संपादकीय

Editorial: राष्ट्रीय एकता सबसे ऊपर

ऑपरेशन सिंदूर को इतिहास एक ऐसे अवसर के रूप में भी याद किया जाना चाहिए जिसने देश को आने वाले समय के लिए एकजुट किया।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- May 16, 2025 | 10:13 PM IST

बीते करीब तीन सप्ताह में जो कुछ घटित हुआ है वह देश के समकालीन इतिहास में विशिष्ट स्थान पाएगा।  22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की हत्या कर दी गई। इस घटना ने पूरे देश को हिला दिया। हालांकि हमले के वास्तविक आरोपी नहीं पकड़े जा सके हैं लेकिन सुरक्षा बलों के पास यह पता लगाने के पर्याप्त प्रमाण थे कि इसका संबंध पाकिस्तान और पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी संगठनों से था। इस घटना ने पूरे देश को एकजुट कर दिया। विपक्षी दलों ने भी सरकार का समर्थन करते हुए कहा कि वह जो उचित समझे वह कदम उठाए। 6-7 मई की दरमियानी रात भारतीय सशस्त्र बलों ने ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत की और पाकिस्तान तथा पाक के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर में 9 स्थानों पर आतंकी ठिकानों पर हमला किया। यह सैन्य कार्रवाई नपी-तुली, सटीक निशाने पर और बिना उकसावे वाली थी। बहरहाल पाकिस्तान ने हालात बिगाड़ने शुरू कर दिए और भारतीय सैन्य बलों को जवाब देना पड़ा। भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान में सैन्य परिसंपत्तियों को काफी नुकसान पहुंचाया। चूंकि भारतीय सैन्य बलों ने आरंभिक लक्ष्य हासिल कर लिया था इसलिए भारत ने पाकिस्तान की अपील पर कार्रवाई  को स्थगित करने का निर्णय लिया।

22 अप्रैल के बाद से घटित सभी घटनाओं का खूब विश्लेषण किया जा रहा है और उन पर चर्चा भी हो रही है। यह मानना सही है कि सुरक्षा प्रतिष्ठान भी हर पहलू का आकलन कर रहा है ताकि अगर कोई कमी है तो उसे दूर किया जाए। इसके अलावा भविष्य को लेकर भी पूरी तैयारी रखनी है। ध्यान देने वाली बात यह है कि सशस्त्र बलों की कामयाबी के अलावा भारत ने जबरदस्त राष्ट्रीय एकता का भी प्रदर्शन किया है।  यह याद करना उचित होगा कि पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले में मृतकों को उनकी धार्मिक पहचान की पुष्टि करने के बाद मारा गया था। 

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अब यह बात व्यापक तौर पर मानी जा रही है कि अन्य लक्ष्यों के अलावा हमले का इरादा देश में सांप्रदायिक तनाव भड़काना भी था। परंतु यह कारगर नहीं हुआ। जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई को राष्ट्र के नाम संबोधन में भी कहा, ‘पूरा देश, हर नागरिक, हर समुदाय, हर वर्ग एकजुट होकर आतंकवाद के खिलाफ ठोस कार्रवाई के लिए खड़ा रहा।’ हालांकि, दुर्भाग्यवश कुछ लोग नहीं चाहते कि यह एकता बरकरार रहे। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश सरकार के एक मंत्री ने एक महिला सैन्य अधिकारी को लेकर एक अपमानजनक और सांप्रदायिक टिप्पणी की। इस अधिकारी ने अन्य अधिकारियों के साथ ऑपरेशन सिंदूर के दौरान मीडिया को जानकारियां दी थीं। हालांकि अदालतों ने इस मामले का संज्ञान लिया है और कानूनी कदम उठाया जा चुका है लेकिन जरूरत है एक स्पष्ट राजनीतिक संदेश देने की। राज्य सरकार और राजनीतिक नेतृत्व को यह दिखा देना चाहिए कि ऐसी हरकतों की बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है।

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दुर्भाग्यवश मंत्री ने जो कुछ कहा है वह एक विभाजनकारी राजनीति और समाज का प्रतिबिम्ब है और यह अपनी तरह की कोई इकलौती घटना नहीं है। पहलगाम आतंकी हमलों में मारे गए नौसेना अधिकारी की पत्नी को उस समय ऑनलाइन ट्रोल किया गया जब उन्होंने कहा था कि मुस्लिमों या कश्मीरियों को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए। संघर्ष विराम की घोषणा के बाद विदेश सचिव विक्रम मिस्री और उनके परिवार, खासकर उनकी बेटी को भी ऑनलाइन ट्रोल किया गया। ट्रोल करने वालों को मिस्री की बेटी के पेशेवर काम में सांप्रदायिक दृष्टिकोण मिल गया। देश की सार्वजनिक बहस में ऐसी बातें स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए। देश ने बीते कुछ हफ्तों में जो एकजुटता दिखाई है उसे बचाने की जरूरत है। ऑपरेशन सिंदूर को इतिहास में केवल एक सैन्य कामयाबी के रूप में नहीं दर्ज होना चाहिए। इसे एक ऐसे अवसर के रूप में भी याद किया जाना चाहिए जिसने देश को आने वाले समय के लिए एकजुट किया। अब यह सभी दलों के राजनीतिक नेतृत्व पर निर्भर है कि वे चुनावी लाभ के लिए विभाजनकारी राजनीति से दूर रहें और भारतीय राज्य को भी ऐसी विभाजनकारी बातों को बर्दाश्त नहीं करना चाहिए। इससे देश में सौहार्द बढ़ेगा और आर्थिक विकास में तेजी आएगी।

First Published : May 16, 2025 | 9:44 PM IST