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Buying Gold On Diwali: सोने की बढ़ती कीमत और त्योहारी सीजन की खरीदारी के चलते निवेशकों की नजर अब कागज़ी सोना और चांदी पर है। निवेशक अब ऐसे एक्सचेंज-ट्रेडेड विकल्पों की ओर बढ़ रहे हैं, जो भौतिक धातु रखने की तुलना में आसान और पारदर्शी हैं।
सोने और चांदी के एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ETFs) और फंड ऑफ फंड्स (FoFs) निवेशकों को धातु में निवेश करने का मौका देते हैं, बिना उसे असली रूप में रखने के। लेकिन ये दोनों तरीके खरीद, मूल्य निर्धारण और टैक्स में अलग हैं।
नीलेश डी. नाइक, हेड ऑफ इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट्स, Share.Market (PhonePe Wealth) के अनुसार, मुख्य अंतर खरीद और बिक्री के तरीके में है। उन्होंने कहा, “ETFs शेयर बाजार में ट्रेड होते हैं और इसके लिए डिमैट खाता जरूरी है। ये दिन के भीतर लिक्विडिटी देते हैं। वहीं, FoFs सीधे फंड हाउस से खरीदे जाते हैं और दिन के अंत में तय नेट असेट वैल्यू (NAV) पर मूल्य निर्धारित होता है।”
नीलेश ने बताया कि जो निवेशक ट्रेडिंग और डिमैट खाता रखने में सहज हैं, वे ETFs से फायदा उठा सकते हैं, जबकि सरलता पसंद करने वाले या डिमैट खाता न खोलने वाले FoFs चुन सकते हैं।
अजय लखोटिया, फाउंडर और CEO, StockGro के अनुसार, युवा निवेशकों के लिए ETFs बेहतर हैं, क्योंकि ये सोने और चांदी की कीमतों के सीधे और कम लागत वाले एक्सपोज़र देते हैं। उन्होंने कहा, “10,000 रुपये वाले युवा निवेशक भी ETF यूनिट्स शेयर की तरह खरीद सकते हैं, जबकि बड़े पोर्टफोलियो वाले निवेशक FoFs में आसानी से डाइवर्सिफिकेशन कर सकते हैं।”
रविकुमार टी, प्रोफेसर, Alliance School of Business ने बताया कि FoFs उन लोगों के लिए अच्छे हैं जो म्यूचुअल फंड स्टाइल निवेश या SIP पसंद करते हैं। “युवा सैलरी वाले निवेशक जो छोटे निवेश के साथ लिक्विडिटी चाहते हैं, वे ETFs चुनते हैं, जबकि अनुभवी निवेशक डाइवर्सिफिकेशन के लिए FoFs को प्राथमिकता देते हैं।”
विशेषज्ञों का कहना है कि ETFs में लागत कम होती है। विश्वनाथन अय्यर, सीनियर एसोसिएट प्रोफेसर – फाइनेंस, Great Lakes Institute of Management Chennai के अनुसार, “ETFs का खर्च 0.25–0.5% होता है, जबकि FoFs का 0.6–1% होता है क्योंकि इसमें अतिरिक्त लागत जुड़ती है।”
टैक्सेशन भी अलग है। नाइक के अनुसार, “ETFs में 12 महीने से अधिक होल्ड किए गए यूनिट्स पर लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन टैक्स 12.5% लगता है, जबकि FoFs में यह अवधि 24 महीने है।” उन्होंने कहा कि ETFs में ट्रैकिंग एरर कम होती है, जबकि FoFs में थोड़ी अधिक हो सकती है।
FoFs आम तौर पर अपने आधार ETFs के प्रदर्शन को फॉलो करते हैं, लेकिन थोड़ी देरी होती है। अय्यर ने बताया, “FoFs की रिटर्न्स, ETFs के प्रदर्शन से अतिरिक्त लागत और कैश ड्रैग घटाकर आती हैं, जो सालाना 0.3–0.7% तक पीछे रह सकती हैं।”
नीलेश ने सावधानी बरतने की बात कही। “उतार-चढ़ाव वाले बाजार में ETFs कीमतों से ऊपर या नीचे ट्रेड कर सकते हैं।”
अजय लखोटिया ने उदाहरण दिया, “त्योहारी मांग के दौरान, भारत में सिल्वर ETFs कभी 10-12% तक स्पॉट प्राइस से ऊपर ट्रेड कर गए थे। FoFs, जो दिन के अंत में NAV पर मूल्य तय करते हैं, तब इसे बाद में दिखाते हैं।”