तकरीबन एक दशक तक फंसे कर्ज यानी गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में इजाफा होने तथा जोखिम आंकने, खासकर कॉर्पोरेट ऋण के जोखिम के अंकन में शिथिलता के बाद अब देश का बैंकिंग क्षेत्र अच्छी स्थिति में नजर आ रहा है। उसका मुनाफा बढ़ रहा है और निवेशकों का विश्वास नए सिरे से बहाल हो रहा है।
हाल ही में फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री तथा इंडिया बैंक्स एसोसिएशन के एक सर्वेक्षण में इसकी पुष्टि हुई है। सर्वेक्षण में 23 बैंकों को शामिल किया गया था और उसने दिखाया कि बैंकिंग क्षेत्र कई मानकों पर बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। इसमें परिसंपत्ति की गुणवत्ता तथा ऋण वृद्धि शामिल थी।
सर्वे के निष्कर्षों में यह भी कहा गया कि बैंक अपेक्षित ऋण हानि (ईसीएल) व्यवस्था को अपनाने को भी तैयार हैं और वे जलवायु अनुकूलन तथा उत्सर्जन में कमी की दिशा में भी कदम उठा रहे हैं। इसमें पर्यावरण के अनुकूल गतिविधियां अपनाने को आर्थिक मदद देने, कागज का इस्तेमाल कम करने तथा तटीय इलाकों में जैव ईंधन का इस्तेमाल रोकने जैसे कदम शामिल हैं।
ये पर्यावरण, सामाजिक और संचालन (ईएसजी) पहलों का हिस्सा हैं। सर्वेक्षण में शामिल बैंकों में से 83 फीसदी ने कहा कि उनके ऋण मानक आसान हुए हैं या अपरिवर्तित रहे हैं। उन्होंने अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक वृद्धि का अनुमान दर्शाया, एनपीए में कमी आने की बात कही और कहा कि क्षेत्रवार जोखिम में कमी आने की उम्मीद है।
चुनिंदा क्षेत्रों के लिए दीर्घकालिक ऋण वितरण में इजाफा हुआ है। इसमें अधोसंरचना, लौह और इस्पात, खाद्य प्रसंस्करण तथा औषधि क्षेत्र शामिल हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि ये वही क्षेत्र हैं जहां एनपीए का स्तर भी अधिक है। अगर इन क्षेत्रों की पहुंच आसान ऋण तक बनी रहती है तो इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। बैंकों को एक बार फिर फंसे हुए कर्ज के चक्र में फंसने से बचना चाहिए।
आमतौर पर बैंक अपने बही खातों में संकटग्रस्त परिसंपत्तियों को लेकर संतुष्ट हैं। सर्वेक्षण में शामिल 77 फीसदी बैंकों ने कहा कि बीते छह महीनों में उनके एनपीए में कमी आई है। आधे से अधिक बैंकों का मानना है कि अगले छह महीनों में सकल एनपीए 3-3.5 फीसदी के दायरे में रहेगा। यह आशावाद बेवजह नहीं है क्योंकि सकल एनपीए वित्त वर्ष 2018 के अंत के 11.6 फीसदी से कम होकर गत वर्ष सितंबर में 3.2 फीसदी रह गया था। फंसे हुए कर्ज में नया इजाफा भी कम हुआ है।
स्वाभाविक सी बात है कि इससे बैंकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता में सुधार होगा। यह बहुत राहत की बात है क्योंकि सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के बैंक अच्छी हालत में हैं। बहरहाल भविष्य के मुनाफे को लेकर चिंता बरकरार है। सर्वेक्षण में अधिक ब्याज दर वाले जमा की ओर स्पष्ट बदलाव देखने को मिला। करीब 70 फीसदी बैंकों ने कहा कि कुल जमा में करंट अकाउंट सेविंग्स अकाउंट (कासा) जमा की हिस्सेदारी कम हुई है।
कासा कम लागत वाली जमा राशि है जो बैंकों द्वारा जुटाई जाती है। कम लागत वाली जमा राशि का अर्थ है कम मुनाफा मार्जिन। इसके अलावा वाणिज्यिक बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के आपस में जुड़े होने के कारण बैंकिंग क्षेत्र में धोखाधड़ी के मामले बढ़ने से संकट के समय हालात मुश्किल हो सकते हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने हालिया प्रकाशनों में इस बढ़ते जुड़ाव को रेखांकित किया था। इस संबंध में गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को अपने फंडिंग स्रोत में विविधता लानी चाहिए और उसे बैंकिंग से इतर ले जाना चाहिए।
बहरहाल, बैंकिंग क्षेत्र की सेहत में सुधार से अर्थव्यवस्था में वृद्धि को गति मिलेगी। केंद्र सरकार ने महामारी के बाद आर्थिक सुधार को मदद देने के लिए पूंजीगत व्यय बढ़ाया और अब वक्त आ गया है कि निजी क्षेत्र पूंजीगत व्यय में इजाफा करे। बेहतर बैंक बैलेंस शीट से यह बदलाव संभव हो सकता है।