, एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि पिछले 10 वर्षों में एफआईआई द्वारा निवेश कम क्यों हो गया है? इसका प्रश्न का कोई सीधा जवाब नहीं है लेकिन गौर करने वाली बात है कि भारतीय शेयर बाजार का औसत मूल्यांकन (मूल्य-आय गुणक), जो जनवरी 2000 से मार्च 2014 तक 18.5 (दायरा 11-28) था, अप्रैल 2015 और मार्च 2025 के बीच बढ़कर 23.7 (दायरा 18.5-41.1) हो गया।
ऐसा लगता है कि उच्च मूल्यांकन ने एफआईआई (जिनके पास विभिन्न देशों में निवेश करने की गुंजाइश रहती है) को पिछले एक दशक में भारतीय शेयर बाजार में अपनी उपस्थिति बढ़ाने से रोक रखा है। क्या एफआईआई उसी तरह अपनी मौजूदगी दर्ज कराएंगे जैसा उन्होंने शेयर बाजार में कदम रखने के पहले 20 वर्षों में किया था? यह तो समय ही बताएगा।
(लेखक सेंटर फॉर सोशल ऐंड इकनॉमिक प्रोग्रेस, नई दिल्ली में सीनियर फेलो हैं। ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं।)