देश के वित्तीय बाजारों में इस बात को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति यानी एमपीसी नीतिगत दरों में कटौती की शुरुआत कब करेगी? खासतौर पर अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा अपनी नीतिगत दर में 50 आधार अंकों की कटौती करने के बाद से यह सिलसिला चल रहा है। इस महीने के आरंभ में एमपीसी ने तीन नए बाहरी सदस्यों के साथ बैठक की और नीतिगत रीपो दर को 6.5 फीसदी पर स्थिर रखा।
यद्यपि समिति ने तेजी से बढ़ती वैश्विक अनिश्चितता के माहौल में स्वयं को अधिक लचीलापन प्रदान करने के लिए अपना रुख ‘समायोजन को समाप्त करने’ से ‘तटस्थ’ कर लिया।
हालांकि रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने एमपीसी की बैठक के बाद उसके निर्णय और रुख के पीछे के कारणों को अच्छी तरह स्पष्ट किया। उन्होंने गत सप्ताह एक कार्यक्रम में मौद्रिक नीति तथा अन्य मामलों को लेकर रिजर्व बैंक के रुख को आगे और स्पष्ट किया। वे सभी विषय चर्चा के लायक हैं।
मौद्रिक नीति के मामले में दास ने खासतौर पर कहा कि फिलहाल दरों में कटौती करना अपरिपक्वता होगी और यह ‘बहुत जोखिम भरा’ हो सकता है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति की दर सितंबर में 5.5 फीसदी रही जिसके लिए मोटे तौर पर ऊंची खाद्य कीमतें वजह रहीं। इसके कुछ और समय तक ऊंचे स्तर पर रहने की उम्मीद है।
एमपीसी को अनुमान है कि मुद्रास्फीति की दर चालू वित्त वर्ष में 4.5 फीसदी के स्तर पर रह सकती है। अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में इसके 4.3 फीसदी रहने का अनुमान है।
ताजा मौद्रिक नीति रिपोर्ट के अनुसार रिजर्व बैंक का अनुमान है कि 2025-26 की चौथी तिमाही में यह दर 4.1 फीसदी तक रह सकती है जो रिजर्व बैंक के चार फीसदी के लक्ष्य के एकदम करीब होगा।
स्पष्ट है कि रिजर्व बैंक तब तक प्रतीक्षा करना चाहता है जब तक कि मुद्रास्फीति चार फीसदी के लक्ष्य के आसपास नहीं टिक जाती। यह एक समझदारी भरा नीतिगत रुख है क्योंकि मुद्रास्फीति की दर कई सालों से लक्ष्य से ऊपर रही है और फिलहाल वृद्धि बड़ी चिंता का विषय नहीं है।
दास ने एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू की ओर ध्यान दिलाया और वह है मुद्रा प्रबंधन। इस समाचार पत्र सहित कई टीकाकारों ने सुझाया है कि मुद्रा बाजार में अस्थिरता बहुत कम है। रिजर्व बैंक का कहना है कि वह किसी स्तर को लक्ष्य नहीं बनाता और अतिरिक्त अस्थिरता को सीमित रखने के लिए ही हस्तक्षेप करता है।
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार हाल ही में 700 अरब डॉलर के स्तर को पार कर गया हालांकि गत सप्ताह यह फिर नीचे आ गया। दास ने कहा कि मुद्रा भंडार को मजबूत करने का सबक टैपर टैंट्रम (अमेरिकी केंद्रीय बैंक द्वारा परिसंपत्ति खरीद की योजना का आकार कम करना) से मिला।
रिजर्व बैंक की मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करने की अनिच्छा के कारण ही 2013 में अमेरिका में मुद्रा संकट जैसी स्थिति बन गई थी और अमेरिकी फेडरल रिजर्व बैंक ने क्वांटिटेटिव ईजिंग को कम करने की घोषणा की थी। रिजर्व बैंक नहीं चाहता है कि हमारे यहां वैसे हालात बनें।
यही कारण है कि वह मुद्रा भंडार तैयार करने और मुद्रा बाजार में अतिरिक्त अस्थिरता को नियंत्रित करने पर केंद्रित रहा है।
रिजर्व बैंक ने अत्यधिक अस्थिरता को नियंत्रित करके अच्छा काम किया है लेकिन जैसा कि 2022 की समन्वित वैश्विक नीतिगत सख्ती के दौर में देखा गया, उसे हस्तक्षेप में अधिक चयन बरतने की आवश्यकता है। निरंतर हस्तक्षेप का नतीजा रुपये के निरंतर अधिमूल्यन के रूप में नहीं सामने आना चाहिए जिससे देश की बाह्य प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित हो। यह बात ध्यान देने लायक है कि 40 मुद्राओं के व्यापार भार वाली वास्तविक प्रभावी विनिमय दर ने दिखाया कि अगस्त में रुपया पांच फीसदी अधिमूल्यित था जो जुलाई के सात फीसदी अधिमूल्यन से बेहतर स्थिति थी।
रिजर्व बैंक के लिए यह महत्त्वपूर्ण होगा कि वह यह सुनिश्चित करे कि अतिरिक्त अस्थिरता को सीमित करने के चलते मौद्रिक नीति में कोई पूर्वग्रह की स्थिति न बने। निरंतर अधिमूल्यन से प्रतिस्पर्धी क्षमता पर असर पड़ सकता है जो लंबी अवधि में वृद्धि को प्रभावित कर सकता है।