कोविड-19 संक्रमण के नए मामलों मेंं बीते कुछ सप्ताह में तेजी सेकमी आई है जिसके चलते कई राज्यों ने सार्वजनिक गतिविधियों पर प्रतिबंध शिथिल किए हैं। परंतु कुल मिलाकर मामले अभी भी काफी अधिक हैं और राज्य सरकारों को संभावित तीसरी लहर से बचने के लिए सावधान रहना होगा क्योंकि वह दूसरी लहर से अधिक घातक हो सकती है। महामारी को रोकने का इकलौता ठोस तरीका यही नजर आता है कि व्यापक पैमाने पर टीकाकरण किया जाए। कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाओं में यह नजर भी आ रहा है।
खेद की बात है कि टीकाकरण कार्यक्रम के क्षेत्र में भारत कई स्तरों पर नाकाम रहा है। यही वजह है कि टीकाकरण की गति भी वांछित से काफी कम रही है। उदाहरण के लिए भारत बायोटेक ने मंगलवार को कहा कि सरकार ने कोवैक्सीन की हर खुराक के लिए 150 रुपये की कीमत तय की है जो दीर्घावधि में व्यावहारिक नहीं लगती। इसका अर्थ यही है कि कंपनी को उत्पादन बढ़ाने के लिए समुचित प्रोत्साहन नहीं मिल रहा है और यह टीकाकरण कार्यक्रम को प्रभावित कर सकता है। दूसरी टीका निर्माता कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने भी कीमतों को लेकर असंतोष जताया है।
निश्चित तौर पर महामारी के इस चरण में हम इस स्थिति में नहीं हैं कि कोविड-19 टीका निर्माता, उचित लागत या समुचित मुनाफा न होने के कारण समस्या महसूस करें। भारत बायोटेक ने इस समाचार पत्र से कहा कि उसने आंतरिक तौर पर 500 करोड़ रुपये का निवेश किया और अपने विभिन्न संयंत्रों को कोविड-19 का टीका बनाने के काम में लगाया। इसका अर्थ यह है कि उसने अन्य उत्पादों के राजस्व का भी बलिदान किया। ऐसे में यह उचित ही है कि ऐसा करने वाली फर्म अपने निवेश की वसूली और कुछ हद तक मुनाफा कमाना चाहे। चूंकि सरकार इकलौती बड़ी खरीदार है और कोई अन्य प्रतियोगी नहीं है तो उसे टीकों का उचित, पारदर्शी और स्थायित्व भरा मूल्य निर्धारित करना चाहिए। टीकाकरण कार्यक्रम का दायरा बढ़ाने पर ध्यान दे रही सरकार को विनिर्माताओं पर मूल्य को लेकर जरूरत से अधिक दबाव नहीं बनाना चाहिए।
ऐसा भी नहीं है कि कीमत ही इकलौती समस्या है। सरकार ने पहले तो वास्तविक जरूरत का उचित अनुमान नहीं लगाया। इसके परिणामस्वरूप उसने न तो वैश्विक टीका विनिर्माताओं से इस विषय में चर्चा की और न ही घरेलू टीका उत्पादकों को समुचित ऑर्डर दिए। अब उसे बिना समय गंवाए उचित कीमत तय करनी चाहिए और उत्पादन बढ़ाने पर जोर देना चाहिए। सरकार ने अगस्त से दिसंबर के बीच होने वाली टीका आपूर्ति को लेकर ऑर्डर दिए हैं लेकिन कीमत अभी भी स्पष्ट नहीं है। यह सरकार का दायित्व है कि वह इस विषय में एक पारदर्शी फॉर्मूला पेश करे। इसके साथ ही निजी विनिर्माताओं की भी अपनी भूमिका है। टीकों की अलग-अलग कीमतों का तकाजा यही है कि कंपनियां अपनी उत्पादन लागत, मूल्य नीति और राजस्व अनुमान पेश करें।
सरकार ने निजी अस्पतालों में सेवा शुल्क के लिए भी प्रति खुराक 150 रुपये की सीमा तय कर दी है जो कई अस्पतालों के लिए व्यवहार्य नहीं है। इससे न केवल टीकाकरण की गति प्रभावित हो सकती है बल्कि निजी माध्यमों से टीके हासिल करने में भी दिक्कत आ सकती है। देश में अब तक केवल 26 करोड़ टीके लगाए गए हैं और अभी लंबा सफर तय करना है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि बुनियादी चीजों पर काम करे और टीकाकरण बढ़ाने पर ध्यान दे। इन मसलों को तो बहुत पहले हल कर लिया जाना चाहिए था। जीवन बचाने के अलावा तेज टीकाकरण से आर्थिक सुधार भी बेहतर होगा और सरकार का राजस्व भी सुधरेगा। देश का कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम इसलिए प्रभावित नहीं होना चाहिए कि हम सही ढंग से योजना नहीं बना सके।