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Editorial: ULI से कर्ज देने में होगी आसानी, लागू होने के बाद आ सकता है UPI जैसा क्रांतिकारी बदलाव

RBI के ULI प्लेटफॉर्म की मदद से अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में ऋण बढ़ाया जाएगा, खासकर कृषि और सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उपक्रमों (MSME) क्षेत्र में।

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बीएस संपादकीय   
Last Updated- August 27, 2024 | 10:12 PM IST

ULI RBI: भारतीय रिजर्व बैंक एक प्रायोगिक परियोजना के बाद आने वाले समय में देशव्यापी स्तर पर एक नया यूनिफाइड लेंडिंग इंटरफेस अथवा यूएलआई जारी करने की तैयारी कर रहा है। इस प्लेटफॉर्म की मदद से अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में ऋण बढ़ाया जाएगा, खासकर कृषि और सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उपक्रमों (एमएसएमई) क्षेत्र में।

एक बार क्रियान्वयन होने के बाद इसमें इतनी क्षमता है कि यह ऋण क्षेत्र के परिदृश्य को यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस यानी यूपीआई की तरह बदलकर रख दे। यूपीआई से डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आया।

हाल ही में ‘डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर ऐंड इमर्जिंग टेक्नॉलॉजीज’ विषय पर आयोजित आरबीआई@90 ग्लोबल कॉन्फ्रेंस में रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस बात को रेखांकित किया कि यूएलआई प्लेटफॉर्म विभिन्न डेटा सेवा प्रदाताओं से कर्जदाताओं तक डिजिटल सूचना का अबाध और सहमति आधारित प्रवाह सुनिश्चित करेगा। ध्यान देने वाली बात है कि यूएलआई ढांचा विभिन्न स्रोतों से हासिल सूचनाओं तक डिजिटल पहुंच सुनिश्चित करेगा। इससे कर्जदाताओं को संभावित कर्जदारों की ऋण पात्रता के बारे में सही सूचना मिल सकेगी।

यह उम्मीद भी है कि ऋण मंजूरी और वितरण में लगने वाले समय में कमी आएगी। ऋण की अबाध आपूर्ति और बिना गहन दस्तावेजीकरण के सहजता से काम होने से कर्जदारों और कर्जदाताओं दोनों को लाभ होगा। शासन की गुणवत्ता में सुधार करने की एक कोशिश में भारत ने अपनी डिजिटल सार्वजनिक अधोसंरचना (डीपीआई) का सही उपयोग किया है। इसमें जनधन खाते, आधार और मोबाइल फोन के साथ यूपीआई भी शामिल है।

यूएलआई देश में डीपीआई के सफर में सबसे नया हिस्सेदार बनने को तैयार है। छोटी कंपनियों द्वारा निजी निवेश को बढ़ाने तथा आम घरेलू खपत को गति देने के लिए भारत को एक विकसित ऋण बाजार की आवश्यकता है। बीते सालों के दौरान ऋण की मांग में निरंतर इजाफा हुआ है। उदाहरण के लिए 2021 और 2022 को मिलाकर देखें तो न्यू टु क्रेडिट (एनटीसी यानी नया ऋण लेने वाले) लोगों की संख्या 6.6 करोड़ रही। इसमें से 67 फीसदी लोग ग्रामीण और अर्द्धशहरी इलाकों से थे। इसके बावजूद आम परिवारों और एमसएमई को ऋण की उपलब्धता सीमित बनी रही।

ऋण की मांग और आपूर्ति में लगातार अंतर बना रहा है। इसके पीछे कई वजह हो सकती हैं, मसलन कर्जदारों का ऋण जोखिम प्रोफाइल, जोखिम आकलन के लिए अपर्याप्त आंकड़े, सेवा की ऊंची लागत, खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां लोग निजी खपत के लिए कम मूल्य का कर्ज लेते हैं।

ईवाई द्वारा गत वर्ष जारी एक रिपोर्ट में दिखाया गया कि देश में एमएसएमई ऋण की पहुंच, खुदरा ऋण की पहुंच और क्रेडिट कार्ड की पहुंच क्रमश: 14 फीसदी, 11 फीसदी और चार फीसदी है। इस संबंध में यूएलआई कर्जदाताओं को उपभोक्ताओं के तमाम वित्तीय और गैर वित्तीय आंकड़े मुहैया कराएगा और डिजिटल ढंग से कर्ज देना संभव होगा। पूरी तरह पारंपरिक ऋण और आय वक्तव्यों पर विचार करने के बजाय कर्जदाताओं को अतिरिक्त आंकड़ों और उन्नत एलगोरिद्म तक पहुंच कराई जाएगी जिससे जोखिम का आकलन किया जा सके। उदाहरण के लिए भौतिक परिसंपत्ति स्वामित्व, जमीन के रिकॉर्ड, जियोलोकेशन टैगिंग और डिजिटल छाप की ट्रैकिंग से संभावित कर्जदार की ऋण पात्रता का संकेत मिल सकता है।

कुल मिलाकर डिजिटल ऋण उद्योग मजबूत वृद्धि की ओर अग्रसर है। डिजिटल चैनलों के माध्यम से ऋण वितरण कुल वितरण में अच्छी खासी हिस्सेदारी रहेगी। परंतु इसके साथ ही बैंकिंग तंत्र के भीतर आंतरिक समायोजन करना होगा ताकि इस प्लेटफॉर्म का लाभ लिया जा सके।

उदाहरण के लिए बैंकिंग तंत्र में ऋण और जमा वृद्धि के बीच भारी अंतर है। जमा वृद्धि कुछ समय से ऋण वृद्धि से पीछे चल रही है। बैंकों को जमा जुटाने की जरूरत है तभी वे मजबूत ऋण वृद्धि बरकरार रख सकेंगे। इसके अलावा रिजर्व बैंक को भी बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के ऋण व्यवहार पर नजर रखनी होगी। गत वर्ष उसने ऋण वृद्धि में नियंत्रण रखने के लिए कुछ क्षेत्रों के ऋण में जोखिम भार को बढ़ाया था।

First Published : August 27, 2024 | 9:56 PM IST