संपादकीय

Editorial: राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति को मजबूत बनाने की आवश्यकता

राजस्व वृद्धि दशक के 10 फीसदी के औसत से कम बनी हुई है और अधिकांश राज्य बहुत हद तक केंद्र से होने वाले हस्तांतरण पर निर्भर हैं

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- August 05, 2025 | 11:07 PM IST

क्रिसिल की एक हालिया रिपोर्ट दिखाती है कि भारत के 18 सबसे बड़े राज्य जो मिलकर देश के सकल राज्य घरेलू उत्पाद यानी जीएसडीपी में 90 फीसदी से अधिक का योगदान करते हैं, उनका राजस्व 2025-26 में 7 से 9 फीसदी तक बढ़ने की उम्मीद है। 2024-25 में यह महज बढ़त 6.6 फीसदी थी। कुल समेकित राजस्व के 40 लाख करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान है। इसमें वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह, शराब पर यानी आबकारी शुल्क में इजाफे और बेहतर केंद्रीय हस्तांतरण की अहम भूमिका है। पेट्रोलियम कर संग्रह जरूर 2 फीसदी की वृद्धि के साथ कमजोर बना हुआ है।

यह स्पष्ट रूप से राज्यों की वित्तीय हालत में स्थिरता का संकेत है। यह स्थिरता ऐसे समय में नजर आ रही है जबकि वैश्विक हालात चुनौतीपूर्ण बने हुए हैं और घरेलू आर्थिक हालात भी वैसे ही हैं। यह पूंजीगत आवंटन में तेज वृद्धि की स्थितियां निर्मित करता है।  हालांकि यह गहन ढांचागत मुद्दों की ओर भी ध्यान आकर्षित करता है। राजस्व वृद्धि दशक के 10 फीसदी के औसत से कम बनी हुई है और अधिकांश राज्य बहुत हद तक केंद्र से होने वाले हस्तांतरण पर निर्भर हैं। 2015-16 से 2024-25 तक राज्यों के राजस्व का 23 से 30 फीसदी तक हिस्सा केंद्र के हस्तांतरण से आया। 2000 और 2010 के दशक में यह 20 से 24 फीसदी के बीच हुआ करता था। इसके साथ ही गत दशक में राज्यों के गैर कर राजस्व में केंद्र सरकार के अनुदान 65 से 70 फीसदी के हिस्सेदार रहे जबकि पहले इनका योगदान 55 से 65 फीसदी तक होता था। यह दीर्घकालिक रुझान इस बात को रेखांकित करता है कि कैसे केंद्र की भूमिका बढ़ रही है और राज्यों के पास अपनी वित्तीय हालत सुधारने के स्वतंत्र उपाय सीमित हो रहे हैं। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की रिपोर्ट भी दिखाती है कि 2024-25 में राज्यों द्वारा अपनी राजस्व प्राप्तियों का 58 फीसदी हिस्सा अपने कर और गैर कर स्रोतों से हासिल किया गया जबकि 42 फीसदी राजस्व केंद्रीय करों में हिस्सेदारी और केंद्र के अनुदान से हासिल होने का अनुमान है।

भारकीय रिजर्व बैंक ने 2023-24 में राज्यों की वित्तीय स्थिति को लेकर जो रिपोर्ट पेश की थी उसमें कहा गया था कि राज्य सरकारों का समेकित ऋण-जीडीपी अनुपात 28.5 फीसदी है जो वित्तीय जवाबदेही और बजट प्रबंधन समीक्षा समिति द्वारा तय 20 फीसदी की सीमा से अधिक था। आंकड़े बताते हैं कि 12 राज्यों का ऋण-जीएसडीपी अनुपात 2023-24 में 35 फीसदी का स्तर पार कर गया जबकि करीब 24 राज्यों का अनुपात 20 फीसदी से अधिक था। बहरहाल कुछ को छोड़कर अधिकांश राज्यों का प्रदर्शन केंद्र से बेहतर रहा है। कई राज्यों ने बजट पारदर्शिता में सुधार किया है, सामाजिक क्षेत्र में अपन क्षमताएं बेहतर की हैं और पूंजीगत व्यय को प्राथमिकता दी है।  वास्तव में अधिकांश राज्यों ने काफी हद तक राजकोषीय समझदारी दिखाई है। उन्होंने मोटे तौर पर एफआरबीएम के मानकों का पालन किया और अपने राजकोषीय घाटे को जीएसडीपी के 3 फीसदी तक सीमित रखा। राज्यों का समेकित सकल राजकोषीय घाटा 1998-99 के जीडीपी के औसतन 4.3 फीसदी से कम होकर 2004-05 से 2023-24 के बीच जीडीपी का 2.7 फीसदी रह गया।

बहरहाल, राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति को मजबूत बनाने की आवश्यकता है। जीएसटी अनुपालन में सुधार को तत्काल प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। राज्यों को डिजिटल राजस्व निगरानी का विस्तार करना चाहिए और संपत्ति कर तथा उपयोगकर्ता शुल्क आदि में आने वाली खामियों को दूर करना चाहिए। इसके साथ ही केंद्र सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि हस्तांतरण समय पर और अनुमानित ढंग से हो, खासतौर पर वित आयोग द्वारा अनुशंसित अनुदान जो राजस्व वृद्धि और व्यय में असमानता की समस्या दूर करने में मदद करते हैं। राज्यों और केंद्र सरकार के बीच केंद्र द्वारा उपकर और अधिभार के इस्तेमाल को लेकर भी काफी मतभेद हैं। उपकर और अधिभार पर अधिक निर्भरता राज्यों और केंद्र के बीच राजकोषीय संतुलन को खराब करता है। इससे बचने की आवश्यकता है।

First Published : August 5, 2025 | 10:46 PM IST