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रोजगार में कमी दर्शाते ईपीएफओ के आंकड़े

Published by
महेश व्यास
Last Updated- January 05, 2023 | 10:00 PM IST

दिसंबर 2022 में कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने वर्ष 2021-22 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021-22 के दौरान 4.63 करोड़ सदस्यों ने ईपीएफओ में योगदान दिया। यह 2020-21 के 4.62 करोड़ योगदानकर्ताओं की तुलना में थोड़ा अधिक था।

वर्ष 2021-22 में ईपीएफओ में योगदान देने वाले 4.63 करोड़ सदस्यों की संख्या, महामारी से पहले के वर्ष 2019-20 में योगदान देने वाले 4.89 करोड़ सदस्यों की तुलना में कम हैं। संगठित क्षेत्र के रोजगार का आकलन ईपीएफओ के योगदान से आंका जाता है और इसमें कम से कम वर्ष 2021-22 तक सुधार नहीं दिखा और यह अपने महामारी-पूर्व स्तर पर नहीं पहुंचा था। इसमें 5.3 प्रतिशत की गिरावट आई थी। ईपीएफओ की वार्षिक रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि योगदान देने वाले संस्थानों की संख्या वर्ष 2019-20 के 660,204 से घटकर वर्ष 2021-22 में 591,184 हो गई है। इन दो वर्षों के दौरान योगदान देने वाले संस्थानों की संख्या में 10.5 प्रतिशत की भारी कमी आई है।

रोजगार पर महामारी के असर को अंग्रेजी के वी अक्षर की आकृति के सुधार के दावे के साथ दर्शाया गया है जैसा कि सबसे अधिक प्रचारित आधिकारिक आंकड़ों में भी यह स्पष्ट होता है। हालांकि, यह निष्कर्ष ईपीएफओ डेटा के नियमित मासिक आंकड़े से अलग है। हम इस पर बारीकी से नजर डालने की कोशिश करते हैं।

ईपीएफओ के ‘कुल वेतन भुगतान’ यानी पेरोल डेटा का नियमित प्रकाशन अपेक्षाकृत रूप से सरकार की एक नई पहल है। वर्ष 2018 की शुरुआत में यह पहल की गई। यह सितंबर 2017 से आंकड़े मुहैया करता है। इस पहल का उद्देश्य संगठित क्षेत्र के रोजगार को मापना है। यह ‘कुल वेतन भुगतान’ डेटा वास्तव में एक महीने में ईपीएफओ सबस्क्राइबरों के जुड़ने की जानकारी देता है।

यह ईपीएफओ में योगदान के सकल योग को दर्शाता है जिसमें ईपीएफओ से निकलने वालों की संख्या कम होती है और इसमें हर महीने ईपीएफओ से बाहर निकलने वाले सदस्यों की दोबारा सबस्क्रिप्शन की भी जानकारी शामिल है। वास्तव में, ईपीएफओ वेतनभोगी कर्मचारियों के एक वर्ग के लिए एक बचत योजना है, न कि एक (गैर-कृषि) कुल वेतन भुगतान डेटाबेस है जैसा कि आमतौर पर अन्य देशों में इसे समझा जाता है जहां इसका इस्तेमाल रोजगार को मापने के लिए किया जाता है। लेकिन यह एक अलग तरह की समस्या है।

जारी होने वाले मासिक डेटा से अंदाजा मिलता है कि ईपीएफओ सदस्यता में शुद्ध वृद्धि वर्ष 2020-21 में 77 लाख और वर्ष 2021-22 में 1.22 करोड़ रही। इसका मतलब है कि ईपीएफओ अंशधारकों की कुल संख्या में बढ़ोतरी तकरीबन दो करोड़ है। यह संसद में पेश की गई वार्षिक रिपोर्टों से नाटकीय रूप से अलग है जिसमें इसी अवधि के दौरान 26 लाख की कमी के संकेत मिलते हैं।

ईपीएफओ द्वारा जारी मासिक डेटा हमेशा अस्थायी होते हैं जिनमें भविष्य में बदलाव की संभावना होती है और इन्हें दो महीने से कम समय के अंतराल पर जारी किया जाता है। हाल में इसे 20 दिसंबर, 2022 को रिलीज किया गया और ताजा डेटा अक्टूबर 2022 के अस्थायी अनुमान को दर्शाते हैं।

डेटा पहली बार जारी किए जाने के बाद अगले चरण में जारी किए जाने पर इसमें संशोधन किए जाते हैं और इसे अधिकतम 12 महीनों की अवधि में जारी किया जाता है या फिर इसमें बिल्कुल भी संशोधन नहीं किया जा सकता है। प्रारंभिक अनुमान में संशोधन किए जाएंगे या नहीं या इसे महीने में कितनी बार संशोधित किया जाएगा यह महीने पर निर्भर करता है। हम इस पर भी विचार करेंगे। सबसे पहले, आइए इससे जुड़े संशोधनों पर एक नजर डालते हैं।

इसके संशोधन व्यापक स्तर पर किए जाते हैं। हम अप्रैल 2021 के अनुमानों में संशोधन की जांच करते हैं। अप्रैल 2021 में ईपीएफओ अंशधारकों के जुड़ने के पहले अनुमान का आंकड़ा 12,75,729 था। यह अनुमान जून 2021 में जारी किए गए थे। मई 2022 में जारी आंकड़े से पहले जितनी बार भी ये आंकड़े जारी हुए उसमें संशोधन किए गए। अप्रैल 2021 के अनुमान में बड़े पैमाने पर 45 प्रतिशत तक की कमी आई और यह आंकड़ा 698,876 के स्तर पर पहुंच गया।

इसी तरह मई 2021 का पहला अनुमान जुलाई 2021 में जारी किया गया जो 919,772 था जो मई 2022 तक कम होकर 441,760 हो गया। करीब 11 महीनों में यह संशोधन 52 प्रतिशत तक था। यह संशोधन क्रमिक आधार पर और बड़े पैमाने पर निचले स्तर की ओर जाते प्रतीत होते हैं। इसी वजह से ईपीएफओ के शुरुआत में जारी आंकड़े देखना काफी भ्रामक हो सकता है।

इन संशोधनों में यह बात अहम है कि ये आंकड़े एक महीने के लिए उपलब्ध होते हैं जब तक कि इसके वित्तीय वर्ष के सभी मासिक डेटा जारी नहीं किए जाते हैं। ऐसे में, अप्रैल की पहली रिलीज़ में बाद के महीनों में 11 संशोधन होते हैं जबकि मई में 10 संशोधन होते हैं। वहीं जून महीने में संशोधनों की संख्या 9 और मार्च की रिलीज तक यह जारी रहता है जिसमें कोई संशोधन नहीं होता है।

यह हैरान करने वाली एक असंतोषजनक स्थिति है क्योंकि यह ईपीएफओ के शुद्ध सबस्क्रिप्शन की एक मासिक सीरीज तैयार करता है जिसमें विश्वसनीयता के विभिन्न स्तर होते हैं। यह देखते हुए कि संशोधन बहुत महत्त्वपूर्ण और अधूरे भी होते हैं, ऐसे में किसी भी विश्लेषण के लिए या रुझान का कोई भी सटीक अनुमान लगाने में वक्त देना उपयोगी नहीं होता है।

जब मार्च के आंकड़े जारी होते हैं तब ईपीएफओ मार्च में खत्म हुए साल का सालाना अनुमान जारी करता है। ये सालाना अनुमान कभी संशोधित नहीं होते हैं। इसका मतलब है कि डेटा जारी होने के अंतिम महीने के बाद डेटा में कोई संशोधन नहीं किया गया। लेकिन, इस पर यकीन करना मुश्किल है। अगर अप्रैल और मई के मासिक अनुमान, उनके मूल मूल्यों के आधे से भी कम तक संशोधित किए जा सकते हैं तब मार्च के अनुमान बाद के महीने में भी संशोधित किए जा सकते हैं।

लेकिन, ईपीएफओ की मासिक रिलीज में इन संशोधनों की बाध्यता नहीं है। इस तरह की प्रस्तुति से यह भी संदेह पैदा होता है कि अप्रैल 2021 का अनुमान जिसे आखिरी बार मई 2022 में संशोधित किया गया था वह अंतिम अनुमान था या उसमें अधिक संशोधन किए गए थे जो कभी जारी नहीं किए गए।

सवाल यह है कि इस नई पहल से आखिर क्या हासिल होगा जिसे पहली बार जारी किए जाने पर ज्यादा प्रचारित किया गया था? इसके पहले अनुमान एक बड़े अंतर के साथ अविश्वसनीय लगते हैं क्योंकि वास्तविक आंकड़े बड़ी आसानी से अनुमान की तुलना में आधे हो सकते हैं। इसकी समय श्रृंखला (टाइम सीरीज) भी अर्थहीन है क्योंकि इसमें पर्याप्त संशोधन के विभिन्न स्तर शामिल हैं।

इसका वार्षिक अनुमान स्थिर हैं और उसमें कभी संशोधित नहीं किए गए जब ऐसा लगा कि इन्हें संशोधित किया जाना चाहिए। नतीजतन, ईपीएफओ के मासिक आंकड़ों ने केवल गुमराह किया है। लगभग नौ महीने के अंतराल के साथ संसद में पेश की गई पुरानी ईपीएफओ रिपोर्ट अब भी इस डेटा का सबसे अच्छा स्रोत है। इससे यह अंदाजा भी मिलता है कि वर्ष 2020-21 के दौरान संगठित क्षेत्र में रोजगार में कमी आई और 2021-22 में यह स्थिर हो गई।

(लेखक सीएमआईई लिमिटेड के एमडी और सीईओ हैं)

First Published : January 5, 2023 | 10:00 PM IST