अन्य देशों के उद्योगों की तरह ही भारतीय उद्योग जगत भी हर समय यही चाहेगा कि उसे ज्यादा संरक्षित बाजार में फलने-फूलने का मौका दिया जाए। यही वजह है कि उद्योग जगत के भीतर से दक्षिण एशियाई देशों के संगठन आसियान के साथ मुक्त व्यापार समझौता खत्म कर देने की मांग उठती रहती है। ऐसी मांग करने वाली आवाजें बहुत मुखर हैं। सरकार 2010 में लागू हुए इस समझौते की फिलहाल समीक्षा कर रही है और इसे ये आवाजें अनसुनी कर देनी चाहिए। आसियान देशों के साथ मिल-जुलकर रहने में ही भारत का हित है, उनसे दूर रहने में नहीं। आसियान के साथ मुक्त व्यापार समझौते की समीक्षा बैठक एक सप्ताह में होनी है। भारत को इस बैठक में सहयोग की भावना के साथ आगे बढ़ना चाहिए और रणनीतिक दृष्टि से महत्त्व रखने वाली इस साझेदारी को खत्म करने का बहाना नहीं ढूंढना चाहिए।
सरकार के भीतर के कुछ लोगों और उद्योग जगत के बड़े लोगों की शिकायत है कि आसियान मुक्त व्यापार के जरिये दक्षिण पूर्व एशिया के रास्ते चीनी माल भारत में खपाया जा रहा है। मगर हमें समझना होगा कि उन देशों के लिए भी यह उतनी ही बड़ी चिंता है। उदाहरण के लिए वियतनाम ने चीन के कई स्टील उत्पादों पर डंपिंग रोधी प्रतिबंध लगाए हैं। इसलिए यह सभी की चिंता और सभी को मिलकर ही इसका हल भी निकालना होगा। जरूरी नहीं कि शुल्क के अलावा दूसरी अड़चनें खड़ी कर देने के अफसरशाही के शुरुआती कदम सही हों।
उत्पादन के मूल स्थान का नियम ऐसा हो कि व्यापार पर बेजा असर डाले बगैर जरूरी जानकारी हासिल कर ली जाए और इसका मकसद आयात कम करना नहीं होना चाहिए। यह भी ध्यान रहे कि अतीत में तैयार किए उत्पत्ति के नियमों तथा स्थानीय मूल्यवर्धन जैसे उपायों को उन्नत बनाने का समय आ गया है ताकि वे वर्तमान के साथ ताल मिला सकें।
भारतीय उद्योग जगत की आसियान से अलग होने की इच्छा न केवल पीछे चलने की सोच दर्शाती है बल्कि इस हकीकत से नजर भी चुराती है कि कि व्यापार के नए दौर में विभिन्न देश खुद को कैसे ढाल रहे हैं। इस आरोप में भी बहुत दम नहीं है कि आसियान भारत के साथ समझौते को पर फिर बात धीमी गति से आगे बढ़ा रहा है। उसने हाल ही में चीन के साथ डिजिटल और हरित क्षेत्रों पर समझौते को उन्नत बनाने की चर्चा पूरी की है। दक्षिण पूर्व एशिया के देशों की कंपनियां समझती हैं कि विनिर्माण के नए दौर में होड़ करने की क्षमता तभी आएगी, जब बाजार खुला होगा, तकनीक एवं पूंजी उपलब्ध होगी और आपूर्ति श्रृंखला से भी पूरा जुड़ाव होगा। भारत को भी वैश्विक मूल्य श्रृंखला से अच्छी तरह जुड़ने और होड़ की क्षमता बढ़ाने के लिए ऐसे समझौतों की जरूरत है। वियतनाम तथा अन्य देशों की तरह उसे भी डंपिंग के खिलाफ कदम उठाने चाहिए। भारत के लिए सही यह होगा कि वह बेहतरीन और गहन व्यापार समझौतों पर बढ़े।
सरकार को यह भी समझना होगा कि किसी मुक्त व्यापार समझौते में देसी बाजार पर ध्यान देने वाले बड़े कारोबारों का ही हित नहीं जुडा होता। इससे सभी भारतीय प्रभावित होते हैं, जिनमें निर्यातक और उपभोक्ता भी शामिल हैं। आसियान से अलग होने पर देश के भीतर तेल की कीमतों जैसे कई असर दिखेंगे। अगर आसियान को भारत का कृषि निर्यात कम हुआ है तो उसकी वजह 2014-15 की तुलना में 2021-22 में गोवंश के मांस का निर्यात डॉलर में घटना है। इस गिरावट की वजह देसी नीतियां हैं, व्यापार नीति नहीं। आखिर में ध्यान रहे कि आसियान हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अहम सामरिक साझेदार भी है। उसे चीन की बी टीम बताकर खारिज करते हुए हम भूल जाते हैं कि भारत को ही सुनिश्चित करना होगा कि इस क्षेत्र के लिए भारत के सामरिक नजरिये में पूरा क्षेत्र साथ खड़ा हो।